कोटा । राज्य सरकार ने शहरी बेरोजगारों व आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के परिवारों को 100 दिन का रोजगार देने की योजना तो बना दी। लेकिन कोटा में नगर निगम द्वारा चिन्हित किए गए कामों में से अधिकतर काम तो योजना में आने वाले श्रमिक करना ही नहीं चाहते। जिससे यह योजना दो कामों तक ही सिमट कर रह गई। राज्य सरकार ने प्रदेश में 9 सितम्बर को इंदिरा गांधी शहरी रोजगार गारंटी योेजना शुरू की। लेकिन कोटा में इस दिन अनंत चतुर्दशी का जुलूस होने से इसे अगले दिन 10 सितम्बर को लॉच किया गया। योजना में बेरोजगारों को रोजगार देने के लिए नगर निगम कोटा उत्तर व कोटा दक्षिण ने 18 कामों की सूची तैयार की। जिनमें वार्डों में नालियां साफ करने, झाडू लगाने, शहर के मुक्तिधाम व कब्रिस्तानों में घास कटाई करना और सम्पति विरूपण के तहत सार्वजनिक स्थानों पर लगे पोस्टर व विज्ञापन सामम्री को हटाने समेत कई काम शामिल थे।
योजना की शुरुआत में बड़ी संख्या में शहरी बेरोजगारों ने योजना में पंजीयन तो करवा लिया। उनके जॉब कार्ड भी बन गए। लेकिन जब काम करने की जानकारी मिली तो अधिकतर काम पर ही नहीं आए। शुरूआत में गिनती के ही श्रमिक काम पर आए थे।
निगम द्वारा श्रमिकों से काम करवाने के लिए हर 15 दिन के पखवाड़े के हिसाब से मस्टररोल बनाई जा रही है। जिसमें हर परिवार के एक सदस्य को 100 दिन का रोजगार देना है। लेकिन सरकार की इस योजना में कई पेचीदगियां होने से योजना अभी तक भी पूरी तरह से लागू नहीं हो सकी है।
नगर निगम ने जब बेरोजगार श्रमिकों को काम बताए तो अधिकतर का यही कहना था कि वे न तो नाली साफ करेंगे और न ही मुक्तिधाम व कब्रिस्तानों में घास कटाई का। इसका कारण यहां अनचाहा डर सता रहा है। विज्ञापन हटाने में पहले लगे हुए पोस्टर का फोटो लेना व बाद में साफ का लेना और फिर उसे अपलोड करना समेत कई समस्याएं आने लगी। साथ ही अधिकतर श्रमिक अपने घर से दूर जाकर काम करने को तैयार नहीं हुए। जबकि निगम द्वारा जहां काम होगा वहीं श्रमिकों को लगाया जा रहा था। लेकिन आने-जाने में किराया अधिक लगने से लोगों ने जाने से ही इनकार कर दिया।
शहर में बेरोजगार अधिक होने के बाद भी लोग काम करने को तैयार नहीं है। योजना के तहत सरकार द्वारा दैनिक मजदूरी 259 रुपए तय की गई है। इस राशि में श्रमिक काम ही नहीं करना चाह रहे। जानकारी के अनुसार श्रमिकों को खुली मजदूरी करने पर रोजाना 400 से 500 रुपए मिल रहे हैं। ऐसे में सरकार से आधी मजदूरी मिलने पर लोग बेरोजगार रहना पसंद कर रहे हैं लेकिन काम करना नहीं।
योजना में बेरोजगार श्रमिकों का पंजीयन करते समय उनके आधार कार्ड के हिसाब से उनका नाम पता नोट किया। परिवार के एक सदस्य का मोबाइल नम्बर नोट कर लिया। जबकि अब यह समस्या आ रही है कि आधार कार्ड में पुराने वार्ड नम्बर हैं लेकिन परिसीमन के बाद नए वार्ड बनने से वार्ड ही बदल गए। साथ ही पंजीयन में उस परिवार के सभी सदस्यों के मोबाइल नम्बर मांगे जा रही है। जिसमें निगम अधिकािरयों को दोबारा से मशक्कत करनी पड़ रही है। हालत यह है कि नगर निगम कोटा उत्तर के 70 व कोटा दक्षिण के 80 वार्डों में से गिनती के ही वार्डों में इस योजना के तहत काम हो रहे हैं। लेकिन वहां भी मात्र 50 फीसदी ही श्रमिक काम कर रहे हैं।
सरकार ने अच्छी सोच के साथ योजना लागू की है। बेरोजगारों को रोजगार देना चाहती है। लेकिन अधिकतर लोग शिक्षित होने से न तो नालियां साफ करना चाह रहे हैं और न ही मुक्तिधाम व कब्रिस्तानों में घास कटाई। घर से दूर जाने के लिए भी अधिकतर लोग तैयार नहीं हैं। ऐसे में निगम द्वारा वर्तमान में मात्र दो ही काम करवाए जा रहे हैं। जिनमें एक सड़क किनारे के गार्डनों की घास कटाई और दूसरा नहरों से कचरा साफ करने का काम कराया जा रहा है। गत दिनों समस्या समाधान के लिए शिविर का भी आयोजन किया गया था।