हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियां होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही देवशयनी एकादशी कहा जाता है। कहीं-कहीं इस तिथि को ‘पद्मनाभा’ भी कहते हैं। सूर्य के मिथुन राशि में आने पर ये एकादशी आती है।
हिन्दू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ शुक्ल एकादशी को देवशयनी एकादशी, विष्णु-शयनी एकादशी, आषाढ़ी एकादशी और हरिशयनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन से चातुर्मास की भी शुरूआत हो जाएगी, जिसमें कई प्रकार के मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, देवशयनी एकादशी का व्रत सब व्रतों में उत्तम है।
इस व्रत से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और जो मनुष्य इस व्रत को नहीं करते वे नरकगामी होते हैं। इस व्रत के करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं। हालांकि व्रती को उसका व्रत का फल तभी मिलता है जब वह देवशयनी एकादशी व्रत को विधि-विधान से कर व्रत का श्रवण या पाठ करता है। इसी दिन से चातुर्मास का आरंभ माना जाता है। इस दिन से भगवान श्री हरि विष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं और फिर लगभग चार माह बाद तुला राशि में सूर्य के जाने पर उन्हें उठाया जाता है। उस दिन को देवोत्थानी एकादशी कहा जाता है। इस बीच के अंतराल को ही चातुर्मास कहा गया है। देवशयनी एकादशी व्रत 29 जून यानी की आज रखा जाएगा।
स में विवाह, मुंडन, ग्रह प्रवेश जैसे मांगलिक और शुभ कार्यों पर विराम लग जाता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी का व्रत भगवान श्री हरि विष्णु जी की कृपा प्राप्त करने के लिए उत्तम फलदायी मानी गई है। वहीं इस दौरान कुछ ऐसे कार्य आते हैं जो भूलकर भी नहीं करना चाहिए नहीं तो वैवाहिक जीवन में तनाव आने लगता है साथ ही करियर में बाधाएं प्रकट होने लगती है। आइए जानते हैं देवशयनी एकादशी व्रत के नियम, लाभ और उपाय।
देवशयनी एकादशी व्रत के लाभ (Devshayani Ekadashi Vrat Benefit)
देवशयनी एकादशी का व्रत मन को एकाग्र कर जीवन को सुखमय बनाता है।
देवशयनी एकादशी तिथि पर उपवास रखने से सात जन्मों के पाप धुल जाते हैं और मृत्यु के बाद मोक्ष मिलता है।
इस व्रत के तेज से मानव को नर्क की वेदनाएं नहीं झेलनी पड़ती हैं, अकाल मृत्यु का डर नहीं रहता।
देवशयनी एकादशी का व्रत करने से सिद्धि प्राप्त होती है।
देवशयनी एकादशी का व्रत रखने और विष्णु पूजा करने से हमारा आचरण शुद्ध होता है और मानसिक विकार समाप्त होते हैं।
देवशयनी एकादशी पर न करें ये काम (Devshayani Ekadashi Vrat Rules)
देवशयनी एकादशी पर तुलसी के पौधे में जल न चढ़ाएं। इस दिन विष्णु प्रिय तुलसी माता भी निर्जला व्रत रखती हैं। साथ ही इस दिन तुलसी दल न तोड़े इससे माता लक्ष्मी रुष्ट हो जाती हैं।
देवशयनी एकादशी पर दातुन करना, दूसरे की निंदा करना पाप का भागी बनाता है।
देवशयनी एकादशी चावल का सेवन और अक्षत का दान करना निषेध माना जाता है। ऐसा करने पर अगले जन्म में कीड़े-मकोड़े की योनि में जन्म होता है।
इस दिन स्त्री प्रसंग न करें। एकादशी का व्रत दशमी तिथि से शुरू हो जाता है। ऐसे में दशमी तिशि से द्वादशी तिथि तक ब्रह्मचर्य का पालन करें।
देवशयनी एकादशी व्रत में तन के साथ मन की शुद्धता भी रखें। मन में बुरे ख्याल न लाएं, किसी को गलत शब्द न बोलें।