चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के स्वास्थ्य संकुल भवन में मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. अनुज पींगोलिया की अध्यक्षता में आरबीएसके के चिकित्सा अधिकारियों को उप मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. आर. एस. किराड़िया द्वारा नेशनल रेबीज कंट्रोल प्रोग्राम के अंतर्गत रेबीज रोग की विस्तार पूर्वक जानकारी दी गई।
उन्होंने बताया कि कुत्ते, बंदर, बिल्ली आदि जानवरों के काटने से रेबीज होने का खतरा रहता है । जानवर के काटते ही तुरंत रेबीज के वैक्सीनेशन करवा लेना चाहिए। इससे भविष्य में रेबीज होने की संभावना नहीं रहे। रेबीज एक वायरस है जो कि संक्रमित जानवर की लार में मौजूद रहता है। भारत में अधिकतर रेबीज के केस आवारा कुत्तों के काटने के पाए जाते हैं। इसके अलावा बंदर, कुत्ता, बिल्ली, चमगादड़ आदि लार वाले जानवरों के काटने से रेबीज होने की संभावना रहती हैं। रेबीज एक वायरल रोग है। यह रेबीज के वायरस द्वारा होता है। रेबीज के लक्षण 5 से 10 दिन के भीतर दिखाई देने लगते हैं। इसमें व्यक्ति तेज सांस लेने लगता है। बुखार, उल्टी एवं चक्कर आना, गले में दर्द रहना, पानी से डरने लगता है। साथ ही धीरे-धीरे वह कोमा में चला जाता है और उसके बाद उसकी मृत्यु हो जाती है। इसको रोकने के लिए किसी भी लार वाले जानवर के काटने पर तुरंत रेबीज के वैक्सीनेशन करवाएं।
उन्होंने बताया कि रेबीज के वैक्सीनेशन जानवर के काटे जाने के प्रथम दिन उसके पश्चात 3 दिन एवं उसके पश्चात 7 दिन 14 दिन 28वें दिन रेबीज के टीकाकरण किया जाता है। किसी भी जानवर के काटने पर जख्म पर तेल, मिर्ची, मिट्टी आदि ना लगाएं। उसे तुरंत पानी और साबुन से अच्छी तरह धो लें। इससे जख्म से वायरल लोड कम होगा। उसके तुरंत बाद डॉ. की सलाह लें एवं वैक्सीनेशन समय पर कराएं।