नई दिल्ली: चीन और भारत के बीच लद्दाख सहित कई इलाकों में तनाव जारी है। चीन का ताइवान के साथ भी तनाव बढ़ा हुआ है। अक्टूबर के पहले हफ्ते में चीन के 150 से अधिक लड़ाकू विमान ताइवान की सीमा में आ गए थे। शी जिनपिंग ने हाल ही में एक बार फिर कहा है कि वह किसी भी हालात में ताइवान को चीन में मिलाएंगे। इस पर ताइवान की राष्ट्रपति साई इंग-वेन ने कहा है कि एक उचित कारण हमेश से समर्थन आकर्षित करता है। हम अपनी राष्ट्रीय संप्रभुता और अपने लोगों की रक्षा के साथ ही क्षेत्रीय शांति बनाने के लिए हर संभव कोशिश कर रहे हैं। हम वह सब कर रहे हैं जो कि हम कर सकते हैं। हम साथ काम करने वाले समान विचारधारा वाले देशों की सराहना करते हैं।
भारत और चीन के बीच बढ़े तनाव को लेकर कई एक्सपर्ट्स का मानना है कि भारत को अपनी चीन पॉलिसी पर फिर से विचार करने की जरूरत है। कइयों का कहना है कि भारत को चीन की वन चाइना पॉलिसी के विरोध में आना चाहिए तो कइयों ने तिब्बत कार्ड आदि खेलने की सलाह दी है। लेकिन कुछ एक्सपर्ट्स का कहना है कि भारत ताइवान के साथ मजबूत संबंध बनाकर चीन को कड़ा संदेश दे सकता है।
भारत और ताइवान ने अपनी राजधानी में 'व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान' ऑफिस बनाए हुए हैं। मई 2020 में साई इंग-वेन के शपथ ग्रहण समारोह में बीजेपी की सांसद मीनाक्षी लेखी (अब विदेश राज्य मंत्री) ने ऑनलाइन भाग लिया था। इससे पहले 2016 में शपथ ग्रहण के आखिरी मौके पर भारत ने अपने दो प्रतिनिधियों को ताइवान भेजने से मना कर दिया था।
ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट बताती है कि ताइवान, भारत में 7.5 बिलियन डॉलर का सेमीकंडक्टर या चिप मैन्युफैक्चरिंग प्लांट लगाने को लेकर बातचीत कर रहा है। इन चिप्स का इस्तेमाल कंप्यूटर, स्मार्टफोन, इलेक्ट्रिक कार और मेडिकल इक्विपमेंट्स सहित कई जगहों पर किया जाता है।
हाल ही में नई दिल्ली स्थित चीनी दूतावास ने भारत के पत्रकारों से ताइवान के राष्ट्रीय दिवस के मौके पर रिपोर्टिंग करते हुए 'वन चाइना पॉलिसी' नीति का उल्लंघन न करने की अपील की थी। इस पर बहुत बवाल हुआ। भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा है कि भारतीय मीडिया आजाद है और हर मसले पर अपने तरह से रिपोर्ट करने को स्वतंत्र है। इसके बाद बीजेपी सहित कई पार्टियों के लोगों और आम लोगों ने ताइवान के राष्ट्रीय दिवस की शुभकामनाएं दी। बाद में ताइवान सरकार ने भारत के लोगों को शुभकामनाएं देने के लिए शुक्रिया कहा था।
ताइवान और भारत के बीच औपचारिक तौर पर राजनयिक संबंध नहीं हैं। 1990 के दशक में दोनों पक्षों ने अनौपचारिक तौर पर संबंध बनाए थे लेकिन एक्सपर्ट्स का मानना है कि दोनों देशों के बीच उल्लेखनीय संबंध नहीं बन सके हैं।
साउथ एशिया की एक्सपर्ट नम्रता हसीजा का मानना है कि बीजिंग के कारण भारत और ताइवान उतने आगे नहीं बढ़े हैं जितना बढ़ना चाहिए था। चीन की छाया भारत और ताइवान संबंधों पर भारी पड़ी है। ताइपे के नेशनल चेंगची यूनिवर्सिटी में ताइवान सेंटर फॉर सिक्योरिटी स्टडीज के निदेशक प्रोफेसर फू-कुओ लियू का मानन है कि जब तक भारत बीजिंग के दबाव का सामना नहीं करता और ताइवान के साथ अपने बाहरी संबंधों पर चीनी चिंता की अवहेलना नहीं करता, तब तक द्विपक्षीय संबंध आगे नहीं बढ़ पाएंगे।
एक्सपर्ट्स का मानना है कि ताइवान को एक देश के तौर पर मान्यता देना भारत के लिए मौजूदा वक्त में संभव नहीं है लेकिन दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी संभव है। जिस तरह से चीन ताइवान पर दबाव बना रहा है ऐसे में भारत इस मौके को भुनाकर ताइवान के साथ बेहतर संबंध बना सकता है।