कोटा। कोटा प्रदेश में डेंगू का स्ट्रेन डी 2 एक्टिव है। एसएमएस मेडिकल कॉलेज जयपुर की जांच के डेंगू के घातक स्ट्रेन की पुष्टि हुई है। डेंगू के डी 2 स्ट्रेन की मृत्यु दर अन्य स्ट्रेन से ज्यादा है। वहीं रविवार को डेंगू के 28 व स्क्रब टायफस के 2 मरीज और मिले। सीएमएचओ डॉ. जगदीश सोनी ने बताया कि राज्य में डेंगू के रोगियों के सिरो टाइप की जांच पीसीआर के माध्यम से जयपुर एसएमएस कॉलेज ने की। जिसमें सभी रोगियों में डेंगू का स्ट्रेन डी 2 पाया गया। इस स्ट्रेन के चलते जागरूक व सतर्क रहने की जरूरत है। इसलिए आमजन घरों के कूलर, टंकी व कबाड़ को साफ कर लें। आसपास प्लाट व नाले-नालियों में गंदा पानी भरा हुआ है तो उसमें जला ऑयल डाल दें। झाड़ियों को साफ कर दें। बुखार आने पर तुरंत चिकित्सक को दिखाएं। डिप्टी सीएमएचओ स्वास्थ्य डॉ. घनश्याम मीणा ने बताया कि चार साल पहले भी कोटा में यहीं स्ट्रेन आया था। यह फिर एक्टिव हुआ है। निदेशालय ने सभी मेडिकल कॉलेज व हॉस्पिटल को डेंगू के मरीजों के लिए बेड आरक्षित करते हुए मच्छररोधी वार्ड बनाने के निर्देश दिए हैं।
कोटा शहर में डेंगू से अब तक 7 मौतें हो चुकी है। चिकित्सा विभाग ने एक ही डेंगू से मौत का कारण माना है। बच्चों से लेकर युवा व बुजुर्ग तक डेंगू की चपेट में है। तलवंडी, इन्द्रविहार में इसका असर ज्यादा है। क्षेत्र के निजी अस्पताल मरीजों से फुल हो गए है। कोचिंग क्षेत्र होने के कारण स्टूडेंट भी डेंगू की चपेट में आ रहे है। अस्पतालों में एक बेड पर दो मरीजों का इलाज चल रहा है। कोटा मेडिकल कॉलेज के मेडिसिन विभाग के आचार्य डॉ. मनोज सलूजा ने बताया कि डेंगू के चार स्ट्रेन की तुलना में डी-2 तेजी से फैलता है और जानलेवा होता है। यदि किसी को पहले 1, 3 व 4 टाइप डेंगू हो चुका है तो उसे यदि अब डी-2 होता है तो यह जानलेवा सिद्ध होता हैै। इसमें शॉक सिंड्रोम व हेमरेज सिंड्रोम अधिक देखने को मिलता है। इसमें बुखार तेज आता है। दर्द व उल्टियां होती है। 4 दिन में गंभीरता शुरू हो जाती है। प्लेलेट्स तेजी से गिरती है। शरीर में नीले चकते बन जाते है। नाक, मुंह से खून का रिसाव होता है। रक्त नलिकाओं से प्लाज्मा का विभिन्न अंगों में रिसाव के कारण ब्लड प्रेशर तेजी से घट जाता है। जिसे शॉक कहते है। इससे शरीर के विभिन्न अंग प्रभावित होते है। शहर में इन दिनों डेंगू समेत मौसमी बीमारियों फैल रही हैं। मरीज अब अस्पतालों की ओर रुख कर रहे हैं, लेकिन अस्पतालों में अंदर-बाहर गंदगी का आलम है।