भगवान शिव को प्रसन्न करने वाली कांवड़ यात्रा कैसे हुई शुरू,जानिए महत्व और नियम

हिंदू धर्म में सावन का महीना बहुत महत्वपूर्ण होता है. शिवभक्तों को इस महीने का बेसब्री से इंतजार रहता है.

Update: 2021-07-15 12:43 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क :- हिंदू धर्म में सावन का महीना बहुत महत्वपूर्ण होता है. शिवभक्तों को इस महीने का बेसब्री से इंतजार रहता है. इस पूरे महीने भगवान शिव और माता पार्वती की विधि विधान से पूजा अर्चना की जाती है. इस बार सावन का महीना 25 जुलाई से शुरू हो रहा है. इस महीने में शिव भक्त कावड़ यात्रा पर जाते हैं. कावड़ियों के लिए ये यात्रा बहुत महत्वपूर्ण होती है. हालांकि कोरोना की वजह से कांवड़ यात्रा को लेकर संशय की स्थिति बनी हुई है.

सावन के महीने में कांवड़ियां कंधे पर गंगाजल लेकर आते हैं और प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग पर चढ़ाते हैं. इस दौरान श्रद्धालु कांवड़ को जमीन पर नहीं रखते हैं. कांवड़ चढ़ाने वाले लोगों को कांवड़ियां कहा जाता है. ज्यादातर कांवड़ियां केसरी रंग के कपड़े पहनते हैं. ज्यादातर लोग गौमुख, इलाहबाद, हरिद्वार और गंगोत्री जैसे तीर्थस्थलों से गंगाजल भरते हैं. इसके बाद पैदल यात्रा कर शिवलिंग पर चढ़ाते हैं.
भगवान परशुराम ने की थी कावड़ की शुरुआत
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सबसे पहले भगवान परशुराम ने कांवड़ लाकर शिवलिंग पर गंगाजल से अभिषेक किया था. मान्यता है कि उन्होंने गढ़मुक्तेश्वर से गंगाजल लाकर शिवलिंग पर चढ़ाया था. इसके बाद से सावन के महीने में कांवड़ में गंगाजल भरकर शिवलिंग पर चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई है. मान्यता है कि जो लोग सावन के महीने में कांवड़ चढ़ाते उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती है.
वहीं, कुछ लोगों का मानना हैं कि सबसे पहले त्रेतायुग में श्रवण कुमार न कांवड़ यात्रा की थी. उनके अंधे माता- पिता ने हरिद्वार में गंगा स्नान करने की इच्छा जताई थी. श्रवण कुमार ने माता पिता की इच्छा को पूरा करते हुए कांवड़ में बैठाकर हरिद्वार में स्नान कराया. वापस लौटते समय श्रवण कुमार गंगाजल लेकर आए और उन्होंने शिवलिंग पर चढ़ाया. इसे ही कांवड़ यात्रा की शुरुआत माना जाता है.
कांवड़ यात्रा के नियम
1. मान्यता है कि कांवड़ यात्रा के नियम बेहद सख्त हैं जो व्यक्ति इन नियमों का पालन नहीं करते हैं उनकी यात्रा अधूरी मानी जाती है. इसके अलावा उन्हें कई तरह की परेशानियों का सामना भी करना पड़ता है.
2. कांवड़ यात्रा के दौरान किसी भी तरह का नशा करना वर्जित माना गया है. इसके अलावा मांसहारी भोजन करने की भी मनाही है.
3. कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड को जमीन पर नहीं रखना चाहिए. अगर आपको कही रुकना हैं तो स्टैंड या पेड़ के ऊंचे स्थल पर रखें. कहते हैं अगर किसी व्यक्ति ने कांवड़ को नीचे रखा तो उसे दोबारा गंगाजल भरकर यात्रा शुरू करनी पड़ती है.
4. कांवड़ यात्रा के दौरान पैदल चलने का विधान है. अगर आप कोई मन्नत पूरी होने पर यात्रा कर रहे हैं तो उसी मन्नत के हिसाब से यात्रा करें.


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