बरेली। बच्चों के लिए उनकी दादी-नानी ठंड आने से पहले ही लिए स्वेटर बुनना शुरू कर देती थीं। गांव से लेकर शहरों तक महिलाओं और लड़कियों को स्वेटर बुनने की ट्रेनिंग देने के लिए संस्थान खुले होते थे। आज आधुनिकता में हाथ से बुने हुए स्वेटरों का चलन काफी कम हो गया। ठंड के दिनों में अब लोग रेडीमेड स्वेटर या जैकेट पहनना ज्यादा पसंद करते हैं। अब कम ही महिलाएं ऊन खरीदकर स्वेटर बुनती हैं। इसकी वजह समय की कमी माना जाए या महिलाओं की स्वेटर बुनने में रुचि कम होना माना जाए। आजकल सभी को रेडीमेड स्वेटर ही पसंद आ रहे हैं।
घरों में स्वेटर बुने जाने का चलन कम होने से ऊन बेचने वाले व्यापारियों का बिजनेस भी मंदा पड़ गया है। जिले में इंद्रा मार्केट के पास दुकानदारों के अनुसार तीन-चार साल पहले तक यहां ऊन की बिक्री काफी अच्छी होती थी, लेकिन अब तो ऊन खरीदने वाले लोगों की संख्या दो-चार होती है कम ही हो गई है। ऊन के बजाय अब उन्हें दुकान में रेडीमेड स्वेटर रखना पड़ रहा है।
वहीं, कुछ शौकिया लोग अभी भी ऊन खरीदने पहुंच रहे है। दुकानदारों के अनुसार दोनों प्रकार के वस्त्रों में लगभग बराबर पैसा लगता है। तब तुरंत पैसे देकर स्वेटर खरीदना अधिक सुविधाजनक होता है। इसके अलावा महिलाओं के कामकाजी होने व समय की कमी होना भी रेडीमेड वस्त्रों को अपनाने का प्रमुख कारण है। रेडीमेड कपड़ों के जमाने में हाथ से बने स्वेटरों का चलन कम हो गया है।
इसका असर ऊन की बिक्री पर पड़ रहा है। अब ऊन की खरीदारी कम हो गई है। पहले महिलाएं ऊन की बुनाई में व्यस्त रहती थीं। स्वेटर, मफलर, दस्ताने, जुर्राबे और अन्य कपड़े भी ऊन से बनाती थी लेकिन इसका चलन लगातार कम होता जा रहा है। यही कारण है कि जहां पहले ऊन की दुकानें महिलाओं की भीड़ से भरी रहती थी वहा आज ग्राहकों का अकाल है।
240 रुपये की 400 ग्राम मिल रही लोकल ऊन
बाजार में दुकानों पर लोकल ऊन 240 रुपये की मिल रही है। वहीं, वर्धमान कंपनी की ऊन 350-400 रुपये व ओसवाल कंपनी की ऊन भी लगभग इसी रेंज की मिल रही है। वहीं, 0-5 साल तक के बच्चों के लिए लगभग 200 ग्राम ऊन लगती है। वहीं, एक वयस्क का स्वेटर बनाने के लिए लगभग 600 ग्राम ऊन लगती है। वहीं, हॉफ स्वेटर बनाने के लिए लगभग 400 ग्राम ऊन की ही आवश्यकता पड़ती है।
1- इंद्रा मार्केट में काम करने वाले दुकानदार प्रमोद ने बताया कि पहले सर्दियों के समय महिलाएं ऊन की खरीदारी को लेकर काफी उत्सुक रहती थीं, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में ऊन की खरीदारी में कमी आई है।
2- कुर्मांचल नगर निवासी गृहिणी प्रमिला शर्मा ने बताया कि जब बाजार में आसानी से डिजाइनर स्वेटर मिल जाते हैं तो क्यों हाथों से स्वेटर बनाकर समय बर्बाद करें।
3- डेलापीर निवासी सरिता ने बताया कि हाथ के बुने स्वेटर की अपेक्षा रेडीमेड स्वेटर अधिक आकर्षक लगते हैं, जो बच्चों और बड़ों सभी को पसंद भी आते हैं।