एक सैटेलाइट हल कर सकता है यूरोप का ऊर्जा संकट
यूरोप में सर्दियों के मौसम आते ही ऊर्जा की मांग बहुत ज्यादा बढ़ जाती है. अपनी ऊर्जा के लिए यूरोप रूस से काफी मात्रा में प्राकृतिक गैस खरीदता था. उसकी दो तिहाई से ज्यादा ऊर्जा की जरूरत इसी गैसे से पूरी होती थी.
यूरोप में सर्दियों के मौसम आते ही ऊर्जा की मांग बहुत ज्यादा बढ़ जाती है. अपनी ऊर्जा के लिए यूरोप रूस से काफी मात्रा में प्राकृतिक गैस खरीदता था. उसकी दो तिहाई से ज्यादा ऊर्जा की जरूरत इसी गैसे से पूरी होती थी. लेकिन रूस यूक्रेन युद्ध (Russia Ukraine War) के कारण रूस ने इस गैस की आपूर्ति बंद कर दी है जिससे यूरोप में ऊर्जा संकट (Energy Crisis in Europe) खड़ा हो गया है. इससे निपटने के लिए वैज्ञानिकों ने एक सौर ऊर्जा वाला यान अंतरिक्ष में भेजने का सुझाव दिया है जो सूर्य से ऊर्जा लेकर (Satellite harnessing solar power) उसे पृथ्वी पर भेज सकेगा. लेकिन यह काम इतना आसान नहीं है.
यूरोप का गहराता ऊर्जा संकट
रूस ने तो यूरोप को गैस की आपूर्ति बंद कर ही दी है. लेकिन हाल ही में उसकी बाल्टिक सागर से गुजरने वाली नॉर्ड स्ट्रीम पाइपलाइन में दरारें आने की खबर ने यूरोप में हलचल मचा दी है. इसका साफ मतलब है कि अब यूरोप का ऊर्जा संकट लंबा चलने वाला है. इसी के चलते यूरोप को अब सुरक्षित और निश्चित ऊर्जा स्रोत की बहुत जरूरत हो गई है.
ऊर्जा के अन्य स्रोत
यूरोप इसके लिए अन्य देशों से ऊर्जा लेने करने की कोशिश तो कर रहा है, लेकिन वह इसके स्थायी समाधान निकालने पर भी काम कर रहा है. इसी को देखते हुए वैज्ञानिकों ने एक समाधान सुझाया है. उन्होंने एक ऐसा सैटेलाइट बनाने की बात कही हो जो सौर ऊर्जा हासिल कर पृथ्वी पर उसे सुरक्षित रूप से भेज सके.
बहुत फायदेमंद हो सकता है ये
अंतरिक्ष पर आधारित सौर ऊर्जा अभी केवल एक सैद्धांतिक विचार है. लेकिन इससे ऊर्जा क्षेत्र कार्बन विहीन हो सकता है. जो फिलहाल जीवाश्म ईंधन पर बहुत ही ज्यादा निर्भर है और जलवायु को प्रदूषित करने का एक बहुत ही बड़ा स्रोत है. यह एक विशाल भूराजनैतिक समस्याओं की भी स्रोत है. वहीं दूसरी ओर यूरोपीय स्पेस एजेंसी का कहना है कि हालिया अध्ययन बताते हैं कि यह समाधान काम कर सकता है.
कैसे काम करेगा सैटेलाइट
इस सैटेलाइट को सोलारिस नाम दिया गया है और इसे भूस्थिर कक्षा में प्रक्षेपित किया जा सकता है जहां ये सूर्य की रोशनी का चौबीस घंटे दोहन करेगा और उसके बाद उसे कम शक्ति के घनत्व वाली माइक्रोवेव तरंगों में बदल कर एक बीम के जरिए धरती के रिसीवर स्टेशनों पर भेजेने का काम करेगा. लेकिन इसे अमल में लाना आसान काम नहीं होगा.
सबसे बड़ी समस्या
ईसा का कहना है कि इस तकनीक को लागू करने में एक बहुत बड़ी तकनीकी चुनौती है जिससे उबरना बहुत जरूरी है. सूर्य से ऊर्जा लेने के लिए उसे सही प्रारूप में बदल कर धरती पर भेजने के लिए सैटेलाइट में कम से कम कुछ किलोमीटर लंबे सौर पैनल लगाने होंगे और धरती पर अंतरिक्ष से बीम हासिल करने के लिए काफी बड़े एंटीना की जरूरत भी होगी.
और यह अध्ययन भी जरूरी
चुनौती इतने बड़े पैमाने पर इतने उच्च कारगरता वेले फोटो वोल्टिक, उच्च शक्ति के इलेक्ट्रॉनिक और रेडियो फ्रीक्वेंसी बीम के सिस्टम बनाना होगी. इसके अलावा कम शक्ति वाली माइक्रोवेव तरंगों का इंसान और अन्य जीवों की सेहत के साथ दूसरे विमान और सैटेलाइट पर क्या असर होगा, अभी इसका अध्ययन और आंकलन भी करना है.