पीएम मोदी से तुर्किए के राष्ट्रपति एर्दोआन ने की मुलाकात, जानें इनसाइड स्‍टोरी

इन सबसे अलग करीब 180 भारतीय छात्र तुर्की में पढ़ाई कर रहे हैं। तुर्की की एयरलाइंस रोजाना इस्‍तानबुल से नई दिल्‍ली और मुंबई के बीच ऑपरेट होती हैं।

Update: 2022-09-17 07:57 GMT

समरकंद: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को उज्‍बेकिस्‍तान के समरकंद में आयोजित शंघाई को-ऑपरेशन संगठन (SCO) के शिखर सम्‍मेलन में शिरकत की। इस दौरान पीएम मोदी ने रूस के राष्‍ट्रपति व्‍लादिमिर पुतिन समेत कई सदस्‍य देशों के कुछ और राष्‍ट्राध्‍यक्षों से मुलाकात की। इन सबसे अलग जो मीटिंग सबसे ज्‍यादा हैरान करने वाली थी, वह थी तुर्की के राष्‍ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन के साथ उनकी द्विपक्षीय वार्ता। तुर्की जो पाकिस्‍तान का करीबी है, कश्‍मीर समेत कई मसलों पर भारत के खिलाफ रहा है। ऐसे में एर्दोगन की इस मीटिंग ने सबको चौंका दिया था। खुद तुर्की की तरफ से पीएम मोदी के साथ मुलाकात का अनुरोध किया गया था।


5 साल बाद मिले नेता
तुर्की के राष्‍ट्रपति एर्दोगन और पीएम मोदी की मुलाकात पहले से तय नहीं थी। तुर्की के अधिकारियों की तरफ से इस मीटिंग के लिए काफी जोर दिया गया था। पीएम मोदी ने मुलाकात के बाद कहा कि वार्ता का मुख्‍य बिंदु दोनों देशों के आर्थिक संबंध थे। ट्विटर पर पीएम मोदी ने लिखा, 'तुर्की के राष्‍ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन के साथ मुलाकात की और द्विपक्षीय संबंधों से जुड़े विस्‍तृत मसलों पर बात हुई जिसमें भारत और तुर्की के बीच गहरे आर्थिक संबंधों पर चर्चा भी शामिल थी।'विदेश मंत्रालय की तरफ से भी इस पर जानकारी दी गई। मंत्रालय ने भी कहा कि पिछले कुछ वर्षों में दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंधों में इजाफा हुआ है और दोनों पक्षों ने इस को समझा है।


पीएम मोदी और एर्दोगन आखिरी बार साल 2017 में मिले थे। भारत और तुर्की के संबंध पिछले कुछ सालों में बिगड़े हैं। साल 2019 में जब भारत ने कश्‍मीर से आर्टिकल 370 हटाया तो तुर्की ने पाकिस्‍तान के रुख का समर्थन किया। इतना ही नहीं यह देश कई मसलों पर पाकिस्‍तान के साथ खड़ा नजर आता है। ऐसे में अक्‍सर तुर्की की मंशा पर सवाल उठते रहते हैं। इसके अलावा फरवरी 2020 में जब दिल्‍ली में दंगे हुए तो उस समय तुर्की के राष्‍ट्रपति एर्दोगन ने इसे भारत में मुसलमानों का नरसंहार करार दिया था। फिर आखिर क्‍यों एर्डोगान, पीएम मोदी से मिलना चाहते थे?

कितना है व्‍यापार
भारत और तुर्की के बीच सन् 1948 में राजनयिक संबंधों की शुरुआत हुई थी। पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू थे जो इस देश की यात्रा पर गए। साल 2003 में तत्‍कालीन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी तुर्की की यात्रा पर गए थे। 19 सालों से कोई भी भारतीय पीएम इस देश की यात्रा पर नहीं गया है। साल 2008 में जब एर्दोगन देश के पीएम थे तो वह पहली भारत की यात्रा पर आए थे। इसके बाद जब वह साल 2017 में जब वह देश के राष्‍ट्रपति थे तो फिर भारत की यात्रा पर आए।

कितने का व्‍यापार और आयात-निर्यात
भारत और तुर्की के बीच मजबूत आर्थिक संबंध हैं और साल 1973 से इनकी शुरुआत हुई थी। उस समय दोनों देशों ने द्विपक्षीय व्‍यापार समझौता साइन किया था। इसके बाद साल 1983 में आर्थिक और तकनीकी सहयोग के लिए भारत-तुर्की ने एक साझा समझौता किया जिसे JCETC के तौर पर जानते हैं। भारत और तुर्की के बीच साल 2020-2021 में व्‍यापार 19.70 अरब डॉलर तक पहुंच गया और यह अपने आप में एक इतिहास है।

भारत की तरफ से तुर्की को खनिज तेल, खनिज ईधन, केमिकल और डाई, हाथ से बने फाइबर और कपास, कॉटन यार्न और टेक्‍सटाइल्‍स का निर्यात तुर्की को किया जाता है। वहीं तुर्की, भारत को मशीनरी, कंस्‍ट्रक्‍शन मैटेरियल जैसे पत्‍थर, प्‍लास्‍टर करने का सामान, लोहा और स्‍टील, ऑयल सीड्स, लौह अयस्‍क, इनऑर्गेनिक केमिकल्‍स, कीमती पत्‍थर और ताजे सेब को निर्यात करता है।


कई भारतीय कंपनियों जैसे टैफे, महिंद्रा, सोनालिका, टाटा, जिंदल, इंडो-रामा, बिरला सेल्‍यूलोज, पुंज लॉयड आदि ने इस देश में करीब 125 लाख डॉलर का निवेश किया है। वहीं भारत में तुर्की का निवेश करीब 223 लाख डॉलर का है। इन सबसे अलग करीब 180 भारतीय छात्र तुर्की में पढ़ाई कर रहे हैं। तुर्की की एयरलाइंस रोजाना इस्‍तानबुल से नई दिल्‍ली और मुंबई के बीच ऑपरेट होती हैं।


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