'फ्रीडम एट मिडनाइट' पर बोले पवन चोपड़ा- ‘चुनौतीपूर्ण था मौलाना आजाद का किरदार निभाना’

Update: 2024-11-26 02:46 GMT
मुंबई: ऐतिहासिक ड्रामा सीरीज 'फ्रीडम एट मिडनाइट' में मौलाना अबुल कलाम आजाद की भूमिका को लेकर अभिनेता पवन चोपड़ा ने कहा है कि यह भूमिका निभाना काफी चुनौतीपूर्ण था।
अभिनेता ने खुलासा किया कि यह किरदार निभाना उनके लिए चुनौतीपूर्ण था, क्योंकि नेता के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है।
उन्होंने कहा, "सबसे चुनौतीपूर्ण मौलाना आजाद की भूमिका निभाना था। उनके बारे में बहुत कम वीडियो फुटेज या संदर्भ कंटेंट उपलब्ध है। इसके विपरीत महात्मा गांधी, जवाहर लाला नेहरू, माउंटबेटन और मोहम्मद अली जिन्ना के फिल्म में कई मजबूत सीन थे। शुरुआत में मुझे लगा कि मौलाना आजाद उनकी मौजूदगी में फीके पड़ सकते हैं।
अभिनेता ने बताया, "मौलाना आजाद के बारे में जो कुछ भी बताया गया था, उसे जानने के लिए स्क्रिप्ट को कई बार पढ़ना पड़ा। इस दौरान मैंने पाया कि उनके धर्मनिरपेक्ष विचार और विभाजन का कड़ा विरोध उनके चरित्र को परिभाषित करने वाले विषय थे। ये पहलू सूक्ष्मता से लिखे गए थे और उनकी विचारधारा के केंद्र में थे।"
अभिनेता ने कहा कि उन्हें अपने चरित्र और व्यक्तित्व को सामने लाना था, ताकि दर्शक उन्हें पहचान सकें और समझ सकें। अभिनेता नहीं चाहते थे कि दर्शक केवल उन्हें टोपी पहनने वाले या केवल मेकअप वाला एक्टर समझें, दर्शक उन्हें एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक व्यक्ति के किरदार के रूप में जानें।
उन्होंने कहा, "उनके चरित्र को जिस तरह से लिखा गया था, उससे मेरे लिए इसे हासिल करना आसान हो गया।" उन्होंने सात महीने तक सीरीज के लिए शूटिंग की और उसी में डूबे रहे।
अभिनेता ने कहा, "यह एक चुनौतीपूर्ण भूमिका थी, क्योंकि सात महीनों तक मुझे अपना वजन बनाए रखना था, भाषा के साथ सुसंगत रहना था और यह सुनिश्चित करने के लिए लगातार मौलाना आजाद के बारे में सोचना था ताकि उनका चरित्र मेरे द्वारा प्रामाणिक रूप से सामने आए। इसके लिए मैंने ‘इंडिया विन्स फ्रीडम’ और ‘ग़ुबार-ए-ख़ातिर’ का गहराई से अध्ययन किया।"
उन्होंने कहा, "मौलाना आजाद एक इस्लामी विद्वान थे और निखिल आडवाणी सर ने एक कोच, शाहनवाज की व्यवस्था की थी, जिन्होंने उच्चारण की बारीकियों को समझने में मेरी मदद की और गाइड किया। देश की स्वतंत्रता में मौलाना आजाद का योगदान महत्वपूर्ण है, लेकिन इसे शायद ही कभी स्क्रीन पर दिखाया गया है। वह 1923 में 35 वर्ष की आयु में सबसे कम उम्र के कांग्रेस अध्यक्ष थे और 1940 से 1946 फिर इस पद पर रहे। फिर भी उनकी भूमिका के बारे में व्यापक रूप से बात नहीं की जाती है।“
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