यहां कदम रखते ही देवता और देवलुओं पर मिट्टी व बिच्छू बूटी से होता है प्रहार
आनी। जिला कुल्लू के आनी के विभिन्न गांवों में इन दिनों अराध्य गढ़पति देवता शमशरी के सतराला मेले की खूब धूम मची है, जिसमें ग्रामीणों द्वारा देव समाज की कई अनूठी परंपराओं का निर्वहन किया जा रहा है। देवता शमशरी महादेव सात साल बाद अपने अधिकार क्षेत्र के 33 गांवों के दौरे पर हैं। गत 13 अगस्त से शुरू हुए इस दौरे में देवता जिस भी गांव में जा रहे हैं, वहां उनके स्वागत में भव्य मेलों का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें ग्रामीण अपनी लोक संस्कृति के रंग में रंगकर खूब लुत्फ उठा रहे हैं। देवता के इस विशेष फेरे मेले को सतराला कहा जाता है। खास बात यह कि इन मेलों में कई स्थानों पर अनूठी देव परंपराएं भी निभाई जा रही हैं, जो हमारी सदियों पुरानी देव संस्कृति की परिचायक हैं। इसी तरह की विचित्र परंपरा आनी खंड की खणी पंचायत के अंतिम गांव शीगागी में भी निभाई गई।
यहां देवता शमशरी महादेव के गांव की सीमा में प्रवेश करते ही उनके रथ व देवलुओं पर ग्रामीणों द्वारा मिट्टी के ठेलों और बिच्छू बूटी तथा आटे की बौछार से प्रहार किया। बावजूद इसके देवता का रथ व देवलू उस प्रहार का सामना करते हुए पूरे जोश के साथ आगे गांव की ओर बढ़ते हैं और युद्ध को जीत लेते हैं। देवता के गांव की दहलीज पर कदम रखते ही युद्ध समाप्त हो जाता है और ग्रामीण देवता को नाचते गाते हुए पूरी उमंग व उत्साह के साथ देवालय स्थल तक ले जाते हैं। जहां देवता का भव्य स्वागत करने के बाद मेले का आयोजन करते हैं। उसके बाद देवता खुन्न पहुंचता है, जहां उनके सम्मान में ग्रामीणों द्वारा एक भव्य नाटी का आयोजन किया जाता है।
शगागि में देवता को मिट्टी के ठेलों व बिच्छू बुट्टी से प्रहार की रस्म के पीछे क्या वजह है। इस बारे में हिम संस्कृति संस्था के अध्यक्ष शिव राज शर्मा का कहना है कि बुजुर्गों से सुनी दंत कथा के अनुसार आदि काल में शिगागि का क्षेत्र देवता जमलू के अधिकार क्षेत्र में था। इसी बीच देवता शमशरी महादेव ने उस क्षेत्र को अपने अधीनस्थ करने के लिए जमलू देवता पर आक्रमण किया। तब जमलू देवता के सेनानियों ने शमशरी महादेव पर प्रहार किया और उसे युद्ध में परास्त करने का प्रयास किया, मगर शमशरी महादेव ने बदले में ताबड़ तोड़ हमला बोलकर जमलू देवता को परास्त किया और उसके क्षेत्र को छीन कर अपने अधिकार क्षेत्र में लिया। वर्तमान में उस समय की यह परंपरा आज भी शमशरी महादेव के शगागि गांव में पधारने पर निभाई जाती है।