उत्तराखंड | उत्तराखंड आंदोलकारी महिलाओं से दरिंदगी के मामले में आरोपी पुलिसकर्मियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की स्वीकृति देने वाले पूर्व गृह सचिव डॉ. दीप्ति विलास अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश कोर्ट नम्बर सात में पेश हुए. उन्होंने कोर्ट में पेश होकर अपने बयान दर्ज कराए, जबकि बचाव पक्ष के अधिवक्ता ने उनसे जिरह करते हुए जवाब मांगा की किस आधार पर अभियोजन स्वीकृति दी गयी थी.
एक अक्टूबर 1994 की रात पृथक राज्य की मांग के लिए दिल्ली जा रहे उत्तराखंड के आंदोलनकारियों पर पुलिस ने रामपुर तिराहे पर रोककर फायरिंग कर दी थी. पुलिस फायरिंग में सात आंदोलनकारियों की मौत हो गयी थी. इस दौरान महिलाओं से छेड़छाड़ व दुष्कर्म की घटना भी सामने आयी थी. इस मामले में सीबीआई ने जांच कर 27 आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट कोर्ट में दाखिल की थी. इस मामले में तत्कालीन गृह सचिव डॉ. दीप्ति विलाससे अभियोजन स्वीकृति प्राप्त कर सभी आरोपियों के खिलाफ मुकदमे की कार्रवाई शुरु कर दी गयी थी. एडीजीसी प्रविन्द्र सिंह ने बताया कि अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश कोर्ट नम्बर सात के न्यायाधीश शक्ति सिंह की कोर्ट मे पूर्व गृह सचिव डा. दीप्ति विलास पेश हुए. उन्होंने कोर्ट के सम्मुख अपनी गवाही दी. वही बचाव पक्ष के वरिष्ठ अधिवक्ता सुरेन्द्र शर्मा ने पूर्व गृह सचिव से बहस की. कोर्ट के समक्ष उन्होंने तर्क देते हुए बताया कि गृह सचिव को आरोपी पुलिस कर्मियों के खिलाफ मुकदमा चलाए जाने की अनुमति देने का अधिकार ही नहीं है. उन्होंने कहा कि अभियोजन स्वीकृति केवल वही अधिकारी दे सकता है जिसे उक्त सरकारी कर्मचारी या अधिकारी की नियुक्ति का अधिकार प्राप्त हो. इस मामले में अगली सुनवाई 29 सितम्बर को होगी. 29 सितम्बर को सीबीआई के विवेचक इंस्पेक्टर अजय शर्मा को कोर्ट में बयान देने के आदेश दिए है.