केंद्रीय कानूनों के खिलाफ विधानसभाओं के प्रस्ताव का मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट

केंद्रीय कानूनों जैसे सीएए और कृषि कानूनों के खिलाफ

Update: 2021-03-19 16:54 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क: नई दिल्ली। केंद्रीय कानूनों जैसे सीएए और कृषि कानूनों के खिलाफ कई राज्यों की विधानसभाओं में प्रस्ताव पारित हुए थे। विशेष तौर पर गैर भाजपा शासित प्रदेशों राजस्थान, केरल, पंजाब और बंगाल में विधानसभाओं ने केंद्रीय कानूनों के खिलाफ प्रस्ताव पारित किए थे। लेकिन अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। कोर्ट केंद्रीय कानूनों के खिलाफ विधानसभाओं के प्रस्ताव पारित करने के अधिकार को परख सकता है। सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल हुई है जिसमें केंद्रीय कानूनों के खिलाफ विधानसभाओं के प्रस्ताव पारित करने पर सवाल उठाया गया है और कोर्ट से इस पर रोक लगाने की मांग की गई है। शुक्रवार को कोर्ट ने संक्षिप्त सुनवाई में टिप्पणी करते हुए कहा कि यह महज राय है। इसके पीछे कानूनी बल नहीं है। कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई चार सप्ताह के लिए टालते हुए याचिकाकर्ता से मामले में और शोध करके आने को कहा है।

ये टिप्पणी प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने गैर सरकारी संगठन समता आंदोलन समिति की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान कीं। हालांकि कोर्ट ने अभी याचिका पर औपचारिक नोटिस जारी नहीं किया है। याचिका में केंद्रीय कानून सीएए और तीन कृषि कानूनों के खिलाफ राजस्थान, केरल, पंजाब और बंगाल की विधानसभाओं में प्रस्ताव पारित करने पर सवाल उठाते हुए कोर्ट से मांग की गई है कि कोर्ट घोषित करे कि राज्य विधानसभाओं को संविधान की सातवीं अनुसूची की केंद्रीय सूची के तहत आने वाले मामलों में चर्चा, बहस या प्रस्ताव पारित करने का कोई अधिकार नहीं है। कोर्ट घोषित करे कि राजस्थान, केरल, पंजाब और बंगाल द्वारा केंद्रीय कानूनों के खिलाफ प्रस्ताव पारित करना असंवैधानिक है। मांग है कि कोर्ट सभी विधानसभाओं को संविधान की सातवीं अनुसूची की केंद्रीय सूची के तहत आने वाले विषयों से संबंधित केंद्रीय कानूनों के खिलाफ प्रस्ताव पारित करने पर रोक लगाए। साथ ही इन चारों विधानसभाओं को केंद्रीय कानूनों के खिलाफ पारित प्रस्ताव से संबंधित सारा रिकार्ड कोर्ट में पेश करने को कहा जाए।
शुक्रवार को यह मामला सुनवाई पर लगा था। याचिकाकर्ता संगठन की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सौम्य चक्रवर्ती ने कहा कि विधानसभाओं को केंद्रीय कानूनों के खिलाफ प्रस्ताव पारित करने का अधिकार नहीं है। चक्रवर्ती ने केरल विधानसभा से सीएए कानून के खिलाफ पारित प्रस्ताव का हवाला देते हुए कहा कि प्रस्ताव में विधानसभा ने कहा है कि केंद्रीय कानून संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ है क्योंकि यह कानून धर्म के आधार पर नागरिकता की बात करता है। इसमें मुसलमानों को नागरिकता नहीं दी गई है सिर्फ हिंदू, जैन, ईसाई और सिखों को नागरिकता देने की बात है।
इन दलीलों को सुनकर पीठ ने कहा कि यह सिर्फ केरल विधानसभा के बहुमत सदस्यों की राय है और इसमें कोई कानूनी बल नहीं है। कोर्ट ने आगे कहा कि यह महज राय है। उन लोगों ने केंद्र से कानून खारिज करने का आग्रह किया है। उन लोगों ने नागरिकों से केंद्रीय कानून की अवज्ञा करने को नहीं कहा है। क्या वे अपनी राय प्रकट नहीं कर सकते। चक्रवर्ती ने कहा कि जो मामला कोर्ट में विचाराधीन होता है उस पर चर्चा का विधानसभा को अधिकार नहीं है। उस समय कोर्ट में सीएए से संबंधित 60 से ज्यादा याचिकाएं लंबित थीं ऐसे में विधानसभा स्पीकर का कर्तव्य था कि वह कोर्ट में लंबित मामले पर चर्चा की इजाजत नहीं देते। चक्रवर्ती ने इस बारे में केरल विधानसभा के नियम का हवाला दिया। पीठ ने वकील से कहा कि इस बारे में कोर्ट के फैसले की कोई नजीर हो तो पेश करें। वह इस बारे में और शोध करें। कोर्ट ने कहा कि वह समस्या सुलझाने के बजाय और उलझाना नहीं चाहते। वे मामले पर विचार करेंगे। इसके साथ ही कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई चार सप्ताह के लिए टाल दी।


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