महिलाओं को नहीं होगी परेशानी, महिला कल्याण विभाग की नई पहल

Update: 2022-07-06 14:23 GMT

वाराणसी: कार्य स्थल पर महिलाओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए महिला कल्याण विभाग की ओर से एडवाइजरी जारी की गई है. जिसके तहत ये बताया गया है कि शासकीय, अर्धशासकीय कार्यालयों, निजी संगठनों, शैक्षणिक संस्थानों, खेलकूद संस्थानों सहित संगठित और असंगठित क्षेत्र के समस्त कार्यालयों आदि में जहां भी 10 से अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं, चाहे वे सभी पुरूष ही क्यों न हों, वहां पर आंतरिक परिवाद समिति यानी कि इन्टरनल कम्प्लेंट्स कमेटी का गठन करना अनिवार्य है, क्योंकि ऐसे कार्यालयों में कभी भी किसी काम के लिए महिलाएं भी आ सकती हैं. उनके साथ भी कोई घटना हो सकती है. ऐसे में वह कार्यालय में गठित आंतरिक परिवाद समिति को अपनी शिकायत कर सकती हैं. ऐसा न करने वाले नियोजकों पर 50 हजार रुपये का अर्थदंड लगाया जा सकता है.

इस बारे में महिला कल्याण विभाग के निदेशक मनोज कुमार राय (Director Manoj Kumar Rai) ने बताया कि महिला सुरक्षा सरकार की प्राथमिकता है. समाज के साथ साथ सरकारी विभाग से लेकर निजी कम्पनियों तक मे उनकी सुरक्षा अनिवार्य है. लेकिन ज्यादातर निजी कंपनियों में कार्यस्थल पर महिलाओं के उत्पीड़न की सूचनाएं आती हैं. इन घटनाओं पर लगाम लगाने के लिए संविधान में प्रावधान किया गया है.

जहां लैंगिक उत्पीड़न अधिनियम 2013 (Sexual Harassment Act 2013) की धारा 4 के अंतर्गत ऐसे सभी संगठन या संस्थान जिनमें 10 से अधिक कर्मचारी हैं, वह आंतरिक शिकायत समिति गठित करने के लिए बाध्य हैं. जिससे महिलाओं को लैंगिक उत्पीड़न सम्बन्धी मामलों में त्वरित और समुचित न्याय दिलाया जा सकें. उन्होंने बताया कि पीड़ित महिला कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न से सम्बन्धित शिकायत आन्तरिक परिवाद समिति में दर्ज करा सकती है.

उन्होंने बताया कि ऐसे कार्यस्थल जहां कार्मिकों की संख्या 10 से कम है, वहां की पीड़िता की ओर से लैंगिक उत्पीड़न की शिकायत प्रत्येक जनपद में जिलाधिकारी द्वारा गठित 'स्थानीय समिति' में दर्ज करायी जा सकती है. यदि कोई नियोजक कार्यस्थल में नियमानुसार आन्तरिक समिति का गठन न किये जाने पर दोष सिद्ध ठहराया जाता है, तो नियोजक पर 50,000 रुपये तक का अर्थदण्ड लगाया जा सकता है. दूसरी बार दोषी पाए जाने पर पहली दोषसिद्धि पर लगाये गये दण्ड से दोगुना दण्ड नियोजक पर लगाया जा सकता है.

महिला कल्याण विभाग की उप निदेशक अनु सिंह ने बताया कि कार्यस्थल पर महिलाओं को उनकी इच्छा के विरूद्ध छूना या छूने की कोशिश करना जो महिला के सामने असहज स्थिति पैदा करने वाली हो, उसे लैंगिक उत्पीड़न के दायरे में माना जा सकता है. शारीरिक या लैंगिक सम्बन्ध बनाने की मांग करना या उम्मीद करना भी लैंगिक उत्पीड़न है.

इसके आलावा किसी महिला से कार्य स्थल पर अश्लील बातें करना, अश्लील तस्वीरें, फिल्में या अन्य सामग्री दिखाना भी लैंगिक उत्पीड़न के दायरे में आ सकता है. उन्होंने बताया कि जनपद के समस्त कार्यालयों में नियमानुसार गठित समिति की ओर से प्राप्त प्रकरणों की सूचना जिलाधिकारी कार्यालय को दी जानी चाहिए तथा जिलाधिकारी कार्यालय के माध्यम से प्रत्येक जनपद द्वारा वार्षिक रूप में जनपद के विभिन्न कार्यालयों की संक्षिप्त रिपोर्ट का ब्योरा महिला कल्याण निदेशालय को भी भेजा जाना अनिवार्य है. विभाग द्वारा समस्त जनपदों को इस संबंध में निर्देश जारी किये गये हैं.


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