नई दिल्ली। भारतीय विकेटकीपर ऋषभ पंत दिसंबर 2022 के अंत में एक भयानक कार एक्सीडेंट का शिकार हो गए थे. इस एक्सीडेंट के बाद से ऋषभ पंत अस्पताल में हैं. रिपोर्ट्स की माने तो ऋषभ पंत को अभी मैदान पर वापसी करने में तकरीबन एक साल का वक्त लग सकता है. इस बीच भारत के पूर्व फील्डिंग कोच आर श्रीधर ने ऋषभ पंत को लेकर एक बड़ा खुलासा किया है. टीम से अलग होने के बाद पूर्व कोच श्रीधर ने बताया कि ऋषभ पंत उनकी बात को नहीं सुनते थे. पूर्व कोच ने यह भी खुलासा किया कि ऋषभ पंत की जिद ने उन्हें पागल कर दिया था.
भारत के पूर्व फील्डिंग कोच आर श्रीधर ने अपनी किताब 'कोचिंग बियॉन्ड: माई डेज विद द इंडियन क्रिकेट टीम' में भारतीय क्रिकेट टीम और इसके खिलाड़ियों को लेकर कई खुलासे किए हैं. उनकी किताब के एक हिस्से में ऋषभ पंत के बारे में भी कई बातें लिखी हैं. श्रीधर ने ऋषभ पंत के साथ बिताए अपने वक्त के बारे में विस्तार से बताया है. उन्होंने बताया कि किस तरह ऋषभ पंत की ना सुनने की आदत और जिद की वजह से उन्होंने विकेटकीपर को सलाह देना बंद कर दिया था.
श्रीधर ने अपनी किताब में लिखा, "करियर की शुरुआत में कुछ ऐसे इनपुट थे, जिन्हें वह लेना नहीं चाहता था. उन्हें उस खेल पर भरोसा था, जिसने उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाया था. मैं कबूल करता हूं कि कभी-कभी ऋषभ पंत की यह जिद मुझे पागल कर देती थी. लेकिन गुस्सा होना या परेशान होना किसी की मदद नहीं कर सकता." टीम इंडिया के पूर्व कोच श्रीधर ने आगे लिखा, "मुझे ऋषभ पंत को अलग-अलग चीजें करने के लिए प्रेरित करने का एक तरीका खोजना था. यह सिर्फ उनके लिए ही था और सिर्फ ऋषभ पंत ही बता सकते थे कि यह बदलाव उनके लिए फायदेमंद हैं या नहीं. लेकिन वह बात मानते ही नहीं थे."
श्रीधर ने लिखा, "हमने प्रैक्टिस के दौरान एक साथ बहुत समय बिताया है, लेकिन जब वह बात नहीं सुन रहे थे तो एक वक्त पर मैंने ऋषभ पंत को सलाह और टिप्स देना ही बंद कर दिया. जब उनके हाथों से गेंद छूटती या वह लड़खड़ाते और मेरी तरफ देखते तो मैं उन्हें नजरअंदाज कर देता था. ऋषभ पंत काफी स्मार्ट हैं. ऐसे में उन्हें यह पता लगाने में ज्यादा वक्त नहीं लगा कि कुछ सही नही हैं." श्रीधर ने आगे लिखा कि ऋषभ पंत जब अपनी गलतियां दोहरा रहे थे तो उन्हें लगा कि अब सलाह लेने का वक्त है. कुछ दिनों बाद वह मेरे पास आए. उन्होंने कहा, "सर, आप कुछ नहीं कह रहे हैं. मुझे बताएं कि क्या करना है. मैंने मन ही मन मुस्कराते हुए कहा कि तुम्हें अपने दिमाग की बात माननी चाहिए, ना कि अपने हाथों की. इसके बाद उन्होंने मेरी सलाह मानी. जब दिमाग नेतृत्व करता है तो शरीर भी वैसे ही काम करता है. अब वह गेंद को अच्छे से पकड़ पा रहे थे.