गोरखपुर में वायरल, निमोनिया और पीलिया के मरीज बढ़े
बीआरडी मेडिकल कॉलेज, जिला अस्पताल और महिला अस्पताल में वायरल, निमोनिया, पीलिया से पीड़ित बच्चों की संख्या बढ़ती जा रही है
बीआरडी मेडिकल कॉलेज, जिला अस्पताल और महिला अस्पताल में वायरल, निमोनिया, पीलिया से पीड़ित बच्चों की संख्या बढ़ती जा रही है। बीआरडी का 458 बेड का बच्चों का वार्ड फुल हो चुका है। डॉक्टरों ने सलाह दी है कि बच्चों को बेवजह बाहर लेकर न निकलें।
पिछले साल की तुलना में इस बार बारिश कम हुई है। इसका असर अब बच्चों की सेहत पर भी पड़ रहा है। बीआरडी के बाल रोग विभाग में दो माह पहले जहां 100 से 150 मरीजों की ओपीडी होती थी, अब यह संख्या 250 के आसपास पहुंच गई है।
जिला अस्पताल के बाल रोग विभाग में 60 से 70 बच्चों की ओपीडी थी, जो बढ़कर 150 के आसपास हो गई है। महिला अस्पताल में भी यह संख्या 20 से बढ़कर 40 से 50 के आसपास पहुंच गई है। ओपीडी में पहुंचने वाले ज्यादातर बच्चे वायरल, निमोनिया, पीलिया से ग्रसित मिल रहे हैं।
बीआरडी मेडिकल कॉलेज के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. भूपेंद्र शर्मा ने बताया कि मौसम में हुए बदलाव के कारण डायरिया, टायफायड, पीलिया के मरीजों की संख्या बढ़ी है। अमूमन इस मौसम में इतने मरीज नहीं मिलते थे।
गर्मी के मौसम में भी मिल रहे निमोनिया के मरीज
डॉ. भूपेंद्र शर्मा ने बताया कि इस मौसम में निमोनिया के मरीज मिलना चिंताजनक है। इसकी वजह क्या है? यह शोध का विषय है। लेकिन, जिन बच्चों में निमोनिया के लक्षण मिल रहे हैं, उनके निमोनिया वायरस का असर ज्यादा देखने को मिल रहा है। अमूमन निमोनिया के मरीज अक्तूबर के बाद मिलते थे।
हाईग्रेड फीवर बिगाड़ रहीं मानसिक स्थिति
वायरल फीवर, निमोनिया ने डॉक्टरों की चिंता को और बढ़ा दिया है। बीआरडी मेडिकल कॉलेज की बाल रोग विभागाध्यक्ष डॉ. अनीता मेहता ने बताया कि तेज बुखार के साथ ही बच्चों की मानसिक स्थिति भी बिगड़ रही है। कई बार तो वायरल फीवर में हाई ग्रेड फीवर हो रहा है। बच्चों में 103 से 104 डिग्री फारेनहाइट तक बुखार चढ़ जा रहा है। इसके कारण उनके मानसिक स्थिति में बदलाव आ रहा है। उन्होंने बताया कि मेडिकल कॉलेज में मौजूदा समय में 100 से अधिक न्यू बोर्न बेबी भर्ती हैं। इनमें वायरल फीवर और पीलिया की समस्या अधिक है।
सांस लेने में हो रही है तकलीफ
कुछ बच्चों में सांस लेने में भी तकलीफ की शिकायतें मिली हैं। इन बच्चों की जांच की गई है तो पता चला कि इनमें निमोनिया का असर ज्यादा है। इसके अलावा फेफड़े भी संक्रमण की चपेट में हैं। लेकिन, राहत की बात यह है कि इनमें कोरोना की पुष्टि नहीं हुई है।
इंसेफेलाइटिस के मरीज हुए कम
बारिश कम होने की वजह से इस बार इंसेफेलाइटिस के मरीजों की संख्या अचानक कम हो गई है। डॉ. अनीता मेहता ने बताया कि 2020 में एईएस के 235 मरीज मिले थे, इनमें 14 की मौत हुई थी। जबकि, जेई के दो मरीज मिले थे। इसके अलावा 2021 में 251 मरीज एईएस के मिले थे, इनमें 15 की मौत हुई थी। जेई के केवल 14 मरीज मिले थे। इस साल एईएस के 27 मरीज मिले हैं। इनमें किसी की मौत नहीं हुई है। जबकि सात जापानी इंसेफेलाइटिस के मरीज मिले हैं। इनमें एक की मौत हुई है