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मुंबई | रिलायंस ग्रुप (Reliance Group) का कारोबार देश ही नहीं, बल्कि दुनियाभर में फैला हुआ है. साल 1958 में दिवंगत धीरूभाई अंबानी (Dhirubhai Ambani) द्वारा इसकी नींव डाली गई थी और आज दुनिया भर में इसका डंका बज रहा है. हालांकि, 2002 में धीरूभाई के निधन के बाद रिलायंस फैमिली में बंटवारा हुआ और विशाल कारोबार को उनके दोनों बेटों में बांट दिया गया, लेकिन आज जहां बड़े बेटे मुकेश अंबानी एशिया के सबसे अमीर इंसान (Asia's Richest Mukesh Ambani) हैं, तो नहीं छोटे बेटे अनिल अंबानी (Anil Ambani) अर्श से फर्श पर पहुंच चुके हैं.हालात ये हैं कि अनिल अंबानी खुद को दिवालिया घोषित कर चुके हैं और उनकी एक बड़ी कंपनी बिकने जा रही है. आइए जानते हैं आखिर कौन सी गलतियां उन्हें ले डूबीं?
जब रिलायंस ग्रुप में बंटवारा हुआ था, तो इससे जुड़ी हर खबर सुर्खियों में रही थी. बड़े बेटे मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani) को पुराने बिजनेस पेट्रोकेमिकल, टेक्सटाइल रिफाइनरी, तेल-गैस कारोबार से संतोष करना पड़ा था. वहीं अनिल अंबानी (Anil Ambani) के हिस्से में तमाम नए जमाने के बिजनेस आए थे, इनमें ग्रुप का टेलीकॉम, फाइनेंस और एनर्जी कारोबार शामिल था. हालांकि, नए जमाने का बिजनेस मिलने के बाद भी अनिल अंबानी कुछ खास कमाल नहीं कर पाए और आज उनके तमाम बिजनेस बुरे दौर से गुजर रहे हैं, यही नहीं उनकी कंपनी रिलायंस कैपिटल को बिकने जा रही है.
Anil Ambani के पास टेलीकॉम, पावर और एनर्जी बिजनेस था, जो नए जमाने में सफलता की गारंटी माना जा रहा था. इन सेक्टर्स में वे देश का बड़ा खिलाड़ी बनना चाहते थे और उन्होंने कई महत्वकांक्षी योजनाएं बनाईं, लेकिन सटीक प्लानिंग न होने के कारण उन्हें फायदे की जगह भारी नुकसान झेलना पड़ा. बंटवारे के बाद उनके पास जो कंपनियां आई थीं, उनकी दम पर साल 2008 में अनिल अंबानी दुनिया के टॉप-10 अरबपतियों की लिस्ट में छठे पायदान पर पहुंच गए थे, जबकि आज हालत ये है कि उनकी कंपनियां बिकने की कगार पर हैं.
बीते कुछ सालों में अनिल अंबानी को बिजनेस में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा है और इसका एक अहम कारण उनके द्वारा लिया गया कर्ज है. ऐसे ही एक कर्ज का जिक्र करें, तो चीन के बैंकों के कर्ज से जुड़े विवाद में उन्होंने इंग्लैंड हाईकोर्ट में दलील रखते हुए अपनी नेटवर्थ को जीरो बताया था. उन्होंने कहा था कि वे दिवालिया हो चुके हैं और इसलिए कर्ज का बकाया नहीं चुका सकते. इसके साथ ही उन्होंने कोर्ट में ये भी कहा था कि परिवार के लोग भी उनकी कोई मदद नहीं कर पाएंगे.
यहां बता दें कि तीन चाइनीज बैंकों ने अनिल अंबानी के खिलाफ लंदन की अदालत में केस दर्ज कराया था. इनमें इंडस्ट्रियल एंड कमर्शियल बैंक ऑफ चाइना, चाइना डेवलपमेंट बैंक और एग्जिम बैंक ऑफ चाइना शामिल थे. रिपोर्ट के मुताबिक, इन चीनी बैंकों ने अंबानी की कंपनी रिलायंस कम्युनिकेशन (RCom) को 2012 में 70 करोड़ डॉलर (5,000 करोड़ रुपये) का कर्ज दिया था और लोन गारंटर अनिल अंबानी थे, लेकिन वे भुगतान करने में नाकाम रहे.
Anil Ambani को जब बंटवारे के बाद टेलीकॉम, एनर्जी और फाइनेंस जैसे नए जमाने का कारोबार मिले, तो उन्होंने बेहद जल्दबाजी में बिना सटीक प्लानिंग के कारोबार को आगे बढ़ाने के लिए कदम उठाए, जो उन्हें लाभ पहुंचाने के बजाय भारी पड़ गए. बिना तैयारी के एक के बाद एक नए प्रोजेक्ट्स में रकम लगाने से उनके ऊपर कर्ज बढ़ता गया.
अनिल अंबानी की ये जल्दबाजी अपने कारोबार को रॉकेट की रफ्तार से टॉप पर पहुंचाने के लिए थी. वे उस समय एनर्जी से लेकर टेलीकॉम सेक्टर का किंग बनने के लिए जिन नए प्रोजेक्ट में दांव लगा रहे थे, उनमें लागत अनुमान से बहुत ज्यादा आ रही थी और रिटर्न न के बराबर मिल रहा था. लेकिन इसके बावजूद उन्होंने अपनी रणनीति में कुछ खास बदलाव करने में देरी की.
कारोबारी जगत के एक्सपर्ट भी इस बात का ही जिक्र करते हुए नजर आते हैं, कि अनिल अंबानी के पतन के कई कारणों में से सबसे बड़ा ये रहा कि उनका किसी एक कारोबार पर पूरी तरह फोकस नहीं रह पाया. वे एक से दूसरे बिजनेस में छलांग मारते रहे. क्रियान्वयन में खामी की वजह से उनका पैसा कई ऐसे प्रोजेक्ट्स में लगा जो अनुमान से ज्यादा खर्चीले साबित हुए और उनसे उन्हें रिटर्न नहीं मिल पाया.
अनुमान से ज्यादा लागत होने के चलते उन्हें अपने द्वारा शुरू किए गए तमाम प्रोजेक्ट्स को कंप्लीट करने के लिए एडिशनल एक्विटी और देनदारों से कर्ज लेना पड़ा. लगात बढ़ने और रिटर्न हासिल न होने के चलते कर्ज का ये बोझ लगातार बढ़ता गया और आज इसका उदाहरण सामने हैं, कि उनकी कंपनियां बिकने की कगार पर पहुंच चुकी हैं.
अनिल अंबानी द्वारा ज्यादातर बिजनेस से जुड़े फैसले महत्वाकांक्षा के फेर में पड़कर लिए गए थे. इसके अलावा वह कॉम्पिटीशन में बिना किसी रणनीति के कूद जाने में दिलचस्पी रखते रहे. इसके चलते कर्ज का बोझ और 2008 की ग्लोबल मंदी ने उन्हें दोबारा उठने और कारोबार को संभलने का मौका नहीं दिया.
साल 2008 में आई ग्लोबल मंदी से पहले अनिल अंबानी के ग्रुप (ADAG) की कंपनियों की मार्केट वैल्यू करीब 4 लाख करोड़ रुपये थी और इसकी दम पर वे अमीरों की टॉप लिस्ट में शामिल थे. लेकिन, मंदी गहराई और अनिल अंबानी के का बुरा दौर शुरू हो गया. उनकी कंपनियों की बर्बादी में R Power और R Com का जिक्र बेहद जरूरी है. इसे उदाहरण के तौर पर समझें तो अनिल अंबानी ने ऊर्जा क्षेत्र में टॉप पर पहुंचने के लिए कई प्रोजेक्ट में दांव लगाया था, इसमें से एक सासन प्रोजेक्ट था.
इसकी लागत उस समय अनुमान से 1.45 लाख डॉलर ज्यादा पहुंच गई, इस परियोजना की फंडिंग एडिशनल एक्विटी और देनदारों के कर्ज से हुई थी और कंपनी पर कर्ज 31,700 करोड़ रुपये से ज्यादा हो गया. देनदारी बढ़ती गई, कर्ज बढ़ता गया और हाथ में कुछ नहीं आया.
टेलीकॉम सेक्टर में अपनी बादशाहत कायम करने की गलती भी उनके पतन के अहम कारणों में एक रही. R Com के जरिए अनिल अंबानी अमीरों की तकनीक लेकर गरीबों को सौंपने के काम में जुटे थे. इस समय उन्होंने CDMA आधारित नेटवर्क अपनाया, जो कि GSM नेटवर्क के मुकाबले महंगा सौदा था. तब के समय में आरकॉम का ARPU 80 रुपये था, जो हर समय इंडस्ट्री के औसत 120 रुपये से कम रहा था. इस तरह हर यूनिट पर आरकॉम को नुकसान उठाना पड़ा और वो आरकॉम 25,000 करोड़ से ज्यादा के कर्ज तले दब गई.
एक ओर जहां अनिल अंबानी दिग्गज बिजनेस घराने और जबरदस्त बिजनेस हाथ में होते हुए भी अपनी गलतियों और महत्वाकांक्षा के चलते दिवालिया होने की कगार पर पहुंच गए, तो वहीं उनके बड़े भाई मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani) की बिजनेस सेक्टर में सटीक रणनीति और तालमेल ने उन्हें आज एशिया का सबसे अमीर इंसान बना दिया है. उन्होंने बंटवारे में मिले अपने बिजनेस को सूझ-बूझ से आगे बढ़ाते हुए ऐसी रफ्तार दी, कि रिलायंस देश की सबसे वैल्यूएबल कंपनी बन गई.
आज मुकेश अंबानी के नेतृत्व वाली रिलायंस इंडस्ट्रीज का कारोबार रिटेल से ग्रीन एनर्जी तक फैला हुआ है और भारतीय टेलीकॉम सेक्टर में क्रांति लाने का श्रेय भी उन्हें दिया जाता है. कारोबार को आगे बढ़ाने के लिए हमेशा अपने पिता धीरूभाई अंबानी की दी गई सीख पर आगे बढ़ते हुए मुकेश अंबानी की सोच हमेशा दूसरों से अलग रही. उनकी सोच रही कि एक कामयाब शख्स हमेशा भीड़ से हटकर सोचता है और यही खूबी उन्हें आज इस मुकाम पर पहुंचाने में मददगार साबित हुई है. इसी सोच का नतीजा है कि Reliance Jio के उन्होंने भारत के हर व्यक्ति के हाथ में मोबाइल फोन होने का सपना पूरा किया. वे बेहद सादा जीवन जीते हैं और लाइमलाइट से दूर रहना पसंद करते हैं. इसके अलावा वे पूरी रणनीति और लक्ष्य बनाकर आगे बढ़ते हैं. उन्हें पता रहता है कि कब क्या करना है.
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Harrison
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