जयपुर (jaipur) . वन्यजीव प्रेमियों के लिए दुखद खबर है. सवाई माधोपुर के रणथंभौर टाइगर रिजर्व में 12 साल के बाघ टी 57 की मौत हो गई है. काफी दिनों से इसकी मूवमेंट अस्थिर पाई गई थी इसलिए इसे गत 20 दिनों से ट्रैंकुलाइज कर उपचार किया जा रहा था. चिकित्सकों के अनुसार मल्टीपल ट्युमर की वजह से टी57 को बचाया नहीं जा सका. टाइगर के शव को वन विभाग के राजबाग नाका चौकी पर लाया गया जहां पर अधिकारियों और पुलिस (Police) प्रशासन के बीच मेडिकल टीम ने पोस्टमार्टम किया. इसके बाद बाघ का अंतिम संस्कार कर दिया गया.
टी57 का इलाज कर रहे पशु चिकित्सकों के मुताबिक बाघ के लीवर में तीन किलो का टयूमर था, उसके स्प्लिन पर भी आधा-आधा किलो के दो ट्यूमर मिले थे. ट्युमर्स को जांच के लिए देहरादून (Dehradun) भेजा जाएगा. पोस्टमार्टम के दौरान वरिष्ठ पशु चिकित्सा अधिकारी चन्द्र प्रकाश मीना, चिकित्सक राजीव गर्ग, उपखंड अधिकारी कपिल शर्मा मौजूद थे. बाघ टी-57 की मौत के बाद वन्यजीव प्रेमियों में शोक की लहर दौड़ गई है. रणथम्भौर के डीएफओ संग्राम सिंह ने बताया कि बाघ टी-57 पिछले 20 दिन से बीमार था. वन विभाग ने 20 दिसम्बर को बाघ को ट्रेंकुलाइज किया गया था, जिसके बाद बाघ का उपचार किया गया था.
बीस दिसंबर को बाघ टी-57 बीट अल्लापुर नाका गुढ़ा में वनक्षेत्र विंध्याकरा खाड़ में लेटा हुआ पाया गया था. इसके बाद पशु चिकित्साधिकारी ने बाघ को ऑब्जर्व किया. जांच में वो बहुत कमजोर और भूखा दिखा. जांच में पाया गया कि उसके आगे के पैर में घाव भी था. बाघ की स्थिति देख अंदाजा लगाया गया कि उसे आंतरिक घाव हो सकता है. ऐसे में उसके इलाज की प्रक्रिया तुरंत शुरू की गई. बाघ को ट्रेंकुलाइज कर इलाज के लिए रेस्क्यू पिंजरे में रखा गया. दो दिन निगरानी में रखने के बाद बाघ को विचरण क्षेत्र में छोड़ा गया. तीन जनवरी काे ही शाम 7:30 बजे बाघ के विचरण क्षेत्र में बाघ टी-123 का मूवमेंट पाया गया. इसके बाद टी-57 की सुरक्षा को लेकर एहतियात बरती गई. इस सबके बावजूद बाघ की तबीयत में सुधार नहीं हो पाया.
वर्ष 2019 में टी57 तब सुर्खियों में आया था जब टी58 'रॉकी' से भिड़ते हुए क्लिक हुआ था. दोनों को बाघिन शर्मिली ने जन्म दिया था. कुंडी क्षेत्र के जोन 6 में हुई ये टेरिटोरियल फाइट सोशल मीडिया (Media) पर खूब वायरल हुई थी. वनाधिकारियों ने बताया था कि फाइट से पहले बाघिन नूर भी देखी गई थी, इसलिए अंदाजा लगाया गया ये फाइट नूर के लिए ही की गई थी.
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