रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते यूरोप ऊर्जा संकट का सामाना कर रहा

रूस यूक्रेन युद्ध (Russia-Ukraine War) का असर केवल यूरोप और पश्चिमी देशों पर ही पड़ रहा है तो ऐसा बिलकुल नहीं है. पूरे एशिया (Asia) में इसका असर साफ दिखाई देने लगा है. चीन पहले ही सूखे की आपदा झेल रहा है

Update: 2022-10-05 03:26 GMT

रूस यूक्रेन युद्ध (Russia-Ukraine War) का असर केवल यूरोप और पश्चिमी देशों पर ही पड़ रहा है तो ऐसा बिलकुल नहीं है. पूरे एशिया (Asia) में इसका असर साफ दिखाई देने लगा है. चीन पहले ही सूखे की आपदा झेल रहा है जिससे बिजली उत्पादन संकट में है. भारत (India) में रूस से तेल आयात होने के बाद भी ऊर्जा की मांग भी तेजी से बढ़ रही है. इसलिए उसे भी स्वच्छ ऊर्जा की ओर तेजी से बढ़ने की जरूरत है. वहीं जापान और दक्षिण कोरिया में भी ऊर्जा संकट के कारण नाभकीय ऊर्जा पर विचार हो रहा है. इंडोनेशिया की अपनी समस्याएं हैं तो श्रीलंका से यूक्रेन युद्ध के कारण उअपने अंदरूनी आर्थिक संकट उबरने में परेशानी महसूस कर रहा है. इसमें कोई शक नहीं रूस यूक्रेन युद्ध का प्रभाव एशिया पर गहरा पड़ रहा है.

ऊर्जा संकट का एशिया पर साया

दरअसल रूस यूक्रेन युद्ध के कारण दुनिया में एक तरह का ऊर्जा संकट आता दिखाई दे रहा है. यूरोप को अब रूस से प्राकृतिक गैस नहीं मिल रही है और यूरोप ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत देख रहा है.दुनिया के कई देश पहले से ही महंगाई का सामाना कर रहे हैं और एशिया के देश अपवाद नहीं हैं. अब निर्णायक समय आ गया है कि क्या एशिया के देश अपने सारे जीवाश्म ऊर्जा के स्रोत खत्म कर देंगे या फिर स्वच्छ ऊर्जा का दोगुना उत्पादन करना होगा.

चीन और भारत

दूसरी ओर चीन और भारत है जहां बढ़ती मांग एक बहुत बड़ी चुनौती हैं और इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ना तय है. सब कुछ इस बात से तय होगा कि ये देश आपूर्ति के लिए क्या करते है. चीन दुनिया में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में सबसे बड़ा उत्सर्जक है और उसने नेट जीरो का लक्ष्य साल 2060 का रखा है. लेकिन युद्ध के कारण चीन ने रूस से तो तेल लिया ही है बल्कि अपना कोयला उत्पादन भी बढ़ा दिया है.

चीन के खस्ता हाल

लेकिन चीन के साथ संकट ज्यादा बड़ा है. वहां सूखे की मार ने फसलों को तो तबाह किया ही है, वहां की नदियों का परिवहन भी ठप्प हो गया और जलविद्युत योजनाएं बंद होने का भी असर दिख रहा है. लेकिन चीन भी अक्षय ऊर्जा की ओर बढ़ रहा है लेकिन वह जीवाश्म ईंधन पर अपनी निर्भरता कितनी जल्दी कम कर खत्म कर पाता है यह देखने वाली बात है.

भारत की बढ़ती मांग

नेटजीरो के लक्ष्य के मामले में ही भारत चीन से पीछे है और वैश्विक उत्सर्जकों में उसका तीसरा स्थान है. लेकिन भारत ही ऐसा देश है जहां ऊर्जा की मांग बहुत तेजी से और बहुत ज्यादा बढ़ने वाली है. भारत को2030 तक अपने स्वच्छ ऊर्जा के लक्ष्य हासिल करने करने के ले 223 अरब डॉलर की जरूरत होगी.

स्वच्छ ऊर्जा का विकल्प नहीं

लेकिन समस्या यह है कि अभी भारत जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को खत्म नहीं कर सकता है. ज्यादा मांग को देखते हुए उसे स्वच्छ ऊर्जा में भारी निवेश करना ही होगा. भारत अक्षय ऊर्जा में ज्यादा निवेश कर भी रहा है उसका इरादा अपने ऊर्जा आवश्यक्ता को स्वच्छ ऊर्जा से पूरा करने का लक्ष्य 2030 तक का है. रूस यूक्रेन युद्ध ने भारत को अपनी ऊर्जा नीति पर पुनर्विचार करने पर मजबूर कर दिया है.


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