उत्तराखंड: कैट की नैनीताल पीठ ने केंद्र सरकार को दिए निर्देश
उत्तराखंड न्यूज
केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) की नैनीताल पीठ ने केंद्र गवर्नमेंट को आईएफएस संजीव चतुर्वेदी के प्रतिनियुक्ति आवेदन के लंबित प्रकरण पर आठ हफ्ते के भीतर फैसला लेने का निर्देश दिया है. प्रतिनियुक्ति प्रकरण उत्तराखंड गवर्नमेंट ने अपनी संस्तुति के साथ 23 दिसंबर 2019 को केंद्र को अग्रसारित किया था.
संजीव चतुर्वेदी ने फरवरी 2020 में इस संबंध में वाद पंजीकृत किया था और कैट ने इस साल 26 मई को निर्णय सुरक्षित रख लिया था. भारतीय वन सेवा के 2002 बैच के अधिकारी संजीव चतुर्वेदी ने साल 2019 में केंद्र में लोकपाल के संगठन में प्रतिनियुक्ति के लिए आवेदन किया था जिसे उत्तराखंड गवर्नमेंट ने दिसंबर 2019 में अनापत्ति तथा संस्तुति सहित केंद्र को भेजा था. तब से यह प्रकरण पर्यावरण, वन और जलवायु बदलाव मंत्रालय के पास लंबित था.
ट्रिब्यूनल ने अपने निर्णय में बोला कि यह आश्चर्यजनक है कि जिसे हम आवेदक के निवेदन पर उचित फैसला लेने भर का एक साधारण मामला मानते हैं वह अनावश्यक रूप से जटिल और लंबा हो गया है. ट्रिब्यूनल ने 15 दिसंबर 2021 के अपने उस निर्देश की भी याद दिलाई जिसमें उसने केंद्र गवर्नमेंट को इस प्रकरण पर उदारता और खुलेपन से नियमों के मुताबिक शीघ्र विचार करने के लिए बोला था. इससे पहले सितंबर, 2020 में ट्रिब्यूनल ने अंतरिम निर्देश पारित किया था कि उत्तराखंड गवर्नमेंट की ओर से लोकपाल प्रतिनियुक्ति के लिए अधिकारी को दी गई एनओसी को इस मुद्दे के समाप्ति तक बाधित नहीं किया जाएगा.
आदेश में क्या बोला गया
ट्रिब्यूनल के मुताबिक अखिल भारतीय वन सेवा का एक अधिकारी होने के नाते आवेदक केंद्र गवर्नमेंट या गवर्नमेंट के किसी अन्य स्वायत्त संगठन में इस तरह की प्रतिनियुक्ति लेने का अधिकारी है. आदेश में बोला गया है कि केंद्र गवर्नमेंट सार्वजनिक प्राधिकरण होने के नाते इस मुद्दे को निर्णीत करने के लिए बाध्य है.
कैट ने बोला कि यदि केंद्र गवर्नमेंट मानती है कि मुद्दे में लोकपाल का अधिकार लोकपाल के कार्यालय के पास है तो वह आठ हफ्ते की इस अवधि के भीतर इस प्रकरण को फैसला के लिए लोकपाल के पास भेजे. संजीव चतुर्वेदी ने पहले हरियाणा में और फिर एम्स, दिल्ली में मुख्य सतर्कता अधिकारी (सीवीओ) के रूप में काम किया था, जहां उन्होंने कई करप्शन के मामलों का खुलासा किया था. करप्शन के विरूद्ध उनके अभियान के लिए उन्हें साल 2015 में रमन मैग्सेसे पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था.