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गाड़ियों की बिक्री से पहले सरकार कैसे क्रैश टेस्ट करवाती है, जानिए

Admin4
3 Aug 2021 1:50 PM GMT
गाड़ियों की बिक्री से पहले सरकार कैसे क्रैश टेस्ट करवाती है, जानिए
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सड़क हादसे कम हो सकें और गाड़ियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके, इसके लिए क्रैश टेस्ट कराए जाते हैं. इसके तहत कई तरह के टेस्ट कराए जाते हैं. सबसे खास है गाड़ियों की टक्कर जिसे रिहर्सल के तौर पर कराया जाता है ताकि गाड़ी और उसके चालक की सुरक्षा देखी जा सके. अलग-अलग गति और अलग-अलग बल के साथ गाड़ियों की टक्कर कराई जाती है. ऐसा टक्कर अकसर दो गाड़ियों के बीच या किसी गाड़ी और अवरोधक के बीच कराया जाता है.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क :- भारत में सड़क दुर्घटनाओं में कई लोगों की जान चली जाती है. मौत, अपंगता और हॉस्पिटल में इलाज का खर्च देखें तो सड़क दुर्घटनाएं इसमें सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं. सरकार इसे घटाने के लिए तेजी से काम कर रही है. ये विडंबना है कि भारत में आज भी लोग पेट्रोल-डीजल की महंगाई पर ज्यादा चिंतित होते हैं न कि सड़क सुरक्षा को लेकर. लेकिन अब यह धारणा बदल रही है. कंपनियों ने भी लोगों की सुरक्षा को प्राथमिकता दी है और अब गाड़ियों में सेफ्टी फीचर्स जैसे कि एबीएस, एयरबैग, पावर विंडोद, डेड पेडल और पेरीमीटर अलार्म आदि दिए जा रहे हैं. सड़क परिवहन मंत्रालय ने इन फीचर्स को लेकर खास निर्देश दिए हैं.

सड़क हादसे कम हो सकें और गाड़ियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके, इसके लिए क्रैश टेस्ट कराए जाते हैं. इसके तहत कई तरह के टेस्ट कराए जाते हैं. सबसे खास है गाड़ियों की टक्कर जिसे रिहर्सल के तौर पर कराया जाता है ताकि गाड़ी और उसके चालक की सुरक्षा देखी जा सके. अलग-अलग गति और अलग-अलग बल के साथ गाड़ियों की टक्कर कराई जाती है. ऐसा टक्कर अकसर दो गाड़ियों के बीच या किसी गाड़ी और अवरोधक के बीच कराया जाता है.
सरकार का निर्देश
केंद्र सरकार ने 2015 में गाड़ियों की बिक्री से पहले क्रैश टेस्ट कराने का निर्देश जारी किया था. अक्टूबर 2017 से यह नियम अनिवार्य कर दिया गया है. संयुक्त राष्ट्र की तरफ से जो स्टैंडर्ड बनाए गए हैं, उसके मुताबिक भारत में भी गाड़ियों का क्रैश टेस्ट होता है. सरकार सेफ्टी को लेकर गाड़ियों की रेटिंग जारी करती है. इसके लिए भारत न्यू कार सेफ्टी एसेसमेंट प्रोग्राम (BNVSAP) शुरू किया गया है. यूके में न्यू कार एसेसमेंट प्रोग्राम चलता है जो कि पूरी तरह से चैरिटी पर आधारित है जो कारों को 5 स्टार की रेटिंग देता है. यह रेटिंग वयस्क और बच्चों की सुरक्षा के लिहाज से जारी की जाती है.
किस तरह के क्रैश टेस्ट होते हैं
गाड़ियों की सुरक्षा जांचने के लिए कई तरह के क्रैश टेस्ट कराए जाते हैं. इनमें फ्रंटल इंपेक्ट, रन ऑफ रोड, पेडेस्ट्रियन, रीयर एंड आदि शामिल हैं. ये सभी फिजिकल टेस्ट होते हैं जिनमें गाड़ियों के मटीरियल से डमी बनाए जाते हैं. कार में लोगों के आकार की बनी डमी रखी जाती है और दुर्घटना कराई जाती है. यह देखा जाता है कि टक्कर का प्रभाव गाड़ी, ड्राइवर, कोपैसेंजर, बच्चों और वयस्क पर कितना पड़ता है. भारत में दो तरह के टक्कर टेस्ट होते हैं जिनमें पहले ऑफसेट फ्रंटल कॉलीजन टेस्ट और बाद में कॉलीजन टेस्ट किया जाता है. ये क्रैश टेस्ट देश के टेस्टिंग सेंटर इंदौर (नैट्रेक्स), पुणे (एआरएआई), मनेसर (आईसीएटी) और चेन्नई (जीएआरसी) में होते हैं. इन सेंटर्स को नेशनल ऑटोमोटिव टेस्टिंग एंड आरएंडडी इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट के अंतर्गत बनाया गया है.
आमने-सामने टक्कर का टेस्ट
ऑफसेट फ्रंटल टेस्ट में किसी गाड़ी को 56 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से एक एल्युमिनियम बैरियर से टकराया जाता है. बैरियर कितना बड़ा होगा और उसकी मोटाई क्या होगी, यह सरकार तय करती है. गाड़ी की अगली सीट पर डमी रखे जाते हैं और फिर टक्कर का प्रभाव देखा जाता है. टक्कर के दौरान डमी के अलग-अलग हिस्सों पर अलग-अलग तरह से बल डाले जाते हैं. इसमें यह देखा जाता है कि डमी को कितना नुकसान हुआ और उसी आधार पर सुरक्षा आंकी जाती है. सबसे बड़ी सुरक्षा सिर की देखी जाती है. अगर गाड़ी को क्रैश टेस्ट पास करना है तो टक्कर के दौरान डमी के सिर वाले हिस्से का कोई नुकसान नहीं होना चाहिए. यहां तक कि टक्कर के दौरान गाड़ी का कोई हिस्सा माथे तक नहीं आना चाहिए. इसी तरह के टेस्ट गर्दन, सीना, फीमर और टीबीया या पैरों के निचले हिस्से पर किए जाते हैं


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