कहा जाता है कि बच्चों की पहली पाठशाला उसके घर से शुरू होती है और उसके पहले गुरू उसके माता-पिता होते हैं. माता-पिता के संस्कार ही बच्चे के व्यक्तित्व के निर्माण की नींव बनते हैं. इसलिए मां-बाप को चाहिए कि वे बचपन से ही बच्चों ही हर अच्छी और बुरी आदत पर नजर रखें. अच्छी आदतों को बढ़ावा दें और बुरी आदतों को छुड़वाएं.
लेकिन कई बार माता-पिता बच्चों की छोटी उम्र देखकर उनकी कुछ आदतों को नजरअंदाज कर देते हैं, यही आदतें आगे चलकर बच्चों के लिए ही नहीं बल्कि उनके माता-पिता के लिए भी मुश्किलें पैदा करती हैं. आचार्य चाणक्य ने भी चाणक्य नीति में ऐसी दो आदतों का जिक्र किया है, जिन पर ध्यान देना बहुत जरूरी है. जानिए उन आदतों के बारे में.
झूठ बोलने की आदत
चाणक्य नीति के अनुसार कई बार बच्चे माता-पिता से झूठ बोलते हैं और मां बाप उसे बच्चे की शैतानी समझकर नजरअंदाज कर देते हैं. ऐसे हालात में मां बाप को बच्चे को प्यार से समझाना चाहिए और उसे झूठ बोलने से मना करना चाहिए. अगर ये आदत समय रहते नहीं संभाली तो आगे चलकर ये बच्चे का भविष्य खराब कर सकती है और उसे गलत राह पर ले जा सकती है.
जब बच्चे बात न मानें
कुछ बच्चे जिद्दी होते हैं और माता पिता की बात नहीं मानते हैं. ऐसे बच्चों को मनमानी करने की आदत हो जाती है और वो सही और गलत का फर्क नहीं समझ पाते. इसलिए बच्चों की इस आदत को बचपन में ही सुधार देना चाहिए. इसके लिए बच्चों को प्यार से सही और गलत का फर्क समझाएं.
महापुरुषों की सुनाएं कहानियां
चाणक्य के अनुसार बच्चों को बचपन से महापुरुषों की कहानियां सुनानी चाहिए, इससे बच्चों को प्रेरणा मिलती है और अच्छे विचार पनपते हैं. ऐसे में बच्चों के मन में उनके जैसे बनने की इच्छा विकसित होती है. यदि महापुरुष बच्चों के रोल मॉडल बनेंगे तो उनका भविष्य भी बेहतर होगा.
प्यार से समझाएं
आचार्य चाणक्य का मानना था कि बच्चों को हमेशा प्यार से ही समझाना चाहिए क्योंकि मारपीट से बच्चे जिद्दी होते हैं. हालांकि पांच साल के बाद आप बच्चों के साथ थोड़ी बहुत सख्ती बरत सकते हैं. लेकिन बच्चों पर हाथ उठाने से बचना चाहिए.