रमा देवी, सुनीता और कांता (बदले हुए नाम)। पति नशाखाेरी में लिप्त थे। परिवार उजड़ रहा था। घर में कमाने का और काेई जरिया भी नहीं था। समाज की रूढ़िवादी साेच के चलते घर की महिलाओ काे कमाने के लिए बाहर जाना भी मना था। घर चलाना और बच्चाें की पढ़ाई, दाेनाें जरूरी थे।
आखिरकार इन महिलाओं ने घर पर ही राखी बनाना शुरू कर दिया। जिससे परिवार आर्थिक तंगी से बाहर आ गया।महिलाओं काे देख इनके पति ने भी शराब से ताैबा कर ली। अलवर में राखी के काराेबार से करीब साढ़े 12 हजार से अधिक परिवाराें की आजीविका चला रहा है।
जिसमें 10 हजार महिलाएं सीधे राखी बना रही हैं। इसके साथ ही 2000 लोग अप्रत्यक्ष रूप से इस कार्य से जुड़े हुए हैं। वहीं सीजन में उत्तरप्रदेश से 500 से अधिक लाेग फेरी लगाने आते हैं। महिलाओं के अलावा बड़ी संख्या में छात्राओं ने भी राखी बनाकर मास्टर डिग्री हासिल की है।
इसी मेहनत का नतीजा है कि महज 35 साल में अलवर राखियों ने देश के साथ-साथ विदेशों में भी अपना नाम बनाया है। यहां संचालित 12 से अधिक लघु उद्योगों का एक वर्ष में 100 करोड़ रुपये से अधिक का कारोबार होता है। नई डिजाइन की राखी में कोलकाता के साथ अलवर का भी नाम है।
अर्निंग मैथ : पीस के हिसाब से मजदूरी, दो हजार से 15 हजार प्रतिमाह की कमाई
इस तरह राखी बनाने का काम साल भर चलता रहता है। लेकिन दिवाली और होली के आसपास महिलाएं भी इन त्योहारों से संबंधित काम करती हैं। ऐसे में अलवर में साल में करीब 10 महीने राखी बनाई जाती है। इस कार्य में शामिल महिलाओं को राखी के टुकड़े के आधार पर मजदूरी मिलती है।
एक महिला 2 हजार से 15 हजार रुपए महीना कमाती है। यदि दस हजार से अधिक महिलाओं की औसत मासिक आय 4 हजार है, तो इन महिलाओं की मेहनत से महीने में लगभग 4 करोड़ रुपये की कमाई होती है। इसी तरह महिलाओं को 10 महीने की मेहनत के रूप में 40 करोड़ रुपये मिलते हैं।
इन 10 हजार महिलाओं के अलावा कार्ड, छपाई, बॉक्स बनाने, पैकेजिंग सामग्री और ई-रिक्शा चालकों सहित कुल 2000 परिवारों का खर्च भी इस कार्य में शामिल है।
राखी व्यवसायी बच्चू सिंह जैन ने कहा कि अलवर ने राखी के पारंपरिक रूप को बदलकर और इसे आधुनिक रूप देकर देश में नाम कमाया है। राखी उद्योग की शुरुआत 1987 में हुई थी। अब अलवर का नाम कोलकाता, अहमदाबाद, अंबाला, दिल्ली के साथ राखी उद्योग में है।
अलवर आधुनिक राखी बनाने में कलकत्ता के साथ आता है। 10 हजार से ज्यादा महिलाएं वर्क फ्रॉम होम कर रही हैं। अलवर से राखी अन्य देशों में ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, नेपाल, अमेरिका और कनाडा जाती हैं। राखी व्यवसायी दीपक जैन के मुताबिक जयपुर के अलवर, जाधपुर, अजमेर राखी बनाने में पिछड़ रहे हैं।
राखी इंडस्ट्री साल में 10 महीने चलती है। कई महिलाएं अन्य महिलाओं को अपने साथ ले गई हैं। अलवर से राखी खरीदने के लिए देश के अलग-अलग हिस्सों से लोग आते हैं।