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सुरक्षा चूक के बहाने नए संसद भवन पर सवाल

26 Dec 2023 8:58 AM GMT
सुरक्षा चूक के बहाने नए संसद भवन पर सवाल
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13 दिसंबर 2023 को, 22 वर्ष पूर्व भारत की संसद पर आतंकवादी हमले की वरसी के दिन कुछ लोगों द्वारा पुन: आक्रमण के बाद, विपक्षी दलों ने फिर से नए संसद भवन पर सवालिया निशान लगाने शुरू किए हैं। गौरतलब है कि इससे पहले भी नए संसद भवन की आलोचना विपक्षी दल करते रहे हैं। …

13 दिसंबर 2023 को, 22 वर्ष पूर्व भारत की संसद पर आतंकवादी हमले की वरसी के दिन कुछ लोगों द्वारा पुन: आक्रमण के बाद, विपक्षी दलों ने फिर से नए संसद भवन पर सवालिया निशान लगाने शुरू किए हैं। गौरतलब है कि इससे पहले भी नए संसद भवन की आलोचना विपक्षी दल करते रहे हैं। कुछ माह पूर्व जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा नए संसद भवन का उद्घाटन किया गया था तो भी विपक्षी दलों ने नए संसद भवन के साथ-साथ पूरी की पूरी सेन्ट्रल विस्टा पुनर्निर्माण परियोजना की यह कहकर आलोचना की थी कि इस परियोजना में भारत जैसे देश में क्या 13450 करोड़ रुपए से 20000 करोड़ रुपए तक का कुल खर्च करना औचित्यपूर्ण है? उनका कहना था कि क्या इस धनराशि का उपयोग शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी जरूरी मदों पर खर्च नहीं किया जाना चाहिए। आलोचकों का यह भी कहना रहा है कि इस परियोजना को पूरा करने के लिए कई इमारतों को गिराना पड़ेगा और कई पेड़ों को भी काटना पड़ेगा, जिससे पर्यावरण को भारी नुकसान होगा। इसके अलावा आलोचकों का यह भी कहना रहा है कि सरकार ने इस परियोजना को जल्दबाजी में लागू किया है और पर्यावरण पर पडऩे वाले इसके प्रभावों का भी सही आकलन नहीं किया गया। 13 दिसम्बर को हुई सुरक्षा चूक और उसके साथ दर्शकदीर्घा से कूदकर शरारती तत्वों का संसद कक्ष में घुसने को लेकर अब विपक्षी दलों का यह तर्क भी नए संसद भवन की आलोचना में शामिल हो गया है, कि नई संसद सुरक्षा की दृष्टि से भी सही नहीं है। यहां सवाल यह उठता है कि सेन्ट्रल विस्ता पुनर्निर्माण योजना की क्या जरूरत थी। गौरतलब है कि अंग्रेजी हुकूमत के दौरान दिल्ली में ब्रिटिश आर्किटेक्ट एडविन लुटियन्स और हर्बट बेकर के डिजाईन पर आधारित नई दिल्ली की प्रशासनिक इमारतों का निर्माण 20वीं सदी में किया गया था, जिसे सेन्ट्रल विस्ता के नाम से भी जाना जाता है।

देश की कई महत्वपूर्ण इमारतें जिसमें राष्ट्रपति भवन, संसद भवन, नॉर्थ और साउथ ब्लॉक शामिल हैं, इस सेन्ट्रल विस्ता का हिस्सा रही हैं। ब्रिटिश सरकार का उद्देश्य इन इमारतों के जरिए एक नई राजधानी का निर्माण था, जो उनकी साम्राज्यवादी शक्ति का एक प्रतीक बने। वैसे देखा जाए तो सेन्ट्रल विस्ता को एक भव्य नवशास्त्रीय शैली में बनाया गया था, जिसमें बड़े-बड़े बाग, फुव्वारों के साथ-साथ कई मूर्तियां स्थान-स्थान पर स्थापित की गई थी। सेन्ट्रल विस्ता की एक प्रमुख विशेषता राजपथ (जिसे अब कत्र्तव्य पथ के नाम से जाना जाता है) रही, जो एक ऐसा मार्ग था जो राष्ट्रपति भवन से इंडिया गेट तक जाता है। यह मार्ग गणतंत्र दिवस परेड समेत भारत के कई महत्वपूर्ण राष्ट्रीय आयोजनों के लिए उपयोग किया जाता रहा है। लंबे समय से सेन्ट्रल विस्ता एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल रहा है, जो अपनी भव्य वास्तुकला और प्रमुख राष्ट्रीय कार्यक्रमों की मेजबानी में इसकी भूमिका के लिए जाना जाता है। कुल मिलाकर सेन्ट्रल विस्ता भारत में ब्रिटिश शासनकाल या यूं कहें कि साम्राज्यवाद के प्रतीक चिन्हों में से एक है। लेकिन शायद इसकी भव्यता और वास्तुकला के मद्देनजर स्वतंत्र भारत में किसी भी सरकार ने सेन्ट्रल विस्ता में किसी भी प्रकार के फेरबदल के बारे में विचार नहीं किया। केन्द्र में नरेन्द्र मोदी सरकार आने के बाद इस विषय में विचार किया जाना शुरू हुआ कि दिल्ली राजधानी में समय के साथ संसदीय कार्यकलापों, विभिन्न मंत्रालयों और शासकीय विभागों की जरूरतों में बड़ा विस्तार हुआ है। इन जरूरतों के मद्देनजर राष्ट्रीय राजधानी के इस सेन्ट्रल विस्ता परिसरों में बड़े विस्तार की जरूरत महसूस की जा रही थी।

सेंट्रल विस्टा परियोजना की राजनीति एवं अर्थशास्त्र : भारत सरकार के सेन्ट्रल विस्ता पुनर्विकास परियोजना के अंतर्गत नए संसद भवन, साझा केन्द्रीय सचिवालय, उपराष्ट्रपति एन्कलेव का निर्माण, राष्ट्रीय संग्राहलय का जीर्णोद्धार, विज्ञान भवन का नवीनीकरण और विस्तार आदि शामिल किया गया है। केन्द्र सरकार ने यह भी निर्णय लिया कि सरकार के जितने भी विभागों और मंत्रालयों के कार्यालय किराए के भवनों में चलते हैं, उन्हें इस सेन्ट्रल विस्ता परियोजना के तहत निर्मित किए जा रहे भवनों में स्थानांतरित कर दिया जाएगा। दिलचस्प बात यह है कि भारत सरकार के कई कार्यालय वर्तमान में दिल्ली में 100 किराए के भवनों में काम कर रहे हैं। इन पर वर्तमान में लगभग 1000 करोड़ रुपए का वार्षिक किराया दिया जाता है और ये सभी कार्यालय शहर के अलग-अलग हिस्सों में फैले हुए हैं। एक तरफ सरकार का बहुमूल्य राजस्व इन किराए के भवनों पर खर्च होता रहा है, तो दूसरी तरफ सरकारी कर्मचारियों को एक कार्यालय से दूसरे कार्यालय जाने में कठिनाई तो होती ही है, उसमें समय की भी काफी बर्बादी होती है। वर्तमान में भारत के लोकसभा में कुल पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर की 3 सीटों को मिलाकर, 545 सीटें हैं और राज्यसभा की 245 सीटें हैं। वर्ष 2026 में लोकसभा के निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन किया जाना है। ऐसे में संसद सदस्यों की संख्या बढऩे के कारण ज्यादा स्थान की आवश्यकता होगी। इसके मद्देनजर नई संसद में अधिक स्थान की व्यवस्था की गई है। गौरतलब है कि नए संसद भवन में लोकसभा कक्ष में 888 सीटों और राज्यसभा कक्ष में 384 सीटों का प्रावधान किया गया है। माना जा रहा है कि नया संसद भवन जो भारतीय लोकतंत्र का एक प्रतीक के रूप में एक महत्वपूर्ण इमारत है, जो आगे आने वाली कम से कम एक से दो सदियों के लिए भारतीय संसद की आवश्यकताओं के अनुरूप बनाई गयी है। सरकार के पास भी इन आलोचनाओं के उत्तर में खासे ठोस तर्क हैं।

सरकार का कहना है कि इस परियोजना में केवल संसद भवन, केन्द्रीय सचिवालय और कई महत्वपूर्ण भवनों का नवीनीकरण और विस्तार ही नहीं हुआ है, बल्कि कई नए भवनों का निर्माण भी इसमें शामिल है। इस परियोजना के पूरे होने से केन्द्र सरकार का खर्च बचेगा और उस धन का उपयोग देश के विकास कार्यों के लिए किया जा सकेगा। साथ ही साथ कर्मचारियों को अपने विभिन्न विभागों में आने-जाने की असुविधा से भी बचाया जा सकेगा। उदाहरण के लिए वाणिज्य मंत्रालय के कई विभागों के कार्यालय अन्य स्थानों में थे, अब वे सभी वाणिज्य भवन में स्थानांतरित हो गए हैं। नया संसद भवन कई आधुनिक सुविधाओं से लैस है, जो पुराने संसद भवन में नहीं थी। कहा जा सकता है कि सेंट्रल विस्ता पुनर्विकास परियोजना के चलते सरकारी कार्यालयों और संसदीय कार्यों में नई सुविधाएं तो निर्मित होंगी ही, सरकारी कामकाज में कुशलता भी आएगी।

सोच यूपीए शासन के दौरान ही शुरू हुई : दिलचस्प बात तो यह है कि नए संसद भवन की इस परियोजना की योजना की सोच यूपीए के शासन काल में ही शुरू हो गयी थी, लेकिन उसको शुरू नहीं किया जा सका था। 2012 में, तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय को पत्र लिखकर अनुरोध किया कि सांसदों की बढ़ती संख्या को समायोजित करने के लिए एक नई इमारत का निर्माण किया जाए। हालांकि यूपीए सरकार ने इस प्रस्ताव को लागू करने के लिए कदम नहीं उठाया।

गुलामी के चिन्हों को मिटाने का भी है प्रयास : पुराने सेंट्रल विस्ता की भी अधिकांश इमारतों को यथावत रख कर अथवा उनका नवीनीकरण करते हुए उनको भी उपयोग में लाया जा रहा है, अंग्रेजी साम्राज्यवाद के चिह्नों के स्थान पर आजादी के अमृतकाल में राज पथ के स्थान पर कर्तव्य पथ, पुराने संसद भवन के स्थान पर नया संसद भवन, इंडिया गेट पर स्थित खाली छतरी जहां किसी जमाने में जॉर्ज पंचम की मूर्ति विराजमान थी, में देश के गौरव, नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति की स्थापना, इंडिया गेट पर स्थित अमर जवान ज्योति जिसमें अंग्रेजी हुकूमत के पक्ष में लडऩे वाले सैनिकों के नाम खुदे थे, के स्थान पर अब राष्ट्रीय युद्ध संग्रहालय, देशवासियों के मन में एक नया उत्साह और आत्मविश्वास भरेगा।

डा. अश्वनी महाजन

कालेज प्रोफेसर

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