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By: divyahimachal दो पूर्व प्रधानमंत्रियों-चौधरी चरण सिंह और पीवी नरसिम्हा राव-तथा विख्यात कृषि-विज्ञानी, ‘हरित क्रांति’ के प्रणेता एमएस स्वामीनाथन को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत-रत्न’ से नवाजने की घोषणा की गई है। वाकई वे विलक्षण प्रतिभा के धनी थे और भारत के अमूल्य ‘रत्न’ रहे हंै। देश के निर्माण और विस्तार में उनका अप्रतिम …
By: divyahimachal
दो पूर्व प्रधानमंत्रियों-चौधरी चरण सिंह और पीवी नरसिम्हा राव-तथा विख्यात कृषि-विज्ञानी, ‘हरित क्रांति’ के प्रणेता एमएस स्वामीनाथन को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत-रत्न’ से नवाजने की घोषणा की गई है। वाकई वे विलक्षण प्रतिभा के धनी थे और भारत के अमूल्य ‘रत्न’ रहे हंै। देश के निर्माण और विस्तार में उनका अप्रतिम योगदान रहा है। उन्हें विलंब से ही, लेकिन ‘भारत-रत्न’ देकर देश का राष्ट्रीय सम्मान ही ‘अलंकृत’ हुआ है। प्रधानमंत्री मोदी ने 2024 में ही महान समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर और राष्ट्रवाद, कमंडल की राजनीति के पुरोधा लालकृष्ण आडवाणी समेत पांच राष्ट्रीय हस्तियों को यह सम्मान देने की घोषणा की है।
कमोबेश 2024 को ‘भारत-रत्न वर्ष’ घोषित कर देना चाहिए, क्योंकि बीते चार सालों के दौरान किसी भी शख्सियत को ‘भारत-रत्न’ नहीं आंका गया। बेशक हमें कोई आपत्ति नहीं है, क्योंकि यह सरकार का विशेषाधिकार और अपना विश्लेषण है कि किसे ‘भारत-रत्न’ दिया जाए। तटस्थता और मूल्यांकन की ईमानदारी यही है कि प्रधानमंत्री ने भाजपा-संघ परिवार के शीर्षस्थ नेता आडवाणी के अलावा उन चार महान चेहरों को ‘भारत-रत्न’ के लिए चुना है, जो उनके राजनीतिक, वैचारिक विरोधी पक्ष के रहे हैं। डॉ. स्वामीनाथन तो गैर-राजनीतिक जमात के हैं। ये तीन ‘भारत-रत्न’ आज हमारे बीच में नहीं हैं, लेकिन ऐसा नहीं है कि वे प्रासंगिक नहीं हैं। चरण सिंह आज भी ‘किसानों के मसीहा’ हैं।
उन्होंने जमींदारी प्रथा खत्म की, भूमि सुधार किए और किसानों को खेती का अर्थशास्त्र समझाते रहे। देश में आपातकाल के बाद 1977 में जो प्रथम गैर-कांग्रेसी, जनता पार्टी की सरकार बनी, चौधरी उसके रचनाकारों में थे। वह सरकार में गृहमंत्री भी रहे। 1979 में वह तत्कालीन कांग्रेस के समर्थन से देश के प्रधानमंत्री बने। इसे विडंबना या दुर्भाग्य कहें कि कुछ ही दिनों में समर्थन मोहभंग में तबदील हो गया। उसके कई कारण थे, जिन पर कई किताबें लिखी जा चुकी हैं। जमीनी राजनीति का चेहरा चरण सिंह ऐसे प्रधानमंत्री साबित हुए, जो संसद में विश्वास-मत हासिल करने नहीं जा पाए। 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद पीवी नरसिम्हा राव को कांग्रेस की अल्पमत सरकार का प्रधानमंत्री बनाया गया, तो एकबारगी देश चौंक उठा था।
बेशक उनका राजनीतिक आयाम बहुरंगी, विस्तृत था, लेकिन वह राजनीति से रिटायरमेंट घोषित कर चुके थे। बहरहाल तब देश के आर्थिक हालात बेहद खस्ता थे। सोना तक गिरवी रखना पड़ा था। विदेशी मुद्रा भंडार मात्र 1 अरब डॉलर का था। खाद्यान्न संकट था। देश में लालफीताशाही और इंस्पेक्टर राज का ही वर्चस्व था। उस दौर में नरसिम्हा राव ने अपने ‘विजन’ से इतिहास रच दिया। वह आर्थिक सुधारों, उदारीकरण और भारत को बहुराष्ट्रीय बाजार बनाने में कामयाब रहे। उनके वित्त मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने अपने प्रधानमंत्री के ‘विजन’ को मूर्त रूप दिया। नरसिम्हा राव ने ही बुनियादी जमीन तैयार की, जिस पर आज भारत 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है।
विश्व की ऐसी कोई बड़ी, बहुराष्ट्रीय कंपनी नहीं है, जिसका दफ्तर भारत में न हो और भारत उसके देश में मौजूद न हो। तीसरा अमूल्य ‘रत्न’ एमएस स्वामीनाथन हैं। आज जब भी किसानों का कोई भी मुद्दा उठता है, तो स्वामीनाथन आयोग की रपट लागू करने के आग्रह किए जाते हैं। स्वामीनाथन ने गेहूं, चावल, आलू आदि के क्षेत्र में ऐसे अनुसंधान किए कि आज भारत में खाद्य सुरक्षा की स्थितियां हैं। खाद्यान्न के भंडार भरे हैं, लेकिन आज भी औसत किसान सम्पन्न नहीं है। अलबत्ता भारत कई फसलों का विश्व में ‘प्रमुख उत्पादक’ देश है। सारांश यह है कि स्वामीनाथन ‘हरित क्रांति’ के जनक थे।