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भारतीय संस्कृति में हम सूर्य को ‘आराध्य देव’ मानते और पूजते आए हैं। बाल हनुमान और सूर्य की ‘मिथकीय कहानी’ आपने भी सुनी और पढ़ी होगी, लेकिन वैज्ञानिकों की जिज्ञासाओं, प्रयोगों और अनुसंधानों की सीमा अनंत है। वैज्ञानिक भी ‘सूर्य नमस्कार’ करते हैं, लेकिन वे सूर्य के भीतर के यथार्थ को भी जानना चाहते हैं। …
भारतीय संस्कृति में हम सूर्य को ‘आराध्य देव’ मानते और पूजते आए हैं। बाल हनुमान और सूर्य की ‘मिथकीय कहानी’ आपने भी सुनी और पढ़ी होगी, लेकिन वैज्ञानिकों की जिज्ञासाओं, प्रयोगों और अनुसंधानों की सीमा अनंत है। वैज्ञानिक भी ‘सूर्य नमस्कार’ करते हैं, लेकिन वे सूर्य के भीतर के यथार्थ को भी जानना चाहते हैं। यही विज्ञान का मर्म है। इस संदर्भ में भारत के इसरो का ‘आदित्य एल-1’ सौर मिशन अपनी मंजिल तक पहुंचा है, यकीनन यह एक असाधारण और ऐतिहासिक उपलब्धि है। यह इसरो का प्रथम प्रयोग है, जिसने ‘लैंग्रेज प्वाइंट-1’ तक पहुंच कर और अपनी कक्षा में स्थापित होकर अंतरिक्ष विज्ञान में एक और अध्याय जोड़ दिया है। अब भारत इस सफल प्रयोग के बाद अमरीका और जापान सरीखे देशों की जमात में शामिल हो गया है। ‘चंद्रयान-3’ और ‘आदित्य एल-1’ के सफल मिशनों के बाद भारत को ‘अंतरिक्ष राष्ट्र’ कहा जाने लगा है। नासा भी हमारे वैज्ञानिकों और इंजीनियरों के हुनर को सलाम करने लगा है और अब सभी की निगाहें ‘गगनयान’ मिशन पर लगी हैं। मिशन के यान ने एल-1 तक पहुंचने में 15 लाख किलोमीटर की दूरी तय की है। यह दूरी पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी का मात्र एक फीसदी ही है। कल्पना करें कि सूर्य पृथ्वी से कितनी दूर है। उसके बावजूद वह ऊर्जा और प्राणीय जीवन का मुख्य स्रोत है। आदित्य मिशन अगले 5 सालों तक सूर्य और उसकी गतिविधियों का अध्ययन करेगा। हररोज 1440 चित्र पृथ्वी पर भेजेगा। इस निष्कर्ष तक पहुंचने के प्रयास करेगा कि सूर्य के भीतर की हलचलें किस सीमा तक पृथ्वी को प्रभावित करती हैं।
मिशन पर 380 करोड़ रुपए से अधिक खर्च किए गए हैं, लेकिन मिशन के पेलोड सूर्य के जिन अनसुलझे रहस्यों को बेनकाब कर विश्व के सामने पेश करेंगे, वह बेमिसाल और अमूल्य कोशिश होगी। मिशन यान के डेक पर ‘मैग्नेटोमीटर’ लगा है, जिसका काम गुरुत्वाकर्षण की जानकारी जमा करना है। हालांकि एल-1 ऐसा बिंदु है, जहां सूर्य, ग्रह और तारों का गुरुत्वाकर्षण प्रभावहीन होता है, लिहाजा अध्ययन के लिए इसरो ने इस स्थान को चुना। यहीं से सूर्य की गतिविधियों पर लगातार निगाह बनी रहेगी। यह उपकरण सौर गतिविधियों की जानकारी भी जुटाएगा और सूर्य पर चलने वाली हवाओं का भी अध्ययन करेगा। सूर्य की लपटों को समझने का दायित्व ‘हेलियोज’ का है। सूर्य की कुल ऊर्जा और तीव्रता को भी समझा जा सकेगा। सूर्य पर हवा में मौजूद कणों का पता लगाने के लिए भी उपकरण है। सोलर अल्ट्रावॉयलेट इमेजिंग टेलीस्कोप पेलोड को पराबैंगनी रेंज के पास तस्वीरें लेने के लिए डिजाइन किया गया है। यह सौर विकिरण को भी मापेगा। सॉफ्ट एक्सरे स्पेक्ट्रोमीटर को भी पेलोड के तौर पर ले जाया गया है। यह एक तारे की तरह सूर्य का अध्ययन करने की क्षमता रखता है। यह सॉफ्ट एक्सरे प्रवाह को मापने का भी काम करेगा। ‘प्लाज्मा एनालाइजर पैकेज फॉर आदित्य’ (पापा) पेलोड को सौर ऊर्जा को समझने के लिए डिजाइन किया गया है। यह सूर्य पर चलने वाली हवाओं और उनकी संरचना को समझने में सक्षम है। सूरज पर मौजूद इलेक्ट्रॉन्स और भारी आयन की दिशा का पता भी लगाएगा। बेशक ‘आदित्य एल-1’ अंतरिक्ष विज्ञान और मिशन के संदर्भ में ‘मील का पत्थर’ है। जिस देश को सांप-सपेरों और गोबर वाला देश माना जाता था, आज वही देश अमरीका, जापान, रूस सरीखे देशों के अंतरिक्ष अनुसंधानों से होड़ ले रहा है। पूरे अभियान के दौरान हमारा मिशन अध्ययन में जुटा रहेगा।
By: divyahimachal