वट सावित्री पर इस साल खास संयोग, बन रहा है यहां जानें- शुभ मुहूर्त व् महत्त्व

| वट सावित्री का इस साल व्रत 30 मई को है। वट सावित्री का व्रत हर साल ज्येष्ठ महीने के अमावस्या तिथि के दिन रखा जाता है।

Update: 2022-05-23 09:58 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क |   वट सावित्री का इस साल व्रत 30 मई को है। वट सावित्री का व्रत हर साल ज्येष्ठ महीने के अमावस्या तिथि के दिन रखा जाता है। इस दिन सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए भगवान विष्णु और महालक्ष्मी के साथ-साथ वट यानी बरगद के वृक्ष की पूरे विधि विधान से पूजा आराधना करती हैं। आपको बता दें कि ज्येष्ठ अमावस्या के दिन शनि जयंती भी मनाई जाती है।

इस साल वट सावित्री व्रत के दिन शनि जयंती और सोमवती अमावस्या का शुभ संयोग बन रहा है। वट सावित्री पर शनि जयंती का संयोग बनने के कारण इस दिन शनिदेव की खास पूजा अर्चना की जाएगी। शनिदोष से पीड़ित जातकों के लिए यह दिन खास है।
वहीं सोमवार के दिन पड़ने वाली अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहा जाता है। सोमवार का दिन इस व्रत पड़ने की इसका महत्व कई गुना अधिक बढ़ गई है। सोमवती अमावस्या के दिन स्नान, दान व पितरों की पूजा का विधान होता है। यह साल की आखिरी सोमवती अमावस्या होगी। अब सोमवती अमावस्या का संयोग 2023 में बनेगा।
वट सावित्री व्रत के दिन सुकर्मा योग रात 11 बजकर 39 मिनट तक रहेगा। इसके बाद धृति योग लग जाएगा। वैदिक ज्योतिष पंचांग में इन दोनों योगों को बेहद शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इन योग में किए गए कार्य सफल होते हैं और जातकों को तरक्की मिलती है।
वट सावित्री व्रत शुभ मुहूर्त 
इस बार वट सावित्री व्रत 30 मई 2022, सोमवार को है। अमावस्या तिथि 29 मई को दोपहर 02 बजकर 55 मिनट से शुरू होकर 30 मई को शाम 05 बजे समाप्त होगी। ध्यान रहे वट सावित्री व्रत 30 मई 2022, सोमवार को रखा जाएगा।
तिथि- 30 मई, 2022, सोमवार
अमावस्या तिथि प्रारंभ- 29 मई, 2022, दोपहर 02:54 बजे से
अमावस्या तिथि का समापन- 30 मई, 2022, सांय 04:59 बजे
वट सावित्री व्रत जरूर करें ये काम
इस दिन दान पुण्य का भी खास महत्व है। कई जगहों पर इस दिन सास को बायना देने की भी परंपरा है। कहा जाता है कि इस दिन सास को खाना, फल, कपड़े आदि का दान करना बहुत शुभ होता है। इसके अलावा अपने से किसी भी बड़े को भी दान किया जाता है। हाथ का पंखा, खरबूज और आम का दान के लिए इस्तेमाल होता है। माना जाता है कि वट सावित्री की पूजा से घर में सुख-समृद्धि और माता लक्ष्मी का वास होता है।
वट सावित्री पर बरगद के पेड़ की पूजा की मान्यता
वट सावित्र के दिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र की कामना के साथ बरगद के पेड़ की चारों तरफ 11, 21 या फिर 108 परिक्रमा भी करती हैं। इसके बाद उसके चारों ओर कलावा बांधती हैं और कथा सुनी जाती है। इस दिन भीगे हुए चने खाने की भी परंपरा है। कहा जाता है कि इस दिन 11 भीगे हुए चने बिना चबाए खाए जाते हैं। उसी को खाकर व्रत का समापन होता है।
बरगद के पेड़ पर त्रिदेव करते हैं वास
धर्म शास्त्रों में बरगद के पेड़ पर त्रिदेवों का वास माना गया है। कहा जाता है कि बरगद के पेड़ के जड़ों में ब्रह्मा, तने में विष्णु और शाखाओं में शिव जी का वास होता है। वहीं बरगद के वृक्ष पर हर वक्त माता लक्ष्मी का निवास होता है। इतना ही नहीं बरगद के पेड़ से लटकती हुई जड़ों को सावित्री के रूप में माना गया है। कहा जाता है कि मार्कंडेय ऋषि को भगवान कृष्ण ने बरगद के पत्ते पर ही दर्शन दिया था। ऐसी मान्यता है कि इसलिए बरगद के वृक्ष की पूजा करने से मनोवांछित फल प्राप्ति होती है।
वट पूर्णिमा व्रत विधि 
वट सावित्री व्रत वाले दिन सुहागिन महिलाएं सह जल्दी उठकर नृत्य क्रिया से निव्रित होकर और स्नान करें। स्नान के बाद व्रत का संकल्प लें। शृंगार जरूर करें। साथ ही इस दिन पीला सिंदूर लगाना शुभ माना जाता है। इस दिन बरगद के पेड़ के नीचे सावित्री-सत्यवान और यमराज की मूर्ति रखें। बरगद के पेड़ में जल डालकर उसमें पुष्प, अक्षत, फूल और मिठाई चढ़ाएं। सावित्री-सत्यवान और यमराज की मूर्ति रखें। बरगद के वृक्ष में जल चढ़ाएं। वृक्ष में रक्षा सूत्र बांधकर आशीर्वाद मांगें। वृक्ष की सात बार परिक्रमा करें। इसके बाद हाथ में काले चना लेकर इस व्रत का कथा सुनें। कथा सुनने के बाद पंडित जी को दान देना न भूलें। दान में आप वस्त्र, पैसे और चने दें। अगले दिन व्रत को तोड़ने से पहले बरगद के वृक्ष का कोपल खाकर उपवास समाप्त करें।
वट सावित्री पूजन सामग्री 
बांस का पंखा, अगरबत्ती, लाल व पीले रंग का कलावा, पांच प्रकार के फल, बरगद का पेड़, चढ़ावे के लिए पकवान, हल्दी, अक्षत, सोलह श्रृंगार, कलावा, तांबे के लोटे में पानी, पूजा के लिए साफ सिंदूर, लाल रंग का वस्त्र आदि।


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