राजस्थान। धर्मनगरी के नाम से मशहूर बीकानेर शहर में लोगों की भगवान के प्रति गहरी आस्था और अटूट विश्वास है। यहां लोग दिन भर दान-पुण्य करते रहते हैं। बीकानेर में विश्व प्रसिद्ध करणी माता का मंदिर है। चील को करणी माता का प्रतीक माना जाता है। बीकानेर की स्थापना भी करणी माता के आशीर्वाद से राजा-महाराजा ने की थी। करणी माता के प्रतीक चील के प्रति लोगों की गहरी आस्था है। इस शहर के आसमान में चीलें मंडराती रहती हैं। जिससे लोग करणी माता का आशीर्वाद मानते हैं। इस शहर में एक ऐसी दुकान है जहां चीले के लिए खास पकौड़ियां बनाई जाती हैं. यह दुकान बीकानेर के सट्टा बाजार में स्थित है, जो पूरी दुनिया में अकेली है। करीब 90 साल से इन पकौड़ों को बनाकर चीलों को खिलाने का काम चल रहा है।
बुलाकीराम मोदी ने बताया कि यहां पकौड़ी खिलाने का काम तीन पीढ़ियों से चल रहा है. दोपहर में यहां चील आना शुरू हो जाते हैं, जो शाम 5 से 6 बजे तक आते-जाते रहते हैं। जैसे ही चील आसमान में मंडराने लगती हैं, बुलाकी राम पकौड़ी को आसमान में उछाल देते हैं और चील उन पकौड़ी को अपने पंजों में पकड़ लेती हैं। उनका कहना है कि उनके यहां रोजाना 30 किलो पकौड़ी बनाई जाती है. कभी-कभी पकौड़े गाय, कुत्ते और चील को खिलाए जाते हैं। इसके अलावा लोग इन पकौड़ों को मंदिर में भगवान को भी चढ़ाते हैं। यहां पकौड़ी की कीमत 120 रुपये प्रति किलो है.
यहां पकौड़ी बनाई जाती है. इसकी शुरुआत उनके दादा ने की थी, बीकानेर की स्थापना भी करणी माता के आशीर्वाद से हुई थी। पहले चीले बहुत बनते थे. ये पकौड़ियां गेहूं के आटे और गुड़ से बनाई जाती हैं. इन पकौड़ों को करणी माता को प्रसाद के रूप में भी चढ़ाया जाता है। मान्यताओं के अनुसार, यहां रोजाना कई लोग आते हैं, जिन्हें किसी तरह की कोई परेशानी होती है तो वे चील को पकौड़ी खिलाकर अपनी परेशानी दूर करते हैं। लोगों का मानना है कि इन चिलो को पकौड़ी के साथ खिलाने से उनकी परेशानियां दूर हो जाती हैं.