शव कई दिन तक जहां-तहां पड़े रहे; इंदिरा ने कहा था-मुसलमान असुरक्षित होते तो आबादी दोगुनी न होती
असुरक्षित होते तो आबादी दोगुनी न होती
योगी सरकार ने 1980 में हुए मुरादाबाद दंगों की जांच रिपोर्ट विधानसभा में पेश की। इसके बाद से 43 साल पहले हुए मुरादाबाद दंगे फिर सुर्खियों में हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट के तत्कालीन जज जस्टिस एमपी सक्सेना ने 20 नवंबर 1983 को ही अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी। लेकिन, 43 साल में किसी भी सरकार ने इस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया। मुरादाबाद दंगे से न सिर्फ मुरादाबाद जला था, बल्कि आसपास के कई शहरों को भी इसने अपनी चपेट में लिया था।
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी 16 अक्टूबर 1980 को मुरादाबाद आई थीं। उन्होंने यहां दंगा प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया था। इंदिरा गांधी ने उसी ईदगाह में एक जनसभा को संबोधित किया था, जहां से दंगे भड़के थे। इसमें कहा था- मुसलमान अपने आप को असुरक्षित न समझें। क्योंकि, यदि मुसलमान असुरक्षित होते तो यहां आजादी के बाद उनकी जनसंख्या में दोगुनी वृद्धि न हुई होती।
हम आपको तस्वीरों के जरिए उस वक्त के हालात बयां करने की कोशिश करेंगे... लेकिन उससे पहले आपको दंगों के बारे में भी फैक्ट पढ़वाते हैं...
रिकॉर्ड में सिर्फ 83 मौतें, सैकड़ों ऐसे जो 43 साल बाद भी घर नहीं लौटे
सरकारी दस्तावेज बताते हैं कि आजाद भारत के सबसे लंबे दंगों में शुमार होने वाले 1980 के मुरादाबाद दंगे में 83 लोगों की जान गई। 112 लोग घायल हुए। लेकिन, यह वो आंकड़ा है, जो पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के आधार पर तैयार हुआ। इसके इतर सैकड़ों ऐसे लोग हैं, जो दंगे के दिन 13 अगस्त 1980 को अपने घरों से निकले थे, लेकिन न तो कभी इनकी लाशें मिलीं और न ही 43 साल बीतने के बाद भी ये घर लौटे हैं।
रमा अग्रवाल के पति विजय अग्रवाल घर से सामान लेने निकले थे। 43 साल बाद भी न तो वो घर लौटकर आए हैं और न आज तक उनकी लाश मिली।
रमा अग्रवाल के पति विजय अग्रवाल घर से सामान लेने निकले थे। 43 साल बाद भी न तो वो घर लौटकर आए हैं और न आज तक उनकी लाश मिली।
उस वक्त शहर के मंडी चौक मोहल्ले में रहने वाले विजय अग्रवाल घर से कुछ सामान खरीदने निकले थे। विजय अग्रवाल के बेटे संजय अग्रवाल का कहना है कि 43 साल बाद भी न तो उनके पिता घर लौटे हैं और न ही कभी उनकी लाश मिली। ऐसी ही कहानी गलशहीद चौराहा निवासी फहीम हुसैन की है।
फहीम बताते हैं, ''13 अगस्त 1980 को पुलिस वाले उनके घर से उनके दादा अनवार हुसैन, पिता सज्जाद हुसैन, चाचा कैसर हुसैन और नौकर अब्दुल बिहारी को ले गए थे। इसके बाद न तो कभी उनकी डेडबॉडी मिलीं और न ही वो कभी लौटकर घर आए। शहर में ऐसी ही तमाम और भी कहानियां हैं। मिसिंग लोगों की ये तादाद बताती है कि मुरादाबाद दंगे में मरने वालों की संख्या सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज आंकड़ों से काफी ज्यादा थी।''
फहीम हुसैन के पिता, दादा, चाचा और नौकर को 13 अगस्त 1980 को पुलिस घर से ले गई थी। चारों का आज तक कुछ पता नहीं चला।
फहीम हुसैन के पिता, दादा, चाचा और नौकर को 13 अगस्त 1980 को पुलिस घर से ले गई थी। चारों का आज तक कुछ पता नहीं चला।
2 महीने बेकाबू रहे हालात, 5 महीने तक चली हिंसा
13 अगस्त 1980 को मुरादाबाद में ईदगाह में ईद की नमाज के बाद हिंसा भड़की थी। उस वक्त नमाजियों के बीच सुअर घुस जाने की अफवाह के बाद ईदगाह में भगदड़ मच गई थी। उत्तेजित नमाजियों ने पहले पुलिस को निशाना बनाया था, फिर हिंदू उनके टारगेट पर आ गए थे।
देखते-देखते ही इस हिंसा ने हिंदू-मुस्लिम दंगे का रूप ले लिया था। शहर के सिविल लाइन्स एरिया को छोड़कर बाकी पूरा शहर दंगे की आग में जल उठा था। 13 अगस्त 1980 को शुरू हुए दंगे इतने भयानक थे कि करीब 2 महीने तक हालात पूरी तरह बेकाबू रहे थे। अक्टूबर के मध्य तक पुलिस-प्रशासन हालात पर नियंत्रण पा सका था।
1980 के दंगे का जिक्र छिड़ते ही रमा देवी की आंखों से आंसू बहने लगते हैं। आसूं पोंछते हुए कहती हैं- वो (विजय अग्रवाल रमा देवी के पति) 43 साल बाद भी लौटकर नहीं आए। सालों तक हर आहट पर लगा मानो वो आ गए हैं। कभी उनकी लाश भी नहीं मिली।
1980 के दंगे का जिक्र छिड़ते ही रमा देवी की आंखों से आंसू बहने लगते हैं। आसूं पोंछते हुए कहती हैं- वो (विजय अग्रवाल रमा देवी के पति) 43 साल बाद भी लौटकर नहीं आए। सालों तक हर आहट पर लगा मानो वो आ गए हैं। कभी उनकी लाश भी नहीं मिली।
लेकिन हिंसा की घटनाएं दिसंबर 1980 के अंत तक रह-रहकर होती रही थीं। मुरादाबाद के दंगे करीब 5 महीने तक चले थे। इसीलिए इसे देश में सबसे लंबे दंगे के रूप में भी देखा जाता है। इस दंगे में दोनों पक्षों की ओर से कुल 207 मुकदमे दर्ज हुए थे। इसमें से कुछ मामले पुलिस की ओर से दर्ज किए गए थे।
पुलिस-प्रशासन ने तब 18 लोगों के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) के तहत कार्रवाई की थी। इसमें दंगे का सूत्रधार मुस्लिम लीग के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष डॉ. शमीम अहमद खान का नाम भी शामिल था। इसके अलावा, कांग्रेस के तत्कालीन शहर अध्यक्ष बाबू अशफाक अंसारी और शहर काजी काजी नुसरत को भी NSA के तहत जेल में रखा गया था।
2 दिन घर में ही पड़ी रही जमीला खातून की लाश
गलशहीद थाने के ठीक सामने जनरल स्टोर चलाने वाले मोहम्मद वसीम ने 1980 के मुरादाबाद दंगे में अपनी वालिदा (मां) जमीला खातून को खोया था। वसीम बताते हैं-13 अगस्त 1980 को ईद थी। जाहिर है सभी लोग बेहद खुश थे और सभी को ईद की नमाज पढ़कर एक दूसरे को ईद की मुबारकबाद देने की जल्दी थी। मेरे वालिद नमाज पढ़ने ईदगाह गए थे और वो नमाज पढ़कर लौट आए थे। मैंने पास की मस्जिद में ही नमाज पढ़ी थी। हम ईद की सिवईयां खाना शुरू करते उसके पहले ही दंगा भड़क चुका था।
घर में बन रहे पकवानों की खुशबू थोड़ी देर में ही चीख पुकार और गोलियों के शोर और बारुद की दुर्गंध तले दब चुकी थी। ईदगाह के पास में ही हमारा घर है। हम लोग डरे सहमे घर में छुप गए और दरवाजे को ठीक से बंद कर लिया। लेकिन, थोड़ी देर में ही दरवाजा तोड़े जाने की आवाजें आने लगीं। मारे डर के हम लोग दौड़कर छत पर पहुंचे और जहां-तहां भाग गए। मेरी वालिदा घर में ही रह गईं। बाद में उनकी लाश घर में पड़ी मिली।"
तस्वीर मोहम्मद वसीम की है। वसीम ने दंगे में अपनी मां जमीला खातून को खोया था।
तस्वीर मोहम्मद वसीम की है। वसीम ने दंगे में अपनी मां जमीला खातून को खोया था।
वसीम बताते हैं- मेरी वालिदा को गोली लगी थी। बाद में हमारे घर को आग लगा दी गई थी। 2 दिन तक उनकी लाश घर में ही पड़ी रही। 2 दिन बाद रामपुर नवाब के आने पर ही लाश को घर से निकाला जा सका। वसीम का कहना है कि उनके घर पर हमला और आगजनी पीएसी के जवानों ने की थी।
2 महीने बाद मुरादाबाद पहुंची थीं तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी 16 अक्टूबर 1980 को मुरादाबाद आई थीं। उन्होंने दंगा प्रभावित ईदगाह, गलशहीद, बरवलान क्षेत्रों का दौरा किया। इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उसी ईदगाह में एक जनसभा को संबोधित किया था, जहां से दंगे भड़के थे।
इंदिरा गांधी ने कहा था कि अपराधियों को सजा दी जाएगी। वे चाहे किसी भी वर्ग के क्यों न हों। पुलिस में सभी लोग खराब नहीं होते, जिनकी गलती है उनके खिलाफ कार्रवाई होगी। उन्होंने कहा था कि मुसलमान अपने आप को असुरक्षित न समझें। क्योंकि, यदि मुसलमान असुरक्षित होते तो यहां आजादी के बाद उनकी जनसंख्या में दोगुनी वृद्धि न हुई होती।
जनसभा के बाद पत्रकार वार्ता में इंदिरा गांधी ने कहा था कि दुनिया की कोई भी सरकार अकेले अपने दम पर सांप्रदायिकता को खत्म नहीं कर सकती है। इसके लिए लोगों का परस्पर सहयोग जरूरी है। उन्होंने सरकारी अधिकारियों को भी निष्पक्ष कार्रवाई करने के निर्देश दिए थे।
तस्वीर 16 अक्टूबर 1980 की है। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी मुरादाबाद के दंगा प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करने के लिए मुरादाबाद आई थीं।
तस्वीर 16 अक्टूबर 1980 की है। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी मुरादाबाद के दंगा प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करने के लिए मुरादाबाद आई थीं।
14 अगस्त को मुरादाबाद पहुंचे थे विश्वनाथ प्रताप सिंह
13 अगस्त 1980 को दंगा भड़कने के बाद अगले दिन 14 अगस्त को देश के तत्कालीन गृह मंत्री ज्ञानी जैल सिंह और यूपी के तत्कालीन सीएम वीपी सिंह मुरादाबाद पहुंचे थे। इनके साथ उस वक्त के दो अन्य केंद्रीय मंत्री भी थे। मंत्रियों के इस दल ने मुरादाबाद के हालात पर पूरी रिपोर्ट तैयार करके पीएम इंदिरा गांधी को सौंपी थी। इसके बाद मुरादाबाद में मोहसिना किदवई और राजनारायण भी पहुंचे थे। 15 अगस्त 1980 को लालकिले की प्राचीर से भी इस दंगे का जिक्र हुआ था।
मुस्लिम लीग का डॉ. शमीम दंगे का सूत्रधार
जस्टिस एमपी सक्सेना आयोग की रिपोर्ट में मुस्लिम लीग के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष डॉ. शमीम अहमद खान को मुरादाबाद दंगों का सूत्रधार बताया गया है। शमीम के साथियों डॉ. अज्जी व कुछ अन्य की भी इसमें भूमिका था। दरअसल, डॉ. शमीम अहमद खान शहर विधानसभा से विधायक बनना चाहता था। वो दो बार चुनाव हार चुका था। इसलिए वो मुस्लिमों में अपना जनाधार बढ़ाना चाहता था।
आयोग की रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि 13 अगस्त 1980 को ईदगाह पर लगे मुस्लिम लीग के कैंप से ही नमाजियों के बीच सुअर घुसने की अफवाह फैलाई गई थी। इसके बाद डॉ. शमीम अहमद और उसके साथी डॉ. अज्जी आदि ने मुस्लिमों को भड़काया कि वो पुलिस-प्रशासन और हिंदुओं पर हमला करें।
तस्वीर 14 अगस्त 1980 की है। मुरादाबाद दंगे के बाद यूपी के तत्कालीन सीएम विश्वनाथ प्रताप सिंह मुरादाबाद पहुंचे थे।
तस्वीर 14 अगस्त 1980 की है। मुरादाबाद दंगे के बाद यूपी के तत्कालीन सीएम विश्वनाथ प्रताप सिंह मुरादाबाद पहुंचे थे।
आयोग ने कहा- सुअर घुसने की कहानी दंगा भड़काने को रची गई
नमाजियों के बीच में सुअर घुस जाने के मुस्लिम पक्ष के दावे पर आयोग ने कहा है,"ईदगाह पर करीब 80 हजार नमाजी थे। ईदगाह की घटना से संबंधित सभी साक्षियों ने यह कहा है कि नमाजी कतारों में इतने नजदीक बैठे थे कि उनके बीच में किसी का भी गुजरना संभव नहीं था। इतना निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि ईद की नमाज के दौरान जबकि सैकड़ों या हजारों लोग सड़क पर तथा फुटपाथ पर रहते हैं, ईदगाह क्षेत्र में कोई सुअर घुस नहीं सकता है। उस समय ईदगाह क्षेत्र में अत्यधिक भीड़ थी। जब नमाजी जमीन पर उखड़ू बैठ जाते हैं तो उस मैदान में एक चीटी भी नहीं घुस सकती है।
इसलिए अभिलेखों के साक्ष्य तथा परिस्थितियों से नमाजियों के बीच सुअर के घुसने की कहानी झूठी साबित हो जाती है। यह निरा कुचक्र है और इसे दंगा भड़काने के लिए इस्तेमाल किया गया था। जिससे कि वाल्मीकियों, जिन्होंने कि मुसलमानों के शौचालयों की सफाई करने से इनकार कर दिया था, उन्हें सबक सिखाया जा सके।"
10 तस्वीरों में देखिए, उस वक्त का दंगा...
तस्वीर 13 अगस्त 1980 को मुरादाबाद दंगे की है, दंगाइयों ने पुलिस कर्मी की हत्या कर दी थी।
तस्वीर 13 अगस्त 1980 को मुरादाबाद दंगे की है, दंगाइयों ने पुलिस कर्मी की हत्या कर दी थी।
हालात इस कदर बेकाबू थे कि दंगे में मरने वालों के शव कई दिन तक जहां-तहां पड़े रहे।
हालात इस कदर बेकाबू थे कि दंगे में मरने वालों के शव कई दिन तक जहां-तहां पड़े रहे।
घरों को फूंक दिया गया और करीब 2 महीने तक मुरादाबाद में पूरी तरह अराजकता रही।
घरों को फूंक दिया गया और करीब 2 महीने तक मुरादाबाद में पूरी तरह अराजकता रही।
कर्फ्यू लगाने के बावजूद स्थिति को नियंत्रित करने में पुलिस को 2 माह लगे।
कर्फ्यू लगाने के बावजूद स्थिति को नियंत्रित करने में पुलिस को 2 माह लगे।
13 अगस्त को शुरू हुए दंगे अक्टूबर के मध्य तक कंट्रोल में तो आए, लेकिन हिंसा की घटनाएं दिसंबर 1980 तक रुक-रुक कर होती रहीं।
13 अगस्त को शुरू हुए दंगे अक्टूबर के मध्य तक कंट्रोल में तो आए, लेकिन हिंसा की घटनाएं दिसंबर 1980 तक रुक-रुक कर होती रहीं।
पुलिस ने 18 लोगों पर NSA की कार्रवाई की थी। दंगाइयों से बड़े पैमाने पर हथियार भी मिले
पुलिस ने 18 लोगों पर NSA की कार्रवाई की थी। दंगाइयों से बड़े पैमाने पर हथियार भी मिले
1980 का मुरादाबाद दंगा आजादी के बाद देश का सबसे लंबे वक्त तक चला दंगा माना जाता है।
1980 का मुरादाबाद दंगा आजादी के बाद देश का सबसे लंबे वक्त तक चला दंगा माना जाता है।
तस्वीर 1980 की है। मुरादाबाद दंगे के बाद राजनारायण मुरादाबाद पहुंचे थे।
तस्वीर 1980 की है। मुरादाबाद दंगे के बाद राजनारायण मुरादाबाद पहुंचे थे।
तत्कालीन गृह मंत्री ज्ञानी जैल सिंह भी मुरादाबाद में दंगा प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करने पहुंचे थे।
तत्कालीन गृह मंत्री ज्ञानी जैल सिंह भी मुरादाबाद में दंगा प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करने पहुंचे थे।
अब पढ़िए आयोग की रिपोर्ट पर मुस्लिम लीग की प्रतिक्रिया
'आयोग की रिपोर्ट झूठी, पुलिस ने 700 मुसलमानों को मारा'
जस्टिस सक्सेना आयोग की रिपोर्ट में मुरादाबाद दंगे के लिए मुरादाबाद में रहने वाले मुस्लिम लीग के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष डॉ. शमीम अहमद खान और उनके कुछ साथियों को दोषी ठहराया गया है। इस पर प्रतिक्रिया लेने के लिए दैनिक भास्कर ने मुस्लिम लीग के राष्ट्रीय सह सचिव कौसर हयात खां से बात की।
कौसर हयात ने सक्सेना आयोग की रिपोर्ट झूठ का पुलिंदा बताया। उन्होंने कहा कि आयोग ने एक खुली अदालत लगाने के बजाय मुरादाबाद के तत्कालीन अधिकारियों और चुनिंदा लोगों से बंद कमरों में मीटिंगें कीं। इसके बाद अपनी एक मनगढ़ंत रिपोर्ट तैयार करके शासन को सौंप दी। उन्होंने कहा कि यह सब कुछ उस वक्त की कांग्रेस सरकार के इशारे पर हुआ था।
मुस्लिम लीग नेता ने कहा कि 13 अगस्त 1980 को ईदगाह मैदान में पुलिस ने सीधे नमाजियों पर गोली चलाई थी। जिसमें 700 नमाजियों की मौत हुई थी। 13, 14 और 15 अगस्त 1980 को मुरादाबाद में जो हुआ वो दंगा नहीं था, बल्कि तत्कालीन सरकार के इशारे पर पुलिस द्वारा मुसलमानों के खिलाफ की गई सीधी कार्रवाई थी। बाद में इस ढकने के लिए सांप्रदायिक दंगे का रंग दिया गया। 1976 में मुजफ्फरनगर और तुर्कमान गेट पर जो हुआ था, वही 1980 में कांग्रेस सरकार ने मुरादाबाद में दोहराया था।
यह फोटो मुस्लिम लीग के राष्ट्रीय सह सचिव कौसर हयात खां की है।
यह फोटो मुस्लिम लीग के राष्ट्रीय सह सचिव कौसर हयात खां की है।
कौसर बोले- योगी की नीयत इंसाफ देना नहीं, राजनीति करना
मुस्लिम लीग के राष्ट्रीय सह सचिव ने कहा कि इस रिपोर्ट को सार्वजनिक करने के पीछे यूपी के सीएम योगी की मंशा दंगा पीड़ितों को इंसाफ देना नहीं है, बल्कि इससे वो राजनीति करना चाहते हैं। अगर रिपोर्ट में थोड़ी भी सच्चाई थी तो उसे 43 साल तक छुपाकर क्यों रखा गया? इसे उसी वक्त सामने आना चाहिए था।
मुस्लिम लीग नेता ने कहा कि 14 अगस्त 1980 को तत्कालीन गृहमंत्री ज्ञानी जैल सिंह ने मुरादाबाद कोतवाली में मीटिंग ली थी। उन्होंने खुले मंच से स्वीकार किया था कि प्रशासन ने जुल्म किया है। 15 अगस्त को इंदिरा गांधी ने भी वादा किया था इकतरफा कार्रवाई की गई है, इसमें एक्शन होगा। लेकिन बाद में न तो किसी अफसर पर एक्शन हुआ न मरने वालों को मुआवजा मिला। डॉ. शमीम को दोषी बताया जा रहा है, जबकि दंगे के मामले में अदालत से वो बरी हो गए थे।