उत्तराखंड | आवारा पशुओं पर मानवीय अत्याचार के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से जवाब तलब किया है। सरकार को इस मामले में चार सप्ताह के भीतर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया गया है. मामले की अगली सुनवाई 21 सितंबर को होगी.
मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी एवं न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ के समक्ष हुई. भोटिया पड़ाव, हल्द्वानी निवासी निरुपमा भट्ट तलवार ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि गाय, घोड़ा, कुत्ता, बिल्ली, भैंस आदि पालतू जानवरों को सड़कों, गलियों, जंगलों और नालों में छोड़ा जा रहा है। लोग। इस कारण उन पर अमानवीय अत्याचार बढ़ रहे हैं। इनसे छुटकारा पाने के लिए लोग उन पर कई तरह के अत्याचार कर रहे हैं जैसे उन पर गर्म पानी डालना, उन्हें खेतों से भगाने के लिए बिजली का झटका देना, उन्हें लाठियों से मारना आदि। याचिका के मुताबिक, अब तक पशु क्रूरता के आंकड़े सरकार के पास मामले उपलब्ध नहीं हैं, जबकि भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में पशु क्रूरता के 24000 हजार मामले दर्ज किए गए थे. जनहित याचिका में अदालत से अनुरोध किया गया कि वह सरकार को लावारिस पशुओं के आश्रय, दवा, पानी और चारे की व्यवस्था करने का आदेश दे. उन पर अत्याचार बंद होना चाहिए.
बोर्ड ने हलफनामा दायर कर कहा कि बोर्ड ने लावारिस पशुओं के उत्थान के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं चला रखी हैं. कई एनजीओ इस पर काम कर रहे हैं. बोर्ड ने बजट भी जारी कर दिया है।
याचिकाकर्ता का पक्ष
याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि पशु कल्याण बोर्ड की ओर से हलफनामे में पेश किए गए आंकड़े कागजों तक ही सीमित हैं. लावारिस पशु हर गली, मोहल्ले, सड़क और नालियों में घूमने को मजबूर हैं। अगर उनके कल्याण के लिए धरातल पर कुछ काम किया गया होता तो आज उनकी यह मजबूरी नहीं होती.