युधिष्ठिर को श्रीकृष्ण ने सुनाई थी 'रक्षा बंधन' की यह पौराणिक कथा, क्या आप जाने इसके बारे में
जनता से रिश्ता वेबडेस्क| हिन्दू धर्म में रक्षाबंधन का त्योहार भाई-बहनों के प्रेम का प्रतीक माना गया है. ये पर्व हर वर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. इस दौरान बहनें अपने भाइयों की समृद्धि और लंबी आयु के लिए, उनकी कलाई पर रंग-बिरंगी राखियां बांधती हैं. वहीं भाई भी अपनी बहनों को उनकी रक्षा का वचन देते हैं. इस बार रक्षाबंधन 22 अगस्त (रविवार) को मनाया जाएगा.
रक्षाबंधन 2021 शुभ मुहूर्त
हिन्दू पंचांग के अनुसार, रक्षा बंधन का पर्व श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. वर्ष 2021 में श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि 21 अगस्त (शनिवार) शाम 07 बजकर 03 मिनट से आरंभ होगी और उसकी समाप्ति अगले दिन 22 अगस्त (रविवार) शाम 05 बजकर 33 मिनट पर होगी. ऐसे में इस वर्ष ये पर्व 22 अगस्त को ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा. क्या आप जानते हैं कि महाभारत काल में धर्मराज युधिष्ठिर के कहने पर स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने रक्षा बंधन की पावन कथा सुनाई भी. श्री कृष्ण ने धर्मराज से कहा था कि इस कथा को सुनने वाले जातकों के सब दुख दूर होते हैं.
रक्षा बंधन की पौराणिक कथा
एक बार युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा- 'हे अच्युत! मुझे रक्षा बंधन की वह कथा सुनाइए जिससे मनुष्यों की प्रेतबाधा तथा दुख दूर होता है.' भगवान कृष्ण ने कहा- हे पांडव श्रेष्ठ! एक बार दैत्यों तथा सुरों में युद्ध छिड़ गया और यह युद्ध लगातार बारह वर्षों तक चलता रहा. असुरों ने देवताओं को पराजित करके उनके प्रतिनिधि इंद्र को भी पराजित कर दिया. ऐसी दशा में देवताओं सहित इंद्र अमरावती चले गए. उधर विजेता दैत्यराज ने तीनों लोकों को अपने वश में कर लिया. उसने राजपद से घोषित कर दिया कि इंद्रदेव सभा में न आएं तथा देवता व मनुष्य यज्ञ-कर्म न करें. सभी लोग मेरी पूजा करें. दैत्यराज की इस आज्ञा से यज्ञ-वेद, पठन-पाठन तथा उत्सव आदि समाप्त हो गए.
धर्म के नाश से देवताओं का बल घटने लगा. यह देख इंद्र अपने गुरु वृहस्पति के पास गए तथा उनके चरणों में गिरकर निवेदन करने लगे- गुरुवर! ऐसी दशा में परिस्थितियां कहती हैं कि मुझे यहीं प्राण देने होंगे. न तो मैं भाग ही सकता हूं और न ही युद्धभूमि में टिक सकता हूं. कोई उपाय बताइए. वृहस्पति ने इंद्र की वेदना सुनकर उसे रक्षा विधान करने को कहा. श्रावण पूर्णिमा को सुबह निम्न मंत्र से रक्षा विधान संपन्न किया गया.
'येन बद्धो बलिर्राजा दानवेन्द्रो महाबलः.
तेन त्वामभिवध्नामि रक्षे मा चल मा चलः.'
इंद्राणी ने श्रावणी पूर्णिमा के पावन अवसर पर द्विजों से स्वस्तिवाचन करवा कर रक्षा का तंतु लिया और इंद्र की दाहिनी कलाई में बांधकर युद्धभूमि में लड़ने के लिए भेज दिया. 'रक्षा बंधन' के प्रभाव से दैत्य भाग खड़े हुए और इंद्र की विजय हुई. राखी बांधने की प्रथा का सूत्रपात यहीं से होता है. (Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं. Hindi news18 इनकी पुष्टि नहीं करता है. इन पर अमल करने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें.)