कार्यशाला में बनी उत्तर प्रदेश को 2030 तक बाल विवाह मुक्त बनाने की रूपरेखा

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Update: 2024-02-17 12:00 GMT
उत्तर प्रदेश। उत्तर प्रदेश राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग (यूपीएससीपीसीआर) ने एसोसिएशन फॉर वालंटरी एक्शन (एवीए) जिसे बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) के नाम से जाना जाता है, के सहयोग से ‘बाल विवाह मुक्त उत्तर प्रदेश’ बनाने के लिए लखनऊ में एक राज्यस्तरीय कार्यशाला का आयोजन किया। कार्यशाला में उत्तर प्रदेश से 2030 तक बाल विवाह के खात्मे और लैंगिक अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (पॉक्सो) के कार्यान्वयन में आने वाली चुनौतियों, बाल विवाह के खिलाफ कानूनों को मजबूत करने के लिए बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 के तहत नियमों की समीक्षा और बाल विवाह व यौन शोषण के शिकार बच्चों की सुरक्षा और उनके पुनर्वास के उपायों को मजबूती देने पर विचार किया गया। विचार विमर्श में एक आम सहमति दिखी कि प्रशासन और गैरसरकारी संगठनों के बीच जमीनी स्तर पर तालमेल के जरिए जनसहयोग एवं जनता की सहभागिता को बढ़ा कर ही ‘बाल विवाह मुक्त उत्तर प्रदेश’ के लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है। बचपन बचाओ आंदोलन देश में बाल विवाह के खात्मे के लिए काम कर रहे बाल विवाह मुक्त भारत (सीएमएफआई) का गठबंधन सहयोगी है। सीएमएफआई 160 गैरसरकारी संगठनों का एक गठबंधन है जो देश में बाल विवाह की ऊंची दर वाले 300 जिलों में इसके खात्मे के लिए जमीनी अभियान चला रहा है।
कार्यशाला में यूपीएससीपीसीआर के अध्यक्ष डॉ देवेंद्र शर्मा, सदस्य अनिता अग्रवाल एवं श्याम त्रिपाठी, महिला कल्याण निदेशालय की निदेशक व आईएएस अफसर संदीप कौर, उपनिदेशक ओंकार यादव, महिला एवं बाल सुरक्षा संगठन में पुलिस अधीक्षक रुचिता चौधरी, चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण निदेशालय की निदेशक डॉ. बीपी कल्याणी के अलावा राज्य के सभी जिलों की बाल कल्याण समितियां व सभी जिलों के बाल संरक्षण अधिकारियों के साथ गैरसरकारी संगठनों के प्रतिनिधि भी मौजूद थे। कार्यशाला को संबोधित करते हुए यूपीएससीपीसीआर के अध्यक्ष डॉ देवेंद्र शर्मा ने कहा, "हम लोग सौभाग्यशाली हैं जो उन बच्चों की चिंता करते हैं जिनकी चिंता कोई नहीं करता। बाल विवाह, बाल यौन शोषण, बाल श्रम, बाल भिक्षावृत्ति वो पांच बुराइयां हैं जिनके खिलाफ हमें सामूहिक रूप से संघर्ष करना है। इन पांच बुराइयों को समाप्त कर देने से बच्चों के शोषण व उत्पीड़न की समस्या जड़ से समाप्त हो जाएगी। इसके लिए हमें जिलों में अपने कर्तव्य का जिम्मेदारी से पालन करना होगा। यह हमारी जिम्मेदारी है कि इन बुराइयों के खात्मे के लिए बनी रणनीतियों पर हम पूरी निष्ठा व ईमानदारी से अमल करें। उत्तर प्रदेश में बच्चों की सुरक्षा व संरक्षण के लिए जो लोग भी काम कर रहे हैं, उनकी इसमें एक बहुत बड़ी भूमिका व जिम्मेदारी है।" कार्यशाला में सभी वक्ताओं ने इस बात पर सहमति जताई कि राज्य में बाल विवाह के खात्मे के लिए जरूरी कानून और नीतियां मौजूद हैं लेकिन जमीनी स्तर पर इस पर ईमानदारी से अमल और जागरूकता के प्रसार से ही से हमें लक्ष्य की प्राप्ति हो सकती है। वक्ताओं ने कहा कि देश के बाकी हिस्सों के मुकाबले उत्तर प्रदेश में बाल विवाह की दर कम है लेकिन इस बुराई का पूरी तरह खात्मा करने की जरूरत है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-5 (एनएफएचएस 2019-21) के आंकड़े बताते हैं कि देश में 20 से 24 के आयु वर्ग की 23.3 प्रतिशत लड़कियों का विवाह 18 वर्ष की आयु से पहले ही हो गया था जबकि उत्तर प्रदेश में यह आंकड़ा 15.8 प्रतिशत है।
बाल विवाह के खात्मे के लिए राज्य सरकार के दृढ़ निश्चय और प्रतिबद्धता की सराहना करते हुए बचपन बचाओ आंदोलन के कार्यकारी निदेशक धनंजय टिंगल ने कहा, "बाल विवाह के खिलाफ लड़ाई में उत्तर प्रदेश उत्तर प्रदेश ने हमेशा आगे बढ़कर अगुआई की है। पिछले वर्ष 16 अक्टूबर को राज्यव्यापी अभियान में जनता के साथ मिल कर प्रदेश के कई विभागों ने बढ़-चढ़कर हिस्सेदारी की और लोगों को बाल विवाह के खात्मे की शपथ दिलाई। यह कार्यशाला बाल विवाह के खिलाफ लड़ाई को और मजबूती देने, विभिन्न हितधारकों को एक साथ लाने और समन्वित प्रयासों से 2030 तक राज्य से बाल विवाह के पूरी तरह खात्मे के लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में अहम कदम है।" बाल विवाह के खात्मे की रूपरेखा पेश करते हुए महिला कल्याण विभाग की निदेशक आइएएस अधिकारी संदीप कौर ने कहा, "यह एक दुखद सच्चाई है कि राज्य के सुदूर हिस्सों में बाल विवाह का चलन अब भी जारी है। हमारे पास फंड, संसाधनों और कानूनी अधिकारों की कोई कमी नहीं है, जरूरत बस बाल विवाह की ज्यादा दर वाले इलाकों में अपने प्रयासों में इजाफा करने और जागरूकता के प्रसार की है। लोगों को बाल विवाह के दुष्परिणामों से अवगत कराने के साथ ही उन्हें बताना होगा कि कानून की नजर में यह अपराध है।" उन्होंने कहा कि हम यह सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहे हैं कि शोषण व उत्पीड़न के शिकार बच्चों के लिए सहायक व्यक्तियों की नियुक्ति के बाबत सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का हर स्तर पर पालन किया जाए। बताते चलें कि पिछले वर्ष महिला कल्याण विभाग और शिक्षा विभाग सहित राज्य के कई विभागों ने अधिसूचना जारी कर अपने कर्मचारियों को 16 अक्टूबर को बाल विवाह मुक्त उत्तर प्रदेश अभियान में हिस्सा लेने और लोगों को बाल विवाह के खिलाफ शपथ दिलाने का निर्देश जारी किया था।
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