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भारत के कई राज्यों में अब किसान रोशा घास की खेती कर रहे हैं. यह एक सुगंधित घास है और इसके तेल का इस्तेमाल इत्र, औषधि व सौंदर्य प्रसाधन बनाने में होता है. इस पौधे को एक बार लगाने के बाद 5 से 6 वर्ष तक उपज प्राप्त होती रहती है.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क :- अपने देश में आम तौर पर ज्यादातर किसान पारंपरिक रबी और खरीफ फसलों की खेती करते हैं. लेकिन कुछ किसान अक्सर खेती के क्षेत्र में प्रयोग करते रहे हैं और उनकी कामयाबी को देखर अन्य किसान भी प्रयोग करने को उत्साहित हो जाते हैं. आज कल के समय में थोड़ा चलन बदला है और किसान ज्यादा से ज्यादा नकदी फसलों की खेती कर रहे हैं. औषधीय पौधों से लेकर घास की अलग-अलग किस्मों की खेती का चलन बढ़ रहा है.
भारत के कई राज्यों में अब किसान रोशा घास की खेती कर रहे हैं. यह एक सुगंधित घास है और इसके तेल का इस्तेमाल इत्र, औषधि व सौंदर्य प्रसाधन बनाने में होता है. इस पौधे को एक बार लगाने के बाद 5 से 6 वर्ष तक उपज प्राप्त होती रहती है. रोशा घास की खेती मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड, तेलंगाना, कर्नाटक, पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में होती है. रोसा घास 5 से 6 वर्ष तक अधिक उपज देता है. इसके पश्चात तेल का उत्पादन कम होने लगता है.
पथरीली मिट्टी पर भी कर सकते हैं खेती
इसका पौधा 10 डिग्री से लेकर 45 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान सहन करने की क्षमता रखता है. रोशाघास 150 से 200 सेंटी मीटर तक लंबा होता है. रोशा घास की खासियत ये है कि एक निश्चित समय तक यह सूखे का भी सामना कर लेती है. रोशा घास की खेती एक अर्ध शुष्क क्षेत्र में वर्षा आधारित फसल के रूप में की जा सकती है.
रोशा घास पथरीली मिट्टी में भी उगाई जा सकती है क्योंकि इसकी जड़ों की लंबाई ज्यादा नहीं होती. हालांकि ऐसी मिट्टी पर खेती करने से घास से तेल की मात्रा सामान्य खेत के मुकाबले कम हो सकती है.
रोशा घास की खेती के लिए मिट्टी का पीएच लेवल 7.5 से लेकर 9 पीएच मान तक हो तो भी फसल अच्छी उगाई जा सकती है. रोशा घास की खेती के लिए भूमि को कोई विशेष तैयारी की जरूरत नहीं पड़ती, लेकिन रोपाई से पहले खेत को अच्छी तरह से तैयार करना जरूरी होता है. इसके लिए खेत की मिट्टी को भुरभुरी बनाने के लिए हल से कम से कम दो बार जुताई करनी चाहिए.
खेती के लिए इन बातों का रखना होगा ध्यान
फसल की रोपाई से पहले खेत को सभी प्रकार की खूंटी और घास की जड़ों से रहित कर देना चाहिए. आखिरी जुताई के समय एनपीके यानी नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटैशियम 50, 60 और 40 किलो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डालना चाहिए. साथ ही 25 टन प्रति हेक्टेयर सड़ी गोबर की खाद मिट्टी में मिला देनी चाहिए.
रोशा घास बीज के माध्यम से प्रचारित किया जा सकता है. बीज को रेत के साथ मिलाकर 10 से 15 सेंटी मीटर की दूरी पर नर्सरी की जाती है. नर्सरी को लगातार पानी छिड़काव के द्वारा नम रखा जाता है.
बीज द्वारा रोपण विधि से 1 हेक्टेयर के लिए 5 से 6 किलो बीज की आवश्यकता होती है. नर्सरी डालने का सर्वोतम समय जून होता है. पौध 4 से 5 सप्ताह के बाद रोपाई के लिए तैयार हो जाती है. सामान्य दशाओं में 45/30 सेंटी मीटर की दूरी पर पौधों का रोपण करते हैं और कटाई के तुरंत बाद सिंचाई करने से फसल जल्दी ही दोबारा बढ़नी शुरू हो जाती है.
Admin4
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