पक्षियों का कलरव एवं ऊर्जा का खत्म होना बड़ी चुनौती

- ललित गर्ग- देश एवं विदेशों में विलुप्त हो रही विभिन्न पक्षियों की प्रजातियों को बचाने के लिये वर्तमान में राष्ट्रीय पक्षी दिवस की प्रासंगिकता बढ़ी है। हर साल 5 जनवरी को प्रकृति प्रेमी, पर्यावरणविद, पक्षी रक्षक और पक्षीप्रेमी इस दिवस को बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं। राष्ट्रीय पक्षी दिवस पक्षियों के प्रति प्यार …

Update: 2024-01-03 04:01 GMT

- ललित गर्ग-
देश एवं विदेशों में विलुप्त हो रही विभिन्न पक्षियों की प्रजातियों को बचाने के लिये वर्तमान में राष्ट्रीय पक्षी दिवस की प्रासंगिकता बढ़ी है। हर साल 5 जनवरी को प्रकृति प्रेमी, पर्यावरणविद, पक्षी रक्षक और पक्षीप्रेमी इस दिवस को बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं। राष्ट्रीय पक्षी दिवस पक्षियों के प्रति प्यार जताने एवं उनके संरक्षण के लिये प्रतिबद्ध होने का एक खास दिन है। 2002 में पहली बार राष्ट्रीय पक्षी दिवस मनाने की शुरुआत हुई। सिर्फ अमेरिका में ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में पक्षी प्रेमियों और अन्य लोग समान रूप से इस दिवस को मनाते हैं। भारत में भी इस दिवस को मनाने की विशेष प्रासंगिकता है, क्योंकि यहां भी अधिकांश पक्षी प्रजातियों को गंभीर भविष्य का सामना करना पड़ रहा है या वे विलुप्तता की कगार पर है।

संयुक्त राज्य अमेरिका में इस दिवस को व्यापक पैमाने पर मनाया जाता है। अक्टूबर में प्रकाशित यूएस नॉर्थ अमेरिकन बर्ड कंजर्वेशन इनिशिएटिव की 2022 स्टेट ऑफ बर्ड्स रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका में आधे से अधिक पक्षी प्रजातियों में गिरावट आ रही है और लगभग सभी आवासों में इन पक्षियों की आबादी कम हो रही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले 50 वर्षों में पक्षियों की लगभग 70 प्रजातियों ने अपनी आबादी का कम से कम आधा हिस्सा खो दिया है और अगर संरक्षण के प्रयासों में उल्लेखनीय वृद्धि नहीं की गई तो अगली आधी सदी में वे बाकी आधी आबादी खो देंगे। भारत में भी पक्षी विलुप्ति एक गंभीर मुद्दा है जिसका हमें ध्यान रखना चाहिए। भारत सहित दुनिया में धीरे-धीरे विलुप्त हुए कुछ पक्षियों के नाम हम देखते है जैसे जंगली उल्लू, बेयर पोचार्ड, जॉर्डन कोर्टर, भारतीय गिद्ध, हिमालयन बटेर, साइबेरियन क्रेन, बंगाल फ्लोरिकन दुबला-पतला गिद्ध, सोसिएबल लैपविंग, लाल सिर वाला गिद्ध, सफेद पीठ वाला गिद्ध, महान भारतीय बस्टर्ड, सफेद पेट वाला बगुला, गुलाबी सिर वाली बतख, स्पून-बिल्ड सैंडपाइपर, गौरेया, मोर आदि। मनुष्य के जीवन और प्रकृति के बीच संतुलन को बनाए रखने के लिए हमें पक्षियों की संरक्षण के प्रति संवेदनशीलता और संगठित कार्रवाई की आवश्यकता है। जब हम पक्षियों को संरक्षित रखते हैं, तो हम अपने आप को और आने वाली पीढ़ियों को एक स्वस्थ और सुरक्षित प्राकृतिक वातावरण का उपहार देते हैं।

मनुष्य का लोभ एवं संवेदनहीनता भी त्रासदी की हद तक बढ़ी है, जो वन्यजीवों, पक्षियों, प्रकृति एवं पर्यावरण के असंतुलन एवं विनाश का बड़ा सबब बना है। मनुष्य के कार्य-व्यवहार से ऐसा मालूम होने लगा है, जैसे इस धरती पर जितना अधिकार उसका है, उतना किसी ओर का नहीं- न वृक्षों का, न पशुओं का, न पक्षियों का, न नदियों-पहाड़ों-तालाबों का। दरअसल हमारे यहां बड़े जीवों के संरक्षण पर तो ध्यान दिया जाता है, पर गौरेया जैसे छोटे पक्षियों के संरक्षण पर उतना नहीं। वृक्षारोपण, जैविक खेती को बढ़ाकर तथा माइक्रोवेव प्रदूषण पर अंकुश लगाकर पक्षियों को विलुप्त होने से बचाया जा सकता है। अब भी यदि हम जैव विविधता को बचाने का सामूहिक प्रयास न करें, तो बहुत देर हो जाएगी।

पृथ्वी पर हमें विभिन्न प्रकार के पशु-पक्षी मिलते हैं, जो हमारे प्राकृतिक वातावरण का महत्वपूर्ण हिस्सा एवं प्रकृति संतुलन का सशक्त माध्यम हैं। दुनियाभर में जानवरों और पक्षियों की संख्या में गिरावट देखी जा रही है। यह गिरावट न केवल पर्यावरणीय परिवर्तनों के कारण हो रही है, बल्कि मुख्य रूप से मनुष्य की असंवेदनशील गतिविधियों और उनकी अज्ञानता के कारण भी हो रही है। इंसानी गतिविधियां जैसे नगरीकरण, उर्वरकों और कीटनाशकों का अधिकतम उपयोग, वायु यातायात और भूमि संपत्ति की विस्तार योजनाएं हैं। पक्षी विलुप्ति एक गंभीर समस्या है, क्योंकि पक्षियों का महत्वपूर्ण योगदान हमारी प्राकृतिक पेयजल और खाद्य सुरक्षा में होता है। पक्षियों को बीज और फल बोने, उगाने और फैलाने का महत्वपूर्ण कार्य मिलता है, जिससे वनस्पतियों का प्रजनन होता है। इसके अलावा, पक्षी भी कीट-नियंत्रण करने में मदद करते हैं, जो हमारे खेती और फसलों को सुरक्षित रखता है। पक्षियों का एक और महत्वपूर्ण योगदान हमारे बायोडायवर्सिटी की सुस्थिति बनाए रखना है। पक्षियों के संकट ग्रस्त होने से हमारे प्राकृतिक परिदृश्य, बायोलॉजिकल संतुलन और वातावरणीय सेवाओं में कमी आती है। जंगलों की कटाई, अनुचित वन्यजीव व्यापार, औद्योगिकीकरण, वन, आग, जल प्रदूषण, हवा प्रदूषण, जैव उपयोग और जलवायु परिवर्तन के कारण पक्षियों के आवास की हानि हो रही है। इसके अलावा, जीवाश्मी शस्त्रधारी पक्षी जैसे कीटों और रोगों के आक्रमण के कारण भी पक्षियों की संख्या में गिरावट होती है।

पक्षियों को विलुप्ति से बचाने के लिये हमें अपने जीवन शैली में सतत वन्यजीवों के लिए स्थान छोड़ना होगा, जैसे कि उनके आवास के लिए उपयुक्त वन, नदी और झीलों की सुरक्षा और सफाई का ध्यान रखना होगा। हमें जैव उपयोग पर नियंत्रण लगाना होगा। कीटनाशकों का सतत उपयोग रोकना चाहिए और पर्यावरण के प्राकृतिक तरीकों से कीटों और रोगों का नियंत्रण करना चाहिए। वन्यजीवों के आहार और आवास को सुरक्षित रखने के लिए विभिन्न संगठनों, सरकारी निकायों और जनसाधारण को मिलकर काम करना चाहिए। हमें प्राकृतिक आवास को सुरक्षित रखने के लिए विभिन्न सुरक्षा क्षेत्रों और अभयारण्य की स्थापना करनी चाहिए। जनसंचार और शिक्षा के माध्यम से लोगों को पक्षियों के महत्व के बारे में जागरूक करना चाहिए और उन्हें यह जानने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए कि वे अपने आसपास के पक्षियों के लिए संरक्षण कार्यों में सहभागी बन सकें।

मौजूदा समय में पशुओं एवं पक्षियों की संख्या का लगातार घटना एक अत्यन्त चिन्ताजनक स्थिति है। पक्षी विज्ञानी हेमंत सिंह के अनुसार गौरैया की आबादी में 60 से 80 फीसदी तक की कमी आई है। यदि इसके संरक्षण के उचित प्रयास नहीं किए गए तो हो सकता है कि गौरैया इतिहास का प्राणी बन जाए और भविष्य की पीढ़ियों को यह देखने को ही न मिले। ब्रिटेन की ‘रॉयल सोसायटी ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ बर्डस’ ने भारत से लेकर विश्व के विभिन्न हिस्सों में अनुसंधानकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययनों के आधार पर गौरैया को ‘रेड लिस्ट’ में डाला है। आंध्र विश्वविद्यालय द्वारा किए गए अध्ययन के मुताबिक गौरैया की आबादी में करीब 60 फीसदी की कमी आई है। यह हृ्रास ग्रामीण और शहरी, दोनों ही क्षेत्रों में हुआ है।

मोर भारत का राष्ट्रीय पक्षी है, अनेक कारणों से उसकी संख्या भी घट रही है, जबकि मोर एक बहुत ही सुन्दर तथा आकर्षक पक्षी है। यह भारत के सभी क्षेत्रों में पाया जाता है। मोर के सर पर मुकुट जैसी खूबसूरत कलंगी होती है। इसकी लम्बी गर्दन पर सुन्दर नीला मखमली रंग होता है। मोर की मादा मोरनी कहलाती है। मोर के अद्भुत सौंदर्य के कारण ही भारत सरकार ने 26 जनवरी, 1963 को इसे राष्ट्रीय पक्षी घोषित किया था। हमारे पड़ोसी देश म्यांमार और श्रीलंका का राष्ट्रीय पक्षी भी मोर ही है। मोर का शिकार भारत में पूर्णतया प्रतिबंधित है। इसे भारतीय वन्य-जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत पूर्ण संरक्षण दिया गया है फिर भी मोर का बड़ी मात्रा में शिकार हो रहा है।

मोर एवं गौरेया पक्षी की भांति अनेक पक्षी प्रजातियां मानवीय लोभ की भेंट तो चढ़ ही रहे हैं, जलवायु परिवर्तन के कारण भी इनकी संख्या लगातार कम हो रही है। कानूनों की धज्जियां उड़ाते हुए पक्षियों का शिकार एवं अवैध व्यापार जारी है। भोजन की कमी होने, घोंसलों के लिए उचित जगह न मिलने तथा माइक्रोवेव प्रदूषण जैसे कारण इनकी घटती संख्या के लिए जिम्मेदार हैं। आजकल हमारे बगीचों में विदेशी पौधे ज्यादा उगाते हैं, जो कीट-पतंगों को आकर्षित नहीं कर पाते। जीवन के अनेकानेक सुख, संतोष एवं रोमांच में से एक यह भी है कि हम कुछ समय पक्षियों के साथ बिताने में लगाते रहे हैं, अब ऐसा क्यों नहीं कर पाते? क्यों हमारी सोच एवं जीवनशैली का प्रकृति-प्रेम विलुप्त हो रहा है? मनुष्य के हाथों से रचे कृत्रिम संसार की परिधि में प्रकृति, पर्यावरण, वन्यजीव-जंगल एवं पक्षियों का कलरव एवं जीवन-ऊर्जा का लगातार खत्म होते जाना जीवन से मृत्यु की ओर बढ़ने का संकेत है।

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