प्रदेश में बारिश-बर्फबारी न होने से सेब पर सूखे की मार
शिमला। प्रदेश में बारिश न होने से सेब की फसल पर सूखे की मार पड़ रही है। बारिश न होने से जहां भूमि में नमी खत्म हो रही है, वहीं सेब के पौधों में चिलिंग प्रक्रिया भी शुरू नहीं हो पा रही है। ऐसे में बागबानों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। सर्दियों के …
शिमला। प्रदेश में बारिश न होने से सेब की फसल पर सूखे की मार पड़ रही है। बारिश न होने से जहां भूमि में नमी खत्म हो रही है, वहीं सेब के पौधों में चिलिंग प्रक्रिया भी शुरू नहीं हो पा रही है। ऐसे में बागबानों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। सर्दियों के दौरान बागीचों में होने वाले कार्य भी वर्षा व हिमपात न होने के कारण रुके हुए है। जिला में करीब दो महीने से वर्षा नहीं हुई है। बारिश के इंतजार में बागबान आसमान की ओर टकटकी लगाकर देख रहे है। वर्षा व हिमपात न होने से बागबानों को डर सता रहा है कि कहीं अगले साल की फसल प्रभावित न हो। दिसंबर में बर्फबारी व बारिश से जमीन में लंबे समय तक नमी रहती है। वर्षा व हिमपात नकदी फसलों के उत्पादन के लिए फायदेमंद होता है, लेकिन इस बार नवंबर और दिसंबर में हिमपात और बारिश न होने से किसानों व बागबानों की चिंता बढ़ गई है। जमीन में नमी नहीं होने से बागबान सेब के पौधों के तौलिए बनाने का कार्य नहीं कर पा रहे है और न ही नए पौधे रोप सकते है।
सूखे जैसी स्थिति के कारण अगले सीजन में होने वाली फसलों पर भी संकट खड़ा हो गया है। प्रमोद ठाकुर, रमन चौहान, निशांत वर्मा, दीपक वर्मा और सुमन रावत ने कहा कि लंबे समय से वर्षा न होने के कारण सूखे जैसी स्थिति हो गई है। उद्यान विभाग के अधिकारियों का कहना है कि इन दिनों हिमपात व वर्षा होने से जमीन में नमी लंबे समय तक बनी रहती है। आगामी सेब की फसल के लिए चिंलिग आवर्स होने पूरे होने की संभावना ज्यादा रहती है। शिमला सहित जिला के अन्य क्षेत्रों में सुबह और शाम के समय तापमान सात डिग्री सेल्सियस से नीचे आ गया है, लेकिन दिन के समय तापमान अभी 15 से 16 डिग्री सेल्सियस के बीच है। यही कारण है कि सेब व अन्य फलों के पौधों में चिलिंग प्रक्रिया शुरू नहीं हो पाई है। अगर आने वाले दिनों में वर्षा व बर्फबारी होती है, तो तापमान में गिरावट आ सकती है।
बागबानी विशेषज्ञ डा. एसपी भारद्वाज का कहना है कि चिलिंग प्रक्रिया शुरू होने के बाद ही पौधा सुप्तावस्था यानी डोरमेसी में जाता है। पौधे और फल के उचित विकास के लिए पौधे का सुप्तावस्था में जाना जरूरी है। सेब की रायल किस्म के लिए 800 से एक हजार चिलिंग आवर की जरूरत होती है। अर्ली वैरायटी के पौधों के लिए 600 से 800 चिलिंग आवर होना जरूरी है। इसके अलावा स्टोन रूट के लिए इससे भी कम चिलिंग आवर की आवश्यकता होती है। चैरी के लिए 500 चिलिंग आवर, आडू के लिए 300 से 400 और खुमानी व प्लम के लिए इससे भी कम चिलिंग आवर की आवश्यकता होती है।