ग्रह दोष से मुक्ति दिलाते हैं ये रत्न, जानें कब पहनें कौन सा रत्न

Update: 2022-03-29 11:59 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क |  ज्योतिष शास्त्र में रत्नों का अहम स्थान है. माना जाता है कि ग्रहों के अशुभ प्रभाव को कम करने और जीवन को खुशहाल बनाने में रत्न अहम भूमिका निभाते हैं. ज्योतिष के जानकार बताते हैं कि रत्नों का असर किसी भी प्रकार से कम नहीं है, परंतु इसे धारण करने के लिए उपयुक्त ग्रह, राशि और समय होना चाहिए. अन्यथा रत्न जितना अधिक लाभकारी होता है, उससे कहीं अधिक नुकसान भी दे सकता है. ऐसे में जानते हैं किस रत्न को धारण करने के लिए क्या नियम बताए गए हैं.

कौन सा रत्न कब करना चाहिए धारण?
सूर्य- सूर्य को मजबूत बनाने के लिए माणिक्य धारण करने की सलाह दी जाती है. इस रत्न को धारण करने के लिए पुष्य योग और रविवार का निर्धारित करना चाहिए. कम से कम सवा 5 रत्ती का माणिक को सोने की अंगूठी में अनामिका अंगुली में धारण करना चाहिए.
चंद्रमा- चंद्रमा की शुभता के लिए मोती धारण किया जाता है. ये रत्न कम से कम सवा 3 रत्ती का होना चाहिए. मोती को चांदी की अंगूठी में रोहिणी नक्षत्र के दौरान शुक्लपक्ष के किसी सोमवार के दिन धारण करना चाहिए.
बुध- ज्योतिष शास्त्र के जानकार बुध ग्रह की शुभता के लिए पन्ना रत्न धारण करने की सलाह देते हैं. पन्ना के कई रूप हैं. जिनमें से मोर पंख के समान वाला पन्ना सबसे अच्छा माना जाता है. हालांकि ये पारदर्शी और चमकीला होना चाहिए. सोने या प्लेटिनम की धातु में कम से कम 6 रत्ती का पन्ना सबसे छोटी अंगुली में धारण करना चाहिए. इसे उत्तरा फाल्गनी नक्षत्र में किसी बुधवार के दिन धारण करना अच्छा माना गया है.
बृहस्पति- बृहस्पति के पीला पुखराज सबसे उत्तम रत्न है. पुखराज 5, 7, 9 या 11 रत्ती में धारण करना चाहिए. साथ ही इसे सोने की अंगूठी में गुरु-पुष्य योग में धारण करना चाहिए. पुखराज को तर्जनी अंगुली में धारण करना अच्छा माना गया है.
शुक्र- शुक्र को मजबूत बनाने के लिए हीरा सबसे प्रभावशाली रत्न है. यह कम से कम दो कैरेट का होना चाहिए. हीरा मृगशिरा नक्षत्र के दौरान शुक्रवार के दिन मध्यमा अंगुली में धारण करना चाहिए.
शनि- शनि के प्रकोप से मुक्ति पाने के लिए नीलम रत्न सर्वोत्तम है. इस रत्न को 5, 6, 7, 9 और 11 रत्ती में श्रवणा नक्षत्र के दौरान किसी शनिवार के दिन मध्यमा अंगुली में पंचधातु की अंगूठी में धारण करना चाहिए.
राहु- राहु के दोष से मुक्ति पाने के लिए गोमेद रत्न धारण करने की सलाह दी जाती है. इसे उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में बुधवार या शनिवार को धारण करना शुभ होता है. इसके अलावा इसे पंचधातु में मध्यमा अंगुली में धारण करना चाहिए.
केतु- केतु के दुष्प्रभाव से मुक्ति पाने के लिए लहसुनिया रत्न धारण किया जाता है. इसे गुरु-पुष्य योग में गुरुवार के दिन सूर्योदय से पहले धारण करना चाहिए. लहसुनिया को भी पंचधातु के साथ मध्यमा अंगुली में धारण करना चाहिए.


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