उत्तर-प्रदेश: हाईकोर्ट ने यमुना हिंडन नदी के बाढ़ वाले इलाकों में हुए निर्माण पर लगाई रोक

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Update: 2022-06-17 09:04 GMT
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गौतम बौद्ध नगर, नोएडा में यमुना हिंडन नदी के बाढ़ मैदानी क्षेत्र में आने वाले क्षेत्र में स्थित फार्म हाउसों और वहां हुए निर्माणों के संबंध में पक्षों को 20 दिनों तक यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने यह आदेश हरित किसान कल्याण समिति द्वारा दायर याचिका के जवाब में पारित किया।
याचिका में आठ जून 2022 को नोएडा प्राधिकरण द्वारा जारी की गई सार्वजनिक नोटिस को चुनौती दी गई थी। जिसमें कहा गया है कि कथित अवैध फार्म हाउस और बाढ़ तट क्षेत्र पर हुए निर्माण अवैध हैं। इसलिए उन्हें ध्वस्त किया जाएगा। हरित किसान कल्याण समिति द्वारा दायर रिट याचिका का निपटारा करते हुए न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता और न्यायमूर्ति समीर जैन की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता को आठ जून के सार्वजनिक नोटिस के अनुसरण में दस दिनों के भीतर आपत्ति दर्ज करने की अनुमति दी। अदालत 14 जून के अपने आदेश में नोएडा के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) को निर्देश दिया कि वह दायर की गई आपत्तियों पर निर्णय लें।
याचिका में याचिकाकर्ता ने न्यू ओखला औद्योगिक विकास प्राधिकरण (नोएडा) द्वारा जारी एक सार्वजनिक नोटिस दिनांक 8 जून 2022 को चुनौती दी थी। जिसमें कहा गया था कि अधिसूचित क्षेत्र में मंजूरी के बिना कोई भी निर्माण की अनुमति नहीं है। हाल ही में यमुना हिंडन नदी के बाढ़ के मैदानी क्षेत्र में कई अवैध निर्माण बिना किसी मंजूरी के किए गए हैं। इसलिए अधिसूचित क्षेत्र/बाढ़ के मैदानी क्षेत्र में सभी निर्माण अवैध हैं और उन्हें तुरंत हटा दिया जाना चाहिए। नोटिस में कहा गया है कि ऐसा नहीं करने पर इसे नोएडा प्राधिकरण द्वारा ध्वस्त कर दिया जाएगा।
याचिकाकर्ता के वकील ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता की ओर से कराए गए अधिकांश निर्माण वर्ष 2010 के हैं और अब सीधे नोएडा प्राधिकरण ने आठ जून को सार्वजनिक नोटिस जारी किया है। और अब निर्माण को ध्वस्त करने की धमकी दे रहा है। याचिकाकर्ता को कोई व्यक्तिगत नोटिस नहीं दी गई है और केवल आठ जून के उक्त सार्वजनिक नोटिस के आधार पर नोएडा प्राधिकरण निर्माण को ध्वस्त करने की धमकी दे रहा है।
दूसरी ओर अतिरिक्त महाधिवक्ता मनीष गोयल ने यमुना निगरानी समिति द्वारा राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के समक्ष प्रस्तुत विभिन्न कार्यवाही और रिपोर्टों की ओर अदालत का ध्यान आकर्षित किया और तर्क दिया कि नोएडा प्राधिकरण ने सार्वजनिक नोटिस जारी करते समय कानून केअनुसार सख्ती से काम किया है।
अदालत द्वारा किए गए एक प्रश्न पर कि क्या याचिकाकर्ता समाज के सदस्यों या उक्त सार्वजनिक नोटिस से प्रभावित होने वाले अन्य व्यक्तियों के खिलाफ कोई व्यक्तिगत विध्वंस आदेश अस्तित्व में था। एजी ने स्वीकार किया कि अस्तित्व में कोई व्यक्तिगत आदेश नहीं है। उन्होंने यह तर्क देने का प्रयास किया कि प्राधिकरण के लिए उस भूमि के वास्तविक मालिक/अधिभोगी की पहचान करना मुश्किल है। जिस पर इस तरह के निर्माण किए गए हैं। इसलिए अब तक व्यक्तिगत नोटिस/आदेश जारी नहीं किया गया है।
हालांकि, उनका कहना है कि यदि याचिकाकर्ता नोटिस के अनुसरण में आपत्ति दर्ज करते हैं, तो इसे कारण बताओ नोटिस मानते हुए नोएडा प्राधिकरण इसका फैसला करेगा और निपटान तक कोई कार्रवाई नहीं करेगा।
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