300 साल पुराने राधारानी मंदिर में माथा टेकने पहुंचीं पूर्व सीएम उमा भारती, कहीं ये बात
मध्यप्रदेश की फायर ब्रांड नेता पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती शनिवार को राधाष्टमी पर विदिशा के नंदवाना में राधारानी के मंदिर पहुंची। इस दौरान उमा ने पूजन-अर्चना की। विदिशा के इस मंदिर की खास बात यह है कि यहां मौजूद प्रतिमा वृंदावन से करीब 300 साल पहले विदिशा लाई गई थी, तब से ही साल में सिर्फ एक बार इस मंदिर के पट आम जनता के लिए खोले जाते हैं। राधा अष्टमी पर उनकी विशेष पूजा अर्चना की जाती है। आज राधा अष्टमी पर पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती दर्शन के लिए मंदिर में पहुंची, पिछले दो साल से लगातार वह राधा अष्टमी पर यहां दर्शन के लिए आ रही हैं।
दर्शन करने के बाद मीडिया से चर्चा के दौरान उन्होंने कहा कि मैं यहां आज दर्शन के लिए आई हूं, किसी प्रकार के राजनीतिक सवाल का जवाब नही दूंगी। कृष्ण प्रिया राधारानी के इस मंदिर को सार्वजनिक रूप से बनाए जाने और आम जनता के लिए रोजाना खोले जाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि वर्षों पुरानी परंपरा है। राधा रानी की सेवा करने वाले परिवार पर ही यह निर्भर करता है कि उन्हें इस परंपरा का किस प्रकार निर्वहन करना है और इसे आगे बढ़ाना है।
कुछ यूं है 300 साल पुराने इस मंदिर की कहानी
बताया जाता है कि पुजारी द्वारा उत्तर प्रदेश बरसाना से कई वर्षों पहले राधाजी को एक टोकरी में लेकर बरसाना से चले थे। क्योंकि उस समय मुगलों के आक्रमण के कारण पूजा और मंदिर पर विपदा आन खड़ी हुई थी। तभी पुजारी संप्रदाय के लोग पैदल ही एक टोकरी में राधाजी की मूर्ति रखकर चुपचाप रातों-रात वहां से निकले गए थे और यहां विदिशा आकर नंदवाना में एक छोटी सी कुटिया में श्रीराधा जी की पूजा अर्चना शुरू की गई थी। आज राधाअष्टमी के पर्व पर इस मंदिर के पट सुबह चार बजे खुल जाते हैं।
वृंदावन से लाई गई ये प्राचीन प्रतिमाऐं विदिशा के वृंदावन गली स्थित मंदिर में विराजमान हैं। यह प्रतिमाएं 1669 से पहले वृंदावन में जमुना जी के किनारे राधा रंगीराय नाम से स्थापित मंदिर में विराजमान थी। अर्थात जो प्रतिमा विदिशा में है, वह पहले जमुना जी के किनारे थी। तब नौ अप्रैल 1669 को औरंगजेब बादशाह ने एक फरमान जारी किया था, जिसमें पूजा स्थल और सारे मंदिरों को ध्वस्त करने का आदेश जारी हुआ था।
मंदिर पर करीब छह से सात हमले किए गए, तब पुजारी संप्रदाय के पूर्वज लोग प्रतिमाओं को बक्से में चोरी छिपे लेकर निकल पड़े थे। जो यहां विदिशा आकर रुक गए थे और तब यहां गुप्त रूप से पूजन प्रारंभ की गई थी। जो आज तक बदस्तूर गुप्त पूजा जारी है। सिर्फ साल में एक बार आज यानी राधा अष्टमी को ही इस मंदिर के पट खोले जाते हैं।