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महामारी बनता कैंसर

5 Jan 2024 11:14 AM GMT
महामारी बनता कैंसर
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एक हालिया अध्ययन में पाया गया है कि 2019 में भारत में कैंसर के लगभग 12 लाख नये मामले सामने आये थे और इससे 9.3 लाख मौतें हुई थीं. लांसेट के क्षेत्रीय जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट में विशेषज्ञों ने रेखांकित किया है कि भारत, चीन और जापान में सबसे अधिक कैंसर मरीज पाये जा रहे …

एक हालिया अध्ययन में पाया गया है कि 2019 में भारत में कैंसर के लगभग 12 लाख नये मामले सामने आये थे और इससे 9.3 लाख मौतें हुई थीं. लांसेट के क्षेत्रीय जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट में विशेषज्ञों ने रेखांकित किया है कि भारत, चीन और जापान में सबसे अधिक कैंसर मरीज पाये जा रहे हैं. इस मामले में एशिया में चीन के बाद भारत दूसरे स्थान पर है. एक अन्य आकलन में बताया गया है कि अगर इसी दर से कैंसर बढ़ता रहा, तो 2040 तक नये मामलों की सालाना संख्या 20 लाख हो सकती है.

अगर हम भारत की तुलना पश्चिमी देशों और समकक्ष विकासशील देशों से करें, तो बीते दो दशकों में कैंसर के मरीजों की वृद्धि दर में अपेक्षाकृत कम बढ़त हुई है, लेकिन अधिक जनसंख्या होने तथा ज्यादा जांच होने से रोगियों की संख्या अधिक है. इस कारण वर्तमान स्वास्थ्य सुविधाओं पर दबाव बढ़ता जा रहा है. अभी हमारे देश में प्रतिवर्ष विभिन्न प्रकार के लगभग 15 सौ कैंसर विशेषज्ञ निकलते हैं. इससे महानगरों में डॉक्टर बढ़े हैं, पर छोटे शहरों में चिकित्सकों के साथ-साथ आवश्यक संसाधनों का भी अभाव बना हुआ है. कैंसर उपचार के क्षेत्र में सरकारी प्रयासों के साथ-साथ निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ने से स्थिति अच्छी हुई है, लेकिन इसे संतोषजनक नहीं माना जा सकता है. कैंसर के मुख्य कारणों में तंबाकू सेवन, धूम्रपान, शराब पीना और प्रदूषण शामिल हैं.

अध्ययन में बताया गया है कि खैनी, गुटखा, सुपारी, पान मसाला जैसी चीजें बड़े पैमाने पर कैंसर का कारण बन रही हैं. यह बेहद चिंता की बात है कि डॉक्टरों की चेतावनी और जागरूकता अभियानों के बावजूद हमारे देश में शराब, तंबाकू, सिगरेट जैसे पदार्थों की लत बढ़ती जा रही है. कुछ वर्षों से भारत के बड़े हिस्से में वायु प्रदूषण की समस्या बढ़ती जा रही है. उल्लेखनीय है कि इन चीजों से कैंसर के अलावा हृदय रोग, फेफड़ा खराब होने जैसी गंभीर समस्याएं भी पैदा हो सकती हैं.

विशेषज्ञों का मानना है कि यदि कैंसर की पहचान शुरू में हो जाए, तो उसके निदान की संभावना भी अधिक होती है तथा मरीज को तकलीफ भी कम होती है. सरकारी और निजी बीमा से आबादी के बड़े हिस्से को राहत मिली है, पर कैंसर के उपचार में बहुत समय लगता है. उपचार के लिए मरीज और उसके परिजनों को अक्सर महानगर जाना पड़ता है. ऐसे में खर्च बहुत अधिक होता है. कैंसर होना रोगी और उसके परिवार पर पहाड़ टूट पड़ने जैसा होता है. इस स्थिति में उन्हें भावनात्मक सहयोग की भी आवश्यकता होती है. कुछ महानगरों में उनके मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल के लिए व्यवस्था है. इसका विस्तार किया जाना चाहिए. खान-पान, रहन-सहन, समुचित जांच जैसे पहलुओं पर ध्यान देकर अनेक तरह के कैंसर से बचाव संभव है.

प्रभात खबर के सौजन्य से सम्पादकीय

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