बीजिंग,(आईएएनएस)| संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 1996 में हर साल 15 अक्तूबर को विश्व ग्रामीण महिला दिवस मनाना निश्चित किया। इस दिवस की स्थापना का उद्देश्य खाद्य सुरक्षा और अनवरत विकास रणनीति में ग्रामीण महिलाओं की स्थिति और महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में अधिक से अधिक लोगों को जागरूक करना है। इस दिवस के मौके पर हम एक चीनी ग्रामीण महिला के बारे में बताएंगे।
चीन के हपेई प्रांत के छांगचो शहर में शू आईजू नाम की एक वरिष्ठ महिला कारीगर रहती हैं। वे 20 वर्षों में एक बेरोजगार महिला मजदूर से नये धंधे खोलने वाली महिला उद्यमी बन गयीं। उन्होंने न सिर्फ़ हाथ की बुनाई वाली इस चीनी परंपरागत तकनीक का प्रयोग कर अपना सपना पूरा किया, बल्कि स्थानीय तीन हजार से अधिक बेरोजगार महिला मजदूरों और ग्रामीण महिलाओं का नेतृत्व कर गरीबी को दूर भगाने का सपना भी पूरा किया।
छांगचो शहर के महिला संघ द्वारा बेरोजगार महिलाओं के लिये आयोजित एक प्रशिक्षण में शू आईजू को पता लगा कि बहुत-सी स्थानीय महिलाएं बेरोजगारी के चक्कर में अपने भविष्य को लेकर बहुत चिंतित हैं। शू उन महिलाओं के सामने मौजूद मुश्किलों को खूब समझती हैं। उनकी मदद करने के लिये वर्ष 2005 में शू आईजू ने एक टेक्सटाइल कंपनी की स्थापना की। फिर आई यांग यांग नाम के एक ब्रांड का पंजीकरण भी किया गया। उनका लक्ष्य है प्रेम से सुन्दर जीवन को बुनना और सूरज की रोशनी हर कोने में पहुंचाना। इस कंपनी की स्थापना से शू ने घर में बेरोजगार महिलाओं के लिये बिना दीवार वाले एक कारखाने का निर्माण किया है।
ज्यादा से ज्यादा बेरोजगार महिलाओं को सहायता देने के लिये शू आईजू हमेशा से अपनी कंपनी में बेरोजगार महिलाओं या ग्रामीण महिलाओं को शामिल करने पर कायम रहती हैं। दसेक वर्षों में उन्होंने क्रमश: छांगचो शहर के यूनहो क्षेत्र, शिनह्वा क्षेत्र, हाईशिंग काऊंटी, येनशान काऊंटी, यहां तक कि शानतु प्रांत की कई काऊंटियों में कंपनी की 16 शाखाओं की स्थापना की और तीन हजार से अधिक महिलाओं की रोजगार समस्या का समाधान किया। उनमें दो सौ से अधिक विकलांग महिलाएं भी शामिल हुई हैं।
शू आईजू हमेशा महिलाओं को कारीगर की भावना से कारीगर बनने का प्रोत्साहन देती हैं। उन्हें आशा है कि ज्यादा से ज्यादा महिलाएं अपने कार्य शुरू कर सकेंगी। उन्होंने कहा, अगर तुम केवल बुनाई की तकनीक सीखती हो, लेकिन तुम्हारे पास सपना नहीं है, तो ऐसे लोगों का भविष्य भी उज्जवल नहीं होगा। इसलिये जब मैं महिलाओं को प्रशिक्षण देती हूं और आदान-प्रदान करती हूं, तो इस दौरान मैं उनके बीच इस विचार का प्रसार-प्रचार भी करती हूं। ताकि वे अपना काम धंधा शुरू कर सकें।