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हमारे देश में सरकारें वीआईपी संस्कृति को समाप्त करने के लिए सडक़ों पर सियासी हुक्मरानों व अफसरशाही की बेहद महंगी लग्जरी गाडिय़ों पर लालबत्ती की चमक व दिल की धडक़न तेज करने वाले हूटरों की धमक को खामोश करने के दावे जरूर करती हैं, मगर आधुनिक हथियारों से लैस सुरक्षा एंजेसियों के सर्वश्रेष्ठ जवानों की …
हमारे देश में सरकारें वीआईपी संस्कृति को समाप्त करने के लिए सडक़ों पर सियासी हुक्मरानों व अफसरशाही की बेहद महंगी लग्जरी गाडिय़ों पर लालबत्ती की चमक व दिल की धडक़न तेज करने वाले हूटरों की धमक को खामोश करने के दावे जरूर करती हैं, मगर आधुनिक हथियारों से लैस सुरक्षा एंजेसियों के सर्वश्रेष्ठ जवानों की वीआईपी सुरक्षा लेना सियासी हैसियत व रुतबे का प्रतीक बन चुका है। एनएसजी कमांडो जैसी सुरक्षा एजेंसी के साए में वीआईपी सुरक्षा का दायरा बढ़ता जा रहा है। सत्ता की चौखट पर पहुंचते ही सियासत के किरदार से सादगी व शिष्टाचार जैसे गुण रुखसत हो रहे हैं। हमारे देश की सियासत में ऐसे कई राजनीतिज्ञ हुए जिन्होंने लोकतंत्र के शिखर पर पहुंच कर भी अपने निजी स्वार्थ व महत्वाकांक्षा से दूर रहकर सादगी भरे व्यक्तित्व की गहरी छाप छोड़ी है। यदि बात सियासत में सादगी भरे व्यक्तित्व की हो और पिछड़े वर्गों की पैरवी करने वाले समाजवाद के पुरोधा ‘कर्पूरी ठाकुर’ का जिक्र न किया जाए, तो देश की सियासत में दौर-ए-सादगी का मजमून अधूरा रहेगा। बिहार की सियासत के उस प्रतिष्ठित चेहरे का नाम सुर्खियों में तब आया जब मौजूदा केन्द्र सरकार ने 23 जनवरी 2024 को कर्पूरी ठाकुर को सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ देने का ऐलान किया। समाजवादी नेता रामनंदन मिश्र ने कर्पूरी को ‘ठाकुर’ की उपाधि दी थी। समाजवादी तहरीक की पैदाइश कर्पूरी ठाकुर को आजादी आंदोलन के दौरान पटना के कृष्णा टॉकीज हॉल में बर्तानिया हुकूमत के विरुद्ध दिए गए एक इंकलाबी भाषण के लिए अंग्रेजों ने जेल में डाल दिया था।
सन् 1952 में पहली बार विधायक बनने के बाद कर्पूरी ठाकुर को एक प्रतिनिधिमंडल के साथ ‘आस्ट्रिया’ जाने का मौका मिला था। आस्ट्रिया की राजधानी वियना में होने वाले उस इजलास की तर्जुमानी युगोस्लाविया के फौजी शासक ‘मार्शल टीटो’ कर रहे थे। समारोह में भाग ले रहे कर्पूरी ठाकुर का लिबास देखकर मार्शल टीटो इस कदर जज्बाती हुए कि गिफ्ट के रूप में एक कोट पैक करवाकर कर्पूरी ठाकुर के कमरे में भिजवा दिया। लेकिन अपने असूलों पर अडिग कर्पूरी ठाकुर ने मार्शल टीटो द्वारा तोहफे में दिए गए कोट को सरकारी कोष में जमा करवा दिया था। इसीलिए सादगी भरे किरदार की महानता से कर्पूरी ठाकुर को जननायक के रूप में जाना जाता था। अपने गांव के स्कूल में शिक्षक के रूप में पढ़ाई कराते वक्त कर्पूरी ठाकुर ने महसूस किया था कि गांव, देहात के गरीब बच्चों के लिए शिक्षा में अंग्रेजी विषय परेशानी का सबब बन रहा है। अत: सन् 1967 में बिहार के उपमुख्यमंत्री व शिक्षा मंत्री रहते कर्पूरी ठाकुर ने बिहार राज्य के शिक्षा पाठ्यक्रम से अंग्रेजी विषय की अनिवार्यता को ही समाप्त कर दिया था, ताकि समाज के हर वर्ग के छात्र शिक्षा हासिल कर सकें। वर्तमान में देश में विदेशों से डिग्रियां लाने की होड़ मची है। विदेशी शिक्षण संस्थानों से डिग्रियां हासिल करके जम्हूरियत की पंचायतों में विराजमान होकर अंग्रेजी झाडऩे वाले हुक्मरान देश के जमीनी हालात से मुखातिब होकर गुरबत की तासीर कैसे जानेंगे। हिंदी भाषा के प्रबल पक्षधर तथा वंशवाद के सख्त मुखालफीन रहे कर्पूरी ठाकुर ने अपनी सियासी विरासत को विस्तार देने की कोशिश भी नहीं की थी। मगर अवसरवाद व तोहमत के लिए मशहूर हो रही मौजूदा सियासत जाति, मजहब, क्षेत्रवाद व वंशवाद की तवाफ में मशगूल है। सियासी पटल पर भाषाई गरिमा को बरकरार रखना भी एक गंभीर चुनौती बन चुका है।
कई सियासी रहनुमाओं की जहरीली तकरीरों से समाज में हिकारत का माहौल पैदा हो रहा है। सियासी तकरीरों में जाति-मजहब का जिक्र किए बिना सियासत की तासीर बिगड़ जाती है। सत्ता की दहलीज पर पहुंचने का समीकरण अधूरा रह जाता है। राजनेता हों या मजहबी रहनुमां, लफ्जों का आधार होना चाहिए, मगर विडंबना है कि कई सियासी व मजहबी रहनुमाओं के धारदार अल्फाज लोगों के जज्बातों को आहत कर रहे हैं। मुल्क के इंकलाबी युवावेग ने कुर्बानियां देकर अंग्रेजों की सफ्फाक हुक्मरानी को हिंदोस्तान की सरजमीं से रुखसत कर दिया। शानो-शौकत वाली रजवाड़ाशाही ने जम्हूरियत की बहाली के लिए अपनी रियासतों का भारत में विलय कर दिया, लेकिन आजादी के बाद लोगों ने देश में जिस सादगी भरे जम्हूरी निजाम की कल्पना की थी, वास्तव में वो लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम नहीं हुई। मुल्क के रहबर सत्ता का मकसद समाज की खिदमत के बजाय आवाम पर हुकूमत करना मान बैठे हैं तथा अफसरशाही व नौकरशाही अपनी ड्यूटी को रोजगार का जरिया मान बैठे हैं। मुल्क का मुस्तकबिल युवावेग बेरोजगारी के बोहरान में फंसकर अपनी डिग्रियों को कोसकर रोजगार की जुस्तजू में भटक रहा है। हिंदोस्तान को आजाद कराने से लेकर देश में तरक्की की इबारत लिखने में युवा ताकत के दस्त-ए-अमल का किरदार अहम रहा है।
अत: प्रजातंत्र की बुनियाद युवावर्ग को बेरोजगारी के मर्ज से निजात दिलाकर ही मुल्क का इकबाल बुलंद होगा। भ्रष्टाचार देश के अर्थतंत्र में अस्थिरता का तनाजुर पैदा कर रहा है। जब देश का लगभग हर राज्य कर्ज के बोझ तले दबा है तथा अपने वोट की ताकत से राजनेताओं को जम्हूरियत की पंचायतों में पहुंचाने वाली देश की करोड़ों आबादी गुरबत से जूझकर गरीबी रेखा से नीचे बसर करने को मजबूर है, तो देश के तमाम इदारों पर हुक्मरानी करने वाली लीडरशिप को वीआईपी कल्चर को त्याग कर सादगी व शालीनता की मिसाल कायम करके सियासत का मिजाज दुरुस्त करना होगा। अजीम सियासतदान कर्पूरी ठाकुर की सियासी कार्यशैली तस्दीक करती है कि सरल व सामान्य जीवनशैली से भी सियासत की बुलंदी पर पहुंचा जा सकता है। बहरहाल यदि देश की सियासी व्यवस्था गुरबत का दर्द समझने वाले कर्पूरी ठाकुर जैसे महान नेता के सियासी आदर्शों को तसलीम करने का प्रयास करे तो यकीनन देश में आदर्शवादी सियासत की मिसाल कायम हो सकती है। बेदाग छवि वाले कर्पूरी ठाकुर का सियासी कद हमेशा ऊंचा रहेगा।
प्रताप सिंह पटियाल
स्वतंत्र लेखक
divyahimachal