उत्तर-प्रदेश: सुनहरे भारत की राह तैयार करेगी राष्ट्रीय शिक्षा नीति, दूसरे दिन शोध की गुणवत्ता पर चर्चा
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नई शिक्षा नीति सुनहरे भारत की नई राह तैयार करेगी और आने वाले सौ सालों के विजन के अनुसार विश्वविद्यालय और शिक्षण संस्थाओं का खाका खींचा जाएगा। भारत की प्राचीन संस्कृति, सभ्यता, कला और ज्ञान को आधार बनाकर रोजगारपरक शिक्षा का मॉडल नए भारत की तस्वीर दुनिया के सामने रखेगा। शुक्रवार को सिगरा स्थित रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में आयोजित तीन दिवसीय अखिल भारतीय शिक्षा समागम में शिक्षाविदों ने ये बातें कहीं। समागम के दूसरे दिन शोध, शिक्षा की गुणवत्ता, डिजिटल इंपावरमेंट, ऑनलाइन शिक्षा, भारतीय भाषा और ज्ञान के विविध आयामों पर चर्चा की गई।
दूसरे दिन के पहले सत्र में आईआईएससी बेंगलूरू के निदेशक प्रो. जी रंगराजन ने कहा कि राज्य विश्वविद्यालयों में शोध के लिए वातावरण तैयार करना होगा। इसमें राज्य सरकारों की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। एआईसीटीई के चेयरमैन प्रो. अनिल डी सहस्त्रबुद्धे ने कहा कि हमें विद्यार्थियों की पसंद व बाजार तथा उद्योग की आवश्यकता के अनुसार पाठ्यक्रम तैयार करने होंगे।
विद्यार्थियों को विषयों के व्यापक विकल्पों में से चुनने का मौका दिया जाए। भारतीय शिक्षा पद्धति में अनुवाद को लेकर चुनौतियां पैदा होती हैं। ऐसे में उनके समाधान के लिए प्रभावी रास्ते तलाशने होंगे। राष्ट्रीय शिक्षा नीति ड्राफ्टिंग कमेटी के सदस्य प्रो. एके श्रीधर ने कहा कि विश्वविद्यालय और महाविद्यालयों में एथिकल लीडरशिप विकसित करने की जरूरत है। हम अपनी जिम्मेदारियों से नहीं भाग सकते हैं। इस दौरान राज्यपाल आनंदी बेन पटेल, केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और देश भर के शिक्षाविद मौजूद रहे।
भारतीय शिक्षण संस्थानों में नहीं लागू हो सकते एक जैसे मानक
क्वालिटी रैंकिंग एंड एक्रेडिटेशन विषयक सत्र को संबोधित करते हुए नेशनल बोर्ड आफ एक्रेडेशन के चेयरमैन प्रो. केके अग्रवाल ने कहा कि रैंकिं ग, रेटिंग व एक्रेडेशन गुणवत्ता के ही विभिन्न स्वरूप हैं। जैसे तकनीक या उपकरणों के नए-नए संस्करण आते रहते हैं, उसी प्रकार यदि एक शिक्षक भी हर शैक्षणिक सत्र में अपना नया संस्करण प्रस्तुत करे तो गुणवत्तापरक शिक्षा आसानी से संभव हो पाएगी। भारत के शैक्षणिक संस्थानों में ही व्यापक विविधता है। उन सभी का मूल्यांकन करना अत्यंत चुनौतीपूर्ण कार्य है। सभी के लिए एक जैसे मानक लागू नहीं हो सकते हैं। हम सभी को अपने संस्थानों के लिए ऐसी योजनाएं बनानी होंगी, जो यह स्पष्ट रूप से बताएं कि हमारे संस्थानों से क्या अपेक्षित है।
स्कूली शिक्षा के स्तर से ही करना होगा भारतीय भाषा का प्रोत्साहन
भारतीय भाषा और भारतीय ज्ञान व्यवस्था पर भारतीय भाषा परिषद के चेयरमैन प्रो. चम्मू कृष्ण शास्त्री ने कहा कि भाषा पढ़ाना तथा भाषा के माध्यम से पढ़ाना दोनों अलग-अलग विषय हैं। शिक्षकों को यह समझना होगा। राष्ट्रीय शिक्षा नीति विद्यार्थियों को भारतीय भाषाओं में अध्ययन व अनुसंधान की बात कहती है। यह बहुभाषी होने की बात करती है, इसे व्यवहार में लाना होगा। हममें से अधिकतर लोग एक भाषा में मंझे हुए हैं। अगर हम सब एक और भारतीय भाषा को सीख लें तो बहुभाषी अवधारणा को साकार करने का काम आसान हो जाएगा। भारतीय भाषाओं के प्रोत्साहन की दिशा में अनेक चुनौतियां हैं। मानविकी के विषयों के लिए तो यह आसान होगा लेकिन विज्ञान विषय के लिए मुश्किल। स्कूली शिक्षा के स्तर से ही भारतीय भाषा का प्रोत्साहन करना होगा।
कोर्स आधारित पंजीकरण का है समय, नहीं पढ़ना होगा पूरा प्रोग्राम
सक्सेज स्टोरीज एंड बेस्ट प्रैक्टिस ऑफ एईपी -2020 पर चर्चा करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने कहा कि अब वक्त आ गया है कि अब कोर्स आधारित पंजीकरण किए जाएं, ताकि विद्यार्थियों को पूरा प्रोग्राम ना पढ़ना पड़े। ऐसे संस्थान जिनके पास पर्याप्त संसाधन नहीं हैं, उन्हें उन संस्थानों के संसाधन प्रयोग करने की सुविधा देनी होगी। कौशल विकास, इंटर्नशिप और उद्यमिता के अवसरों में बढ़ोतरी करनी होगी। इसके साथ ही राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत नए पाठ्यक्रमों की शुरूआत करनी होगी। विद्यार्थियों को फ्लेक्सी प्रवेश व एग्जिट की सुविधा के साथ एडवांस व वृहद पाठ्यक्रम के लिए विद्यार्थियों को तैयार करने के लिए क्रैश कोर्स शुरू करने होंगे।
युवाओं को रोजगार ढूंढने वाला नहीं रोजगार देने वाला बनाएगी राष्ट्रीय शिक्षा नीति
अखिल भारतीय शिक्षा समागम के दूसरे दिन अलग-अलग सत्रों में नई शिक्षा नीति के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा हुई। इस अवसर पर कुलपतियों ने नई शिक्षा नीति को छात्रों में रचनात्मक सोच, तार्किक निर्णय की क्षमता और नवाचार की भावना को प्रोत्साहित करने वाला बताया।
बेरोजगारी की समस्या का समाधान
नई शिक्षा नीति युवाओं को भविष्य के लिए तैयार क रेगा। वो रोजगार ढूंढने वाले नहीं बल्कि सृजन करने वाले बनेंगे। वहीं इस नीति का दूसरा पक्ष ये भी है कि इसमें हमारी भावी पीढ़ी के मन में भारतीयता की अवधारणा के साथ ही भारतीय ज्ञान परंपरा विकसित करने पर भी जोर दिया गया है। उन्होंने कहा कि डिजिटल लर्निंग कभी भी क्लास रूम टिचिंग का विकल्प नहीं बन सकता है।
युवाओं की योग्यता निखारने का अच्छा मौका
नई शिक्षा नीति शिक्षकों के लिए काफी उपयोगी है। यह छात्रों को उनकी योग्यता निखारने का अच्छा मौका देगी। नई नीति के अनुसार शिक्षा युवाओं की प्रतिभा और कुशलता को नए पंख देगी, जिससे वह विश्व भर में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाएंगे। इसमें उद्योगों के अनुसार पाठ्यक्रम तैयार होंगे, जो युवाओं के लिए मदद करेगा। नई शिक्षा नीति की सफलता के लिए लोगों को अपने नजरिए व सोच में बदलाव लाना होगा।
अंतर्विषयी अध्ययन के साथ युवाओं को शोध का बेहतर मौका
नीति शिक्षण प्रक्रिया में तकनीकी की शिक्षा पर जोर देने के साथ राष्ट्रीय शैक्षिक प्रौद्योगिकी मंच की स्थापना सरीखे नवीन सुधारों पर जोर देती है। यह वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देगी। शिक्षा के इस नए पैटर्न के तहत विश्वविद्यालयों में अंर्तविषयी अध्ययन केंद्र बनेंगे। जहां युवाओं को हर विषय की शिक्षा दी जाएगी। इससे छात्र अपनी प्रतिभा व रुचि के अनुसार विषयों का चयन कर सकता है। यहीं नहीं इनोवेशन लैब उन्हें शोध के प्रति प्रेरित करेगा।
शिक्षा की गुणवत्ता के साथ ही सुधरेगी शोध की गुणवत्ता
देश भर के विश्वविद्यालयों को राष्ट्रीय शिक्षा नीति से नए आयाम मिलेंगे। नई शिक्षा नीति विद्यार्थियों को ढेर सारे अवसर भी प्रदान करेगी। शिक्षा की गुणवत्ता के साथ ही शोध की गुणवत्ता में भी सुधार आएगा और इसका फायदा समाज व देश को भी मिलेगा। 30 सालों के बाद तैयार राष्ट्रीय शिक्षा नीति के इस मसौदे ने शिक्षा जगत के लिए ढेर सारे अवसर उपलब्ध कराए हैं। यह आने वाले सौ सालों को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है। नई नीति युवाओं को रोजगार खाजने वाला नहीं रोजगार देने वाला बनाएगी। -प्रो. उमेश राय, कुलपति, जम्मू विश्वविद्यालय