घाघरा नदी की कटान से गांव बचाने के लिए चंदा कर खुद जुटे ग्रामीण

Update: 2022-09-28 09:57 GMT
उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में घाघरा नदी की कटान की त्रासदी से सैकड़ों गांव प्रभावित हैं. कुछ जगहों पर तो गांवों का अस्तित्व ही संकट में है. इसके बावजूद प्रशासनिक इंतजाम इतने नाकाफी हैं कि लोगों को अपने गांव का वजूद और अपनी संपत्ति बचाने के लिए खुद मैदान में उतरना पड़ा है। ग्रामीण चंदा जुटा कर कटान से बचाने का भगीरथ प्रयास कर रहे हैं, तो घाघरा को मनाने के लिए पूजा-आरती का सहारा भी लिया जा रहा है. घाघरा के कटान के बड़े पैमाने पर शिकार हो रहा मझारा तौकली और ग्यारह सौ रेती गांव ग्रामीणों द्वारा किए जा रहे श्रम आंदोलन के कारण चर्चा में है।
लगभग कटने की कगार पर खड़े इस गांव से जुड़े ग्रामीणों ने देशी जुगाड के जरिए वो रास्ता खोज निकाला है जो भारी भरकम खर्चे के बिना फौरी तौर पर कटान से राहत देने वाला है. ग्रामीणों ने कटे पेड़ों और उसकी पत्तेदार टहनियों को खूंटे से गड़ी रस्सी से बांध कर नदी के किनारे पानी में डालना शुरू किया है. इससे नदी की लहरें जमीन से सीधे टकराने की बजाय पानी में डाले गए पेड़ों से टकरा रही हैं. इसके चलते कटान पर काफी अंकुश लगा है। ग्रामीणों ने रस्सी और अन्य सामानों पर होने वाले इस खर्चे के लिए वॉट्सऐप और अन्य माध्यमों से आर्थिक मदद की अपील की है।
इसमें लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा भी ले रहे हैं. कटान प्रभावित ग्यारह सौ रेती गांव के किनारे हो रहे ग्रामीणों के इस सामूहिक श्रमदान को देखकर रामायण का वह प्रसंग याद आता है जब वानरों के संग गिलहरियां भी समुद्र पर पुल बनाने में जुट गई थीं। घाघरा नदी से हो रही कटान ने बहराइच जिले की चार तहसीलों कैसरगंज, महसी, नानपारा वा मोतीपुर में बड़े पैमाने पर तबाही मचा रखी है. कटान प्रभावित सैकड़ों गांव के सरकारी स्कूल, पंचायत भवन नदी में जलमग्न हो कर अपना अस्तित्व खो चुके हैं. हर साल बड़े पैमाने पर हो रही कटान से हजारों हेक्टेयर कृषि भूमि नदी की धारा में विलीन हो चुकी है।
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