उत्तरप्रदेश | प्रदूषण के कारण उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की नदियों में एल्गी (शैवाल) की सेहत खराब हो रही है. एल्गी की बाह्य त्वचा फट रही है. उनका आकार घट रहा है. इसका असर भविष्य में खाद्य श्रृंखला पर पड़ सकता है. रुहेलखंड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ. ललित पांडे के शोध में यह तथ्य सामने आया है. शोध पत्र को प्रतिष्ठित स्प्रिंगर साइंस पब्लिकेशन के प्रोटोप्लाज्मा इंटरनेशनल जर्नल ने स्थान दिया है.
रुहेलखंड विश्वविद्यालय के प्लांट साइंस डिपार्टमेंट के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. ललित पांडे को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के साइंस एंड इंजीनियरिंग रिसर्च बोर्ड का प्रोजेक्ट मिला था. 28 लाख रुपये के इस प्रोजेक्ट पर ललित ने एमएससी फाइनल ईयर के छात्रों के साथ फरवरी 2021 से मई 2023 तक कार्य किया. छात्रा सुदीक्षा नेगी ने इसमें अहम भूमिका निभाई. इस दौरान उन्होंने मसूरी, देहरादून, हरिद्वार, ऋषिकेश, मुरादाबाद, बरेली आदि की नदियों से पानी और एल्गी (डायटॉम) के सैंपल लिए.
कई चरणों के शोध के बाद पता चला कि देहरादून के पास स्थित बिंदल और रिस्पन नदी में 1 से 3 माइक्रोग्राम प्रति लीटर मर्करी पाया गया. जबकि आर्सेनिक 4 से 7 माइक्रोग्राम प्रति लीटर पाया गया. आम तौर पर मर्करी और आर्सेनिक वहां नहीं पाया जाता है. नदियों में 2 पीपीएम जिंक और करीब 1.1 से 1.3 पीपीएम आयरन भी पाया गया. बरेली और मुरादाबाद में रामगंगा नदी में 2.2-2.5 पीपीएम तक कॉपर और दो से तीन पीपीएम तक जिंक भी पाया गया.
बीमार होने के साथ घट रहा एल्गी का आकार
मर्करी, आर्सेनिक, जिंक और कॉपर की मात्रा अधिक होने से एल्गी में कई विकृतियां पकड़ में आई है. सबसे पहले तो धातु एल्गी की बाह्य परत को भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं. यह नुकसान इतना ज्यादा है कि एल्गी का लिविंग कंटेंट शरीर से बाहर हो जाता है. इससे इंफेक्शन होता है और वो मर जाता है. एल्गी के अंदर रेफी पाया जाता है. इससे वो मूव कर पाते हैं. धातुओं के दुष्प्रभाव के चलते रेफी का आकार बदल जा रहा है. इससे एल्गी शिथिल होकर बीमार पड़ जा रहे है. एल्गी का आकार भी 30 से 90 फीसदी तक कम हो रहा है. स्प्रिंगर साइंस पब्लिकेशन के प्रोटोप्लाज्मा इंटरनेशनल जर्नल ने उनके रिसर्च पेपर को स्थान दिया है. यह अपने आप में एक बेहद महत्वपूर्ण बात है.
खाद्य शृंखला बचाए रखने में एल्गी की भूमिका महत्वपूर्ण
डॉ. ललित पांडे ने बताया कि एल्गी नदी या तालाब में खाद्य श्रृंखला की प्राथमिक कड़ी होता है. यदि इसके जीवन पर प्रभाव पड़ा तो पूरी खाद्य श्रृंखला पर बुरा प्रभाव पड़ेगा. छोटी मछलियां एल्गी खाकर अपना पालन करती हैं. यदि एल्गी क्षतिग्रस्त या बीमार होते रहे तो वह एक दिन इतने कम हो जाएंगे कि मछलियों को जीवन चलाना मुश्किल होगा. मनुष्य भी मछलियों को खाते हैं. मछलियों को भोजन कम मिलेगा तो मनुष्यों के लिए भी मछलियां मिलना कम हो जाएगा. इससे पूरी ़फूड चेन बिगड़ जाएगी.