2021:आज शुक्र प्रदोष, शिवजी की पूजा-आरती ऐसे करें
आज शुक्र प्रदोष व्रत है। वेदों, पुराणों एवं शास्त्रों में प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिवजी और माता पार्वती की पूजा करने का विधान है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | आज शुक्र प्रदोष व्रत है। वेदों, पुराणों एवं शास्त्रों में प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिवजी और माता पार्वती की पूजा करने का विधान है। ऐसी मान्यता है कि सच्चे दिल और भाव से भगवान शिवजी की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में सभी दुखों का नाश होता है। साथ ही व्यक्ति को मनोवांछित फल मिलता है। इसके लिए शुक्र प्रदोष व्रत के दिन भक्तिभाव से भगवान शिव और माता शक्ति की पूजा करें। अगर आप भी शुक्र प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव को प्रसन्न कर उनकी कृपा पाना चाहते हैं, तो इस तरह शिवजी और माता पार्वती की पूजा करें। आइए जानते हैं-
पूजा विधि
सर्वप्रथम घर की साफ-सफाई कर गंगाजल युक्त पानी से स्नान-ध्यान करें। अब आमचन कर अपने आप को पवित्र करें और फिर सफेद वस्त्र धारण करें। इसके बाद सबसे पहले सूर्यदेव को जल का अर्घ्य दें। फिर भगवान शिव एवं माता पार्वती को जल में काले तिल मिलाकर एक बार अर्ध्य दें। फिर दूध का अर्ध्य दें। अंत में जल में शहद और इत्र डालकर अर्ध्य दें। कुल मिलाकर तीन बार अर्ध्य दें। देवों के देव महादेव की पूजा दूध, दही, पंचामृत, फल, फूल, धूप, दीप, भांग, धतूरा और बिल्व पत्र से करें। पूजा के समय महामृत्युंजय मंत्र और ॐ नमः शिवाय मंत्रों का एक माला जाप जरूर करें।
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
इस मंत्र के नियमित जाप से व्यक्ति के जीवन में व्याप्त रोग, दोष तथा सभी सकंट समाप्त हो जाते हैं। अब शिव चालीसा का पाठ करें।
शिव चालीसा -
॥ दोहा ॥
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान ।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान ॥
॥ चौपाई ॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला ।
सदा करत सन्तन प्रतिपाला ॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके ।
कानन कुण्डल नागफनी के ॥
अंग गर शिर गंग बहाये ।
मुण्डमाल तन क्षार लगाए ॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे ।
छवि को देखि नाग मन मोहे ॥ 4
मैना मातु की हवे दुलारी ।
बाम अंग सोहत छवि न्यारी ॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी ।
करत सदा शत्रुन क्षयकारी ॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे ।
सागर मध्य कमल हैं जैसे ॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ ।
या छवि को कहि जात न काऊ ॥ 8
देवन जबहीं जाय पुकारा ।
तब ही दुख प्रभु आप निवारा ॥
किया उपद्रव तारक भारी ।
देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी ॥
तुरत षडानन आप पठायउ ।
लवनिमेष महँ मारि गिरायउ ॥
आप जलंधर असुर संहारा ।
सुयश तुम्हार विदित संसारा ॥ 12
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई ।
सबहिं कृपा कर लीन बचाई ॥
किया तपहिं भागीरथ भारी ।
पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी ॥
दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं ।
सेवक स्तुति करत सदाहीं ॥
वेद माहि महिमा तुम गाई ।
अकथ अनादि भेद नहिं पाई ॥ 16
प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला ।
जरतसुरासुर भए विहाला ॥
कीन्ही दया तहं करी सहाई ।
नीलकण्ठ तब नाम कहाई ॥
पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा ।
जीत के लंक विभीषण दीन्हा ॥
सहस कमल में हो रहे धारी ।
कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी ॥ 20
एक कमल प्रभु राखेउ जोई ।
कमल नयन पूजन चहं सोई ॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर ।
भए प्रसन्न दिए इच्छित वर ॥
जय जय जय अनन्त अविनाशी ।
करत कृपा सब के घटवासी ॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै ।
भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै ॥ 24
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो ।
येहि अवसर मोहि आन उबारो ॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो ।
संकट ते मोहि आन उबारो ॥
मात-पिता भ्राता सब होई ।
संकट में पूछत नहिं कोई ॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी ।
आय हरहु मम संकट भारी ॥ 28
धन निर्धन को देत सदा हीं ।
जो कोई जांचे सो फल पाहीं ॥
अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी ।
क्षमहु नाथ अब चूक हमारी ॥
शंकर हो संकट के नाशन ।
मंगल कारण विघ्न विनाशन ॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं ।
शारद नारद शीश नवावैं ॥ 32
नमो नमो जय नमः शिवाय ।
सुर ब्रह्मादिक पार न पाय ॥
जो यह पाठ करे मन लाई ।
ता पर होत है शम्भु सहाई ॥
ॠनियां जो कोई हो अधिकारी ।
पाठ करे सो पावन हारी ॥
पुत्र होन कर इच्छा जोई ।
निश्चयशिव प्रसाद तेहि होई ॥ 36
पण्डित त्रयोदशी को लावे ।
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा ।
ताके तन नहीं रहै कलेशा ॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे ।
शंकर सम्मुख पाठ सुनावे ॥
जन्म जन्म के पाप नसावे ।
अन्त धाम शिवपुर में पावे ॥ 40
कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी ।
जानि सकल दुःख हरहु हमारी ॥
॥ दोहा ॥
नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा ।
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश ॥
मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान ।
अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण।।
अंत में शिव जी की आरती –
जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव...॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव...॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव...॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव...॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव...॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव...॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव...॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव...॥
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय शिव...॥
आरती-अर्चना संपन्न होने के बाद अपनी मनोकामना भगवान शिव से जरूर कहें। अपना क्षमता अनुसार, दिनभर उपवास रखें। व्रती चाहे तो दिन में एक फल और एक बार जल ग्रहण कर सकता है। शाम में आरती-अर्चना कर फलाहार करें। रात्रि प्रहर में भजन-कीर्तन अगले दिन पूजा-पाठ संपन्न कर व्रत खोलें। इसके बाद जरूरतमंदों और ब्राह्मणों को दान कर भोजन ग्रहण करें। इस व्रत के पुण्य प्रताप से साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।