अस्पताल वाले खून और मल-मूत्र से सने कपड़ों व बैडशीट्स को सिर्फ पानी में से निकाल कर वापस दे रहे
कोटा। कोटा लॉन्ड्री में गंदे कपड़ों की पोटली पड़ी है। कर्मचारी इसमें से एक-एक कर कपड़े निकाल रहे हैं। इन कपड़ों का इस्तेमाल आटे से किया जाता है। इनमें से ज्यादातर के कपड़ों और बेडशीट पर खून के धब्बे हैं। लॉन्ड्री मशीन में पानी की टंकी में कपड़े डाले जा रहे हैं, यहां से इन कपड़ों को हाइड्रो और बाद में सुखाने के लिए ड्रायर में डाला जाता है. बस, इन कपड़ों को निकालकर बाहर तारों पर डाल दिया जाता था, पूरी तरह सूखने के बाद इन कपड़ों को ऑपरेशन थियेटर में भेज दिया जाता था. लॉन्ड्री में गंदे कपड़ों का अंबार लगा है। कर्मचारी इसमें से एक-एक कर कपड़े निकाल रहे हैं। इन कपड़ों का इस्तेमाल आटे से किया जाता है। इनमें से ज्यादातर के कपड़ों और बेडशीट पर खून के धब्बे हैं। लॉन्ड्री मशीन में पानी की टंकी में कपड़े डाले जा रहे हैं, यहां से इन कपड़ों को हाइड्रो और बाद में सुखाने के लिए ड्रायर में डाला जाता है. बस, इन कपड़ों को निकालकर बाहर तारों पर डाल दिया जाता था, पूरी तरह सूखने के बाद इन कपड़ों को ऑपरेशन थियेटर में भेज दिया जाता था. एमबीएस अस्पताल भेज रहे हैं, 25 दिन से लॉन्ड्री में ब्लीचिंग और वाशिंग पाउडर नहीं। एमबीएस लॉन्ड्री में खून, मल-मूत्र से सने मरीजों और ऑपरेशन थियेटर में इस्तेमाल होने वाले गंदे कपड़े और बेडशीट को सिर्फ धोने के नाम पर पानी डालकर ही हटाया जा सकता है. रहा है। कर्मचारियों ने बताया कि कई बार ओटी के कपड़ों में मांस के टुकड़े भी आ जाते हैं, लेकिन इन्हें भी सिर्फ पानी से ही हटाया जा रहा है। इन संक्रमित कपड़ों का दोबारा इस्तेमाल किया जा रहा है।
सिर्फ मरीज ही नहीं, ओटी में ये कपड़े पहनने वाले डॉक्टरों को भी संक्रमण का खतरा रहता है। ये सब इसलिए हो रहा है क्योंकि पिछले एक महीने से लॉन्ड्री में ब्लीचिंग और वाशिंग पाउडर नहीं है. धोबी द्वारा अस्पताल प्रबंधन को पत्र दिए जा रहे हैं, लेकिन प्रबंधन नहीं दे रहा है। लॉन्ड्री में गंदे कपड़ों का अंबार लगा है। कर्मचारी इसमें से एक-एक कर कपड़े निकाल रहे हैं। इन कपड़ों का इस्तेमाल ओटी से होता है। इनमें से ज्यादातर के कपड़ों और बेडशीट पर खून के धब्बे हैं। लॉन्ड्री मशीन में पानी की टंकी में कपड़े डाले जा रहे हैं, यहां से इन कपड़ों को हाइड्रो और बाद में सुखाने के लिए ड्रायर में डाला जाता है. बस, इन कपड़ों को निकालकर बाहर तारों पर डाल दिया जाता था, पूरी तरह सूखने के बाद इन कपड़ों को ऑपरेशन थियेटर में भेज दिया जाता था. नर्सिंग प्रभारी चितरलाल ने जब पूछताछ की तो उन्होंने कहा- मैं क्या कर सकता हूं। जबकि अस्पताल प्रशासन ब्लीचिंग पाउडर, वाशिंग सोडा और वाशिंग पाउडर ही नहीं दे रहा है. मैंने 17 जनवरी और 12 अप्रैल को मांग की है। मैंने इसे दर्जनों बार मौखिक रूप से बताया है। 10 हजार रुपए मासिक खर्च नहीं, इसमें भी देरीः कपड़े धोने की मांग के मुताबिक हर महीने 100 किलो ब्लीचिंग पाउडर, 100 किलो वाशिंग सोडा और 50 किलो वाशिंग पाउडर की जरूरत होती है. रोजाना करीब 300 बेडशीट और 400 दूसरे कपड़े आते हैं। एक माह की सामग्री की लागत 10 हजार रुपये से अधिक नहीं है। हमारे प्रभारी और मैंने कई बार लिखित या मौखिक रूप से अवगत कराया है, लेकिन धुलाई में उपयोग होने वाली सामग्री उपलब्ध नहीं करायी जा रही है. हम भी क्या कर सकते हैं? सच में कपड़े साफ नहीं हो रहे हैं। यह संक्रमण के लिहाज से भी ठीक नहीं है।