1880 की आपदा में हुई थी 151 लोगों की मौत, नैनीताल पर मंडराया बड़े भूस्खलन का खतरा
नैनीताल पर मंडराया बड़े भूस्खलन का खतरा
नैनीताल: मॉनसून के तेजी पकड़ते ही उत्तराखंड में भूस्खलन भी तेजी से हो रहे हैं।
बात की जाए नैनीताल की तो नैनीताल भूस्खलन के लिहाज से बेहद संवेदनशील है। इतिहास भी इन बात का गवाह है कि नैनीताल में भूस्खलन की वजह से बहुत तबाही मची है।इतिहास खंगाल कर देखा जाए तो नैनीताल में 1880 में जबरदस्त तबाही मची थी। यह भूस्खलन की दृष्टि से बेहद संवेदनशील क्षेत्र है। यहां की संवेदनशील पहाड़ियाें से लगातार भूस्खलन होने के कारण खतरा बढ़ रहा है।
1880 में भी नैनीताल में भूस्खलन होने से 151 लोगों की मौत हो गई थी। दरअसल 18 सितंबर 1880 को शेर का डांडा क्षेत्र में आल्मा की पहाड़ी पर भूस्खलन में 151 लोगों की मौत हो गई थी। मृतकों में 43 अंग्रेज शामिल थे। 18 सितंबर, 1880 शनिवार का दिन नैनीताल के इतिहास में काले अक्षरों में दर्ज है। दो दिन से लगातार बारिश हो रही थी। इसके बाद मल्लीताल में भूस्खलन शुरू हो गया। भूस्खलन इतना भीषण था कि मल्लीताल में तमाम इमारतें इसकी चपेट में आकर ध्वस्त हो गईं। भूस्खलन का मलबा आने से नैनादेवी मंदिर क्षतिग्रस्त हो गया था। मरने वाले 151 लोगों में 108 भारतीय और 43 ब्रिटिश नागरिक शामिल थे। तब यहां अंग्रेजों ने नालों का निर्माण करवाया जिसको यहां की लाइफलाइन कहा जाता है। नैनीताल में पहली बार भूस्खलन 1867 में हुआ था। साल 1867 में यहां पहला भूस्खलन वर्तमान के चार्टन लॉज की पहाड़ी पर हुआ था। तब कुमाऊं के कमिश्नर रहे सर हेनरी रैमजे ने हिल साइड सेफ्टी कमेटी का गठन किया, जो नैनीताल के संवेदनशील इलाकों के बारे में जानकारी जुटाती थी। यह बात तो रही इतिहास की मगर सच तो यह है कि इतिहास से हमने कोई सबक नहीं सीखा है और आज भी नैनीताल में पहाड़ों से गुजर रहे वाहनों पर, वहां रहने वाले लोगों के ऊपर खतरा मंडरा रहा है। इस बार फिर से नैनीताल के पहाड़ी क्षेत्र रिस्क पर हैं। इनका एक बड़ा कारण अवैध निर्माण कार्य भी है। नैनीताल के ग्रीन फील्ड जोन में धड़ाधड़ अवैध निर्माण और नगर के नालों पर अतिक्रमण से एक बार फिर बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है।