पोर्ट्रेट व्यक्ति की पेंटिंग की कलात्मक अभिव्यक्ति होती हैः अमित ढाने
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लखनऊ। पोर्ट्रेट एक व्यक्ति की पेंटिंग की कलात्मक अभिव्यक्ति होती है, जिसमें चेहरा और उसकी अभिव्यक्ति प्रमुख होती है। जब कलाकार खुद अपना चित्र बनाता है तो उसे आत्म-चित्रांकन कहते हैं। हमारे अंदर विचारों का भंडार है जो समय समय पर हमारे चेहरों पर प्रदर्शित होता है। तमाम भाव भावभंगिमा हमारे चेहरे पर रंगों के माध्यम से उभरते रहते हैं। कलाकार उन्हीं विचारों को रंगों के साथ उकेरता है। यह बातें लखनऊ के टैगोर मार्ग स्थित वास्तुकला एवं योजना संकाय, आर्ट स्टूडियो मे पुणे से आए पोर्ट्रेट विशेषज्ञ अमित ढाने ने कही। वह पोट्रेट पर अपना व्याख्यान प्रस्तुत कर रहे थे। कलाकार अमित ढाने ने उदाहरण प्रस्तुत करते हुए एक छात्र के पोर्ट्रेट के लिए चुना। ढाने ने छात्रों को पोर्ट्रेट बनाने से संबन्धित बहुत सी बारीकियों से अवगत कराया और जानकारी दी। जैसे छाया प्रकाश, जल रंग का प्रयोग कैसे करें, सर्वप्रथम पोर्ट्रेट के लिए उसका रेखांकन कैसा होना चाहिए, साथ ही रंगों स्ट्रोक आदि।
अमित ढाने ने बताया की मीडियम की अपनी सीमा होती है। पोर्ट्रेट के लिए केवल यही धारणा नहीं है कि वह रियलिस्टिक ही हो बल्कि पोर्ट्रेट के साथ बहुत से प्रयोग भी कलाकारों ने किए हैं, जो क्रिएटिव पोर्ट्रेट के रूप में देखते हैं। दूसरों के पोर्ट्रेट के साथ स्वयं के भी पोर्ट्रेट बनाना भी एक अद्भुत प्रयोग है। अपने आपको सीसे में देखकर बनाना या ख़ुद को कल्पना करना भी एक चुनौती पूर्ण कार्य होता है। अमित ढाने ने छात्रों को बताया की हमें अपनी मौलिक अभिव्यक्ति को ही सर्वप्रथम अभिव्यक्त करना चाहिए। आज लोग अपना दिमाग कम बल्कि आधुनिक गैजेट के इस्तेमाल ज्यादा करते हैं। कुछ भी बनाना होता है तो हम कॉपी करना शुरू कर देते हैं, जो कि कला में बहुत ही हानिकारक है। कलाकार अमित ने बताया की मैं जब काम करता हूं तो मोबाइल का इस्तेमाल नहीं करता जब तक कार्य पूर्ण नहीं हो जाता। कार्यक्रम के दौरान वास्तुकला संकाय की अधिष्ठाता डॉ वंदना सहगल, संकाय अध्यक्ष, राजीव कक्कड़, मोहम्मद सबहात, कला शिक्षक गिरीश पांडे, धीरज यादव, भूपेंद्र कुमार अस्थाना एवं रत्नप्रिया कान्त सहित वास्तुकला के लगभग 50 छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।