श्री गुरु रामदास जी की जयंती के अवसर पर स्वर्ण मंदिर को रंग-बिरंगी लाइटों से सजाया
पंजाब: श्री गुरु रामदास जी की जयंती के अवसर पर अमृतसर में स्वर्ण मंदिर को रंग-बिरंगी लाइटों से सजाया गया।
गुरु नगरी अमृतसर को बसाने वाले और स्वर्ण मंदिर का निर्माण करवाने वाले श्री गुरु रामदास जी का आज 448वां प्रकाश पर्व है। इस मौके पर पूरी गुरु नगरी और स्वर्ण मंदिर को फूलों से सजाया गया है। उनके नाम पर बने एयरपोर्ट को भी सजाया गया है। आज पूरा दिन स्वर्ण मंदिर में कीर्तन दरबार होगा और जलो सजाए जाएंगे। देश-विदेश से आने वाली संगत के लिए भी खास प्रबंध किए गए हैं।
चौथे गुरु श्री रामदास जी का जन्म 1534 में लाहौर के चूना मंडी इलाके में हुआ था। अमृतसर शहर गुरुजी ने ही बसाया था। 5 साल की उम्र में माता-पिता को खोने के बाद वह अपनी नानी के पास ही रहे। तीसरे गुरु अमरदास जी ने उन्हें अपने साथ रख लिया। तीसरे गुरु अमरदास जी ने उन्हें गोइंदवाल साहिब में बाउली (कुएं) के निर्माण का कार्य सौंपा, जो 1559 में पूरा हुआ। इसके बाद उन्होंने 1564 में गुरु जी की आज्ञा लेकर 'अमृतसर' का निर्माण शुरू कराया।
तीन गांवों के जमींदारों से ली गई थी जमीन
श्री गुरु रामदास जी ने अमृतसर के आसपास बसे 3 गांवों तुंग, गिलवाली और गुमटाला के जमींदारों से जमीन खरीदी और सरोवर की खुदाई का काम 6 नवंबर 1573 को शुरू करवाया था। तब बाबा बुड्ढा जी के कहने पर श्री गुरु रामदास जी ने अपने हाथों से पहला टक लगाया। इस स्थान का नाम 'गुरु का चक्क' रखा गया, जिसे आज अमृतसर के नाम से जाना जाता है। गुरु रामदास जी ने यहां 52 रोजगार भी शुरू करवाए थे।
रोजगार के नाम पर इलाकों का नाम
गुरु रामदास जी ने गोल्डन टेंपल के सरोवर के निर्माण के साथ ही आसपास 52 रोजगारों को बसाया था। आज भी उनके द्वारा बसाए गए बाजारों के नाम काम के अनुसार हैं। गोल्डन टेंपल के आसपास बसे नमक मंडी, आटा मंडी, घी मंडी आदि वे बाजार हैं, जिन्हें गुरु रामदास जी ने ही बसाया था।
अकबर भी माथा टेक कर गया था गुरु नगरी में
कहा जाता है कि बादशाह अकबर भी गोल्डन टेंपल के दर्शानों के लिए आया था। वह गोल्डन टेंपल के दर्शन करके इतना खुश हुआ था कि तुंग व सुलतानविंड गांव की कुछ और जमीन चक्क रामदास (अमृतसर) के नाम कर दी थी। कर भी माफ करने का पटटा लिखवा दिया था। कुछ कीमती हीरो के जवाहरात भी भेंट किए थे।
कुरीतियों का विरोध किया
श्री गुरु रामदास जी ने ही सिख धर्म में विवाह को सरल किया और आनंद कारज की शुरुआत की। उन्होंने चार लावों की रचना की और सरल विवाह की गुरमत मर्यादा को अपनाने पर जोर दिया। उन्होंने गुरु नानक देव जी की लंगर प्रथा को आगे बढ़ाया और लोगों को अंधविश्वास और कुरीतियों से दूर करने में मदद की।