बेंगलुरु | कर्नाटक हाई कोर्ट ने राज्य के मुख्य सूचना आयुक्त के उस फैसले और दलील को खारिज कर दिया है, जिसमें कहा गया था कि कोई सरकारी कर्मचारी किसी साथी कर्मचारी के सर्विस बुक की जानकारी सूचना का अधिकार (RTI) के तहत नहीं मांग सकता है। कर्नाटक के मुख्य सूचना आयुक्त ने एक कॉलेज प्रोफेसर की उस अर्जी को खारिज कर दिया था, जिसमें प्रोफेसर ने अपने दूसरे सहकर्मी की सर्विस बुक की जानकारी मांगी थी लेकिन हाई कोर्ट ने उसे पलटते हुए कहा है कि कोई भी कर्मचारी साथी कर्मी की सर्विस बुक देख सकता है।
लाइव लॉ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस कृष्ण एस दीक्षित की एकल पीठ ने ए एस मल्लिकार्जुनस्वामी द्वारा दायर याचिका को स्वीकार कर लिया और राज्य सूचना आयोग के फैसले को रद्द कर दिया, जिसके तहत सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 8 (1) (जे) के प्रावधानों का हवाला देते हुए मल्लिकार्जुनस्वामी के आरटीआई आवेदन को अस्वीकार कर दिया गया था।
अदालत ने कहा, “सूचना का अधिकार की धारा 8(1)(जे) को लागू करने की कोई गुंजाइश नहीं है क्योंकि याचिकाकर्ता प्रतिवादी संस्था के लिए अजनबी नहीं है।” यह धारा किसी भी कर्मचारी की निजी जानकारी किसी भी अजनबी को साझा करने से प्रतिबंधित करती है। कोर्ट ने कहा कि सूचना की मांग करने वाला शख्स कोई अजनबी नहीं बल्कि एक साथी कर्मी है, जो वर्षों से साथ काम कर रहा है।
कोर्ट ने कहा कि यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि सेवा में शिकायतों के निवारण के लिए, एक कर्मचारी को उसी नियोक्ता के अधीन काम करने वाले अन्य कर्मचारियों का पूरा सेवा विवरण रखना होगा, खासकर जब नौकरी की पुष्टि, वरिष्ठता, पदोन्नति या इसी तरह का विवाद उत्पन्न होता है।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया था कि वह आरटीआई आवेदन में दर्शाए गए व्यक्ति की सेवा के भौतिक विवरणों को जानने का हकदार है, क्योंकि वह जानकारी सेवा कानून में पुष्टिकरण, वरिष्ठता, पदोन्नति और इसी तरह के उनके दावों को संरचित करने के लिए आधार प्रदान करती है।
याचिकाकर्ता के तर्क से सहमत होते हुए कोर्ट ने कहा, “याचिकाकर्ता, एक पक्षकार, का यह तर्क देना उचित है कि जब तक उन व्यक्तियों की सेवा विवरण प्रस्तुत नहीं किया जाता है जो उसने आरटीआई आवेदन में मांगे हैं, तब तक वह सेवा मामले के विषय में अपनी शिकायत का निपटारा करने की स्थिति में नहीं होगा।